"गुरमुखी लिपि": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 3:
'''गुरमुखी लिपि''' (ਗੁਰਮੁਖੀ ਲਿੱਪੀ) एक [[लिपि]] है जिसमें [[पंजाबी भाषा]] लिखी जाती है।
 
गुरुमुखी का अर्थ है गुरुओं के मुख से निकली हुई। अवश्य ही यह शब्द ‘वाणी’ का द्योतक रहा होगा, क्योंकि मुख से लिपि का कोई संबंधसम्बन्ध नहीं है। किंतुकिन्तु वाणी से चलकर उस वाणी कि अक्षरों के लिए यह नाम रूढ़ हो गया। इस प्रकार गुरूओं ने अपने प्रभाव से पंजाबपञ्जाब में एक भारतीय लिपि को प्रचलित किया। वरना सिंधसिन्ध की तरह पंजाबपञ्जाब में भी फारसीफ़ारसी लिपि का प्रचलन हो रहा था और वही बना रह सकता था।
 
इस लिपि में तीन स्वर और 32३२ व्यंजनव्यञ्जन हैं। स्वरों के साथ मात्राएँ जोड़कर अन्य स्वर बना लिए जाते हैं। इनके नाम हैं उड़ाऊड़ा, आया, इड़ीईड़ी, सासा, हाहा, कका, खखा इत्यादि। अंतिमअन्तिम अक्षर ड़ाड़ा है। छठे अक्षर से कवर्ग आरंभआरम्भ होता है और शेष अक्षरों का (व) तक वही क्रम है जो देवनागरी वर्णमाला में है। मात्राओं के रूप और नाम इस प्रकार हैं। ट के साथ (मुक्ता), टा (कन्ना), टि (स्यारी), टी (बिहारी), ट (ऐंक ड़े), ट (दुलैंकड़े), टे (लावाँ), टै (दोलावाँ), (होड़ा), (कनौड़ा), (टिप्पी), ट: (बिदै)। इस वर्णमाला में प्राय: संयुक्त अक्षर नहीं हैं। यद्यपि अनेक संयुक्त ध्वनियाँ विद्यमान हैं।
 
== गुरमुखी वर्णमाला ==