"बख्तर साय": अवतरणों में अंतर
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'''बख्तर साय''' स्यतनत्रता सेनानी थे। उन्होंने ईस्ट इंडिया कमपनी के बिरूद्ध 1812 में बिद्रोह किया था।<ref>{{Cite news|url=https://timesofindia.indiatimes.com/city/Ranchi/Raghubar-honours-Simdega-patroits/articleshow/51869527.cms|title=Raghubar honours Simdega patriots|website=timesofindia.com}}</ref>
<ref>{{Cite news|url=https://Jagran.com/jharkhand/simdega-mundal-singh-17777230.html|title=सभ्यता व संस्कृती की सुरक्षा के लिए हों एकजुट : कुलदीप|website=Jagran.com|access-date=15 जून 2020|archive-url=https://web.archive.org/web/20190306044550/https://www.jagran.com/jharkhand/simdega-mundal-singh-17777230.html|archive-date=6 मार्च 2019|url-status=dead}}</ref>
बख्तर सई का जन्म ब्रिटिश भारत में गुमला जिले के रायडीह ब्लॉक के नवागढ़ में हुआ था। वे बासुदेव कोना के जागीरदार थे। उनका जन्म रौतिया परिवार में हुआ था।
जब ब्रिटिश सरकार ने 1812 में छोटानागपुर के राजा गोबिंद नाथ शाहदेव को ईस्ट इंडिया कंपनी को 12000 रुपये का कर देने का आदेश दिया। बख्तर सई ने अत्यधिक कर के कारण नवागढ़ के किसानों की ओर से ईस्ट इंडिया कंपनी को कर देने से इनकार कर दिया। इसने लड़ाई को उकसाया जिसमें बख्तर सई ने रातू दरबारी हीरा राम को मार डाला जो कर लेने आए थे। तब रामगढ़ के मजिस्ट्रेट ने हजारीबाग से एक सेना भेजी। बख्तर सई की सेना में उस क्षेत्र के किसान शामिल थे। पहाड़ पनरी मुंडल सिंह के परगनेट नवागढ़ पहुंचे और बख्तर साय को युद्ध में मदद की। युद्ध दो दिनों तक चला और ब्रिटिश सेना की हार हुई। एक महीने बाद, रामगढ़ बटालियन के ई. रेफ्रीज ने एक बड़ी सेना के साथ नवागढ़ की ओर कूच किया। लड़ाई तीन दिनों तक चली। अंततः बख्तर सई और मुंडल सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया और 4 अप्रैल 1812 को कोलकाता में उन्हें फांसी दे दी गई।<ref>{{cite news|url=https://www.jagran.com/jharkhand/gumla-9096019.html|title=वासुदेवकोना में लड़ी गई थी आजादी की पहली लड़ाई|publisher=jagran|date=4 April 2012|access-date=17 October 2022}}</ref>
==सन्दर्भ==
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