"चन्द्र भानु गुप्ता": अवतरणों में अंतर
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चंद्रभानु तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. 1960 से 1963 तक तो रहे ही. पर मुख्यमंत्री पद छोड़ने के बाद भी राजनीति में उनका प्रभाव बना रहा. किस्मत की बात. 1967 के चुनाव में जीतने के बाद फिर से मुख्यमंत्री बने. लेकिन इस बार सिर्फ 19 दिनों के लिए. फिर से वही किस्मत. किसान नेता चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को तोड़कर अपनी पार्टी बना ली. चंद्रभानु की सरकार गई. चरण सिंह मुख्यमंत्री बन गये. पर वो सरकार चला नहीं पाए. वो सरकार भी गिरी. और चंद्रभानु गुप्ता को आनन-फानन में फिर मुख्यमंत्री बनाया गया 1969 में. करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे. तभी कुछ ऐसा हुआ जिसने कांग्रेस को हमेशा के लिए बदल दिया. 1969 में कांग्रेस पार्टी टूट गई. ये यूपी का अंदरूनी मसला नहीं था. अबकी टूट केंद्र के लेवल पर हुई थी. इंदिरा गांधी और कामराज के नेतृत्व वाले सिंडिकेट ग्रुप में. सबको लगा था कि इंदिरा हाथों की कठपुतली रहेंगी. पर इंदिरा सबसे बड़ी पॉलिटिशियन निकलीं. दोनों धड़ों में तकरार हुई राष्ट्रपति को लेकर. मोरारजी देसाई इंदिरा के प्रबल विरोधी निकले. चंद्रभानु गुप्ता मोरार जी कैंप में चले गये. पर ये कैंप हार गया. इंदिरा के सपोर्ट से वी वी गिरि राष्ट्रपति बन गये. यहीं पर सिंडिकेट के अधिकांश नेताओं के करियर पर ब्रेक लग गया. चंद्रभानु का करियर खत्म हो गया. पर वक्त की बात है. मोरारजी भी प्रधानमंत्री बने. चंद्रभानु को मंत्रिमंडल में पद ऑफर किया. पर चंद्रभानु की हेल्थ बहुत खराब हो गई थी. मंत्री पद लेना मुनासिब नहीं था. उन्होंने मना कर दिया. 11 मार्च 1980 को मौत हो गई.
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