"रामचन्द्र शुक्ल": अवतरणों में अंतर

छो Wikilink seen in bold caption removed
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन उन्नत मोबाइल संपादन
Rescuing 0 sources and tagging 1 as dead.) #IABot (v2.0.9.2
पंक्ति 42:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ईस्वी में [[बस्ती जिला|बस्ती जिले]] के [[अगोना]] नामक गांव में हुआ था। इनकी माता जी का नाम विभाषी था और पिता पं॰ चंद्रबली शुक्ल की नियुक्ति सदर कानूनगो के पद पर [[मिर्ज़ापुर|मिर्जापुर]] में हुई तो समस्त परिवार वहीं आकर रहने लगा। जिस समय शुक्ल जी की अवस्था नौ वर्ष की थी, उनकी माता का देहान्त हो गया। मातृ सुख के अभाव के साथ-साथ विमाता से मिलने वाले दुःख ने उनके व्यक्तित्व को अल्पायु में ही परिपक्व बना दिया।
 
अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल जी में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से सन् 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल जी कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए [[इलाहाबाद]] भेजा पर उनकी रुचि वकालत में न होकर [[हिंदी साहित्य|साहित्य]] में थी। अतः परिणाम यह हुआ कि वे उसमें अनुत्तीर्ण रहे। शुक्ल जी के पिताजी ने उन्हें नायब तहसीलदारी की जगह दिलाने का प्रयास किया, किंतु उनकी स्वाभिमानी प्रकृति के कारण यह संभव न हो सका।<ref>[http://thatshindi.oneindia.in/news/2008/09/04/2008090454626300.html आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर पुस्तक का लोकार्पण]{{Dead link|date=अक्तूबर 2022 |bot=InternetArchiveBot }} दैट्स हिन्दी पर</ref>
 
1903से 1908 तक 'आनन्द कादम्बिनी' के सहायक संपादक का कार्य किया। 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। इसी समय से उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे-धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में [[काशी]] [[नागरी प्रचारिणी सभा]] ने उन्हें [[हिन्दी शब्दसागर]] के सहायक संपादक का कार्य-भार सौंपा जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। [[श्यामसुन्दरदास]] के शब्दों में 'शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय पं. [[रामचंद्र शुक्ल]] को प्राप्त है। वे [[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]] के भी संपादक रहे। 1919 में [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए जहाँ [[बाबू श्याम सुंदर दास]] की मृत्यु के बाद 1937 से जीवन के अंतिम काल (1941) तक विभागाध्यक्ष का पद सुशोभित किया।