"आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम": अवतरणों में अंतर

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आपातकालीन संघर्ष गाथा
केंद्र में सत्ताधारी दल बीजेपी आपातकाल के बहाने विपक्षी दल कांग्रेस को घेरने में लगी है. जून 1975 में लगाया गया आपातकाल शायद कांग्रेस की सबसे बड़ी भूल थी जिसका दंश आजतक पार्टी झेल रही है. इस दौरान लगाए गए मीसा कानून के तहत विपक्ष के तमाम नेताओं को जेल में डाल दिया गया, जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, लालू यादव, [[नितीश कुमार|नीतीश कुमार]], सुशील मोदी, जॉर्ज फर्नांडिस, रविशंकर प्रसाद तक शामिल थे.
मीसा कानून साल 1971 में लागू किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डालने के लिए किया गया. मीसा यानी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम में आपातकाल के दौरान कई संशोधन किए गए और इंदिरा गांधी की निरंकुश सरकार ने इसके जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने का काम किया.
मीसा बंदियों से भरी जेलें
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जेटली ने याद किए दिन
मोदी सरकार में मंत्री अरुण जेटली भी मीसा बंदी रह चुके हैं. उन दिनों को याद करते हुए जेटली ने लिखा, 'मुझे 26 जून 1975 की सुबह एकमात्र विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का गौरव मिला और मैं आपातकाल के खिलाफ पहला सत्याग्रही बन गया. मुझे यह महसूस नहीं हुआ कि मैं 22 साल की उम्र में उन घटनाओं में शामिल हो रहा था जो इतिहास का हिस्सा बनने जा रही थीं. इस घटना ने मेरे जीवन का भविष्य बदल दिया. शाम तक, मैं तिहाड़ जेल में मीसा बंदी के तौर पर बंद कर दिया गया था.'
आपातकाल लागू होने के साथ ही ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की गई जिनकी गिरफ्तारियां होनी थीं. इस लिस्ट में सबसे पहला नाम [[जयप्रकाश नारायण]] और [[मोरारजी देसाई]] का था. इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी को ये लिस्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया. सुबह होती इससे पहले ही जेपी और मोरारजी देसाई को मीसा के तहत जेल में डाल दिया गया. अगले 21 महीने दमन की दास्तां जारी रही.
जेल में तैयार हुआ विपक्ष
मीसा बंदियों ने जेलों में यातनाएं झेलीं जरूर लेकिन इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल करने की शुरुआत भी इन्हीं कैदियों ने की. जेपी से लेकर, चंद्रशेखर, वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस, लालू यादव, एलके आडवाणी, शरद यादव जैसे नेताओं ने जेल से बाहर आते ही इंदिरा सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया.