"गुरु जम्भेश्वर": अवतरणों में अंतर

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== जीवन ==
[[गुरु जम्भेश्वर]] भगवान [[गुरु जम्भेश्वर|(जाम्भोजी)]] का जन्म [[राजस्थान]] के [[नागौर]] ज़िले के [[गुरु जम्भेश्वर|पीपासर]] गांव में विक्रमी संवत 1508 सन 1451 मैं भादवा वदी अष्टमी जन्माष्टमी (अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में) के दिन एक हिन्दू राजपूतजाट किसान परिवार में हुआ था। भगवान [[कृष्ण]] का भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता ''लोहट जी'' की 50 वर्ष की आयु तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। लोहट जी के 51वें वर्ष में [[भगवान विष्णु]] नेे बाल संत के रूप में आकर लोहट की तपस्या से प्रसन्न होकर उनको पुत्र प्राप्ती का वचन दिया। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध नहीं पिया था। साथ ही जन्म के बाद 7 वर्ष तक मौन रहे थे। और 7 वर्ष बाद भादवा वदी अष्टमी के दिन ही अपना मौन तोड़ा। और जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था जम्भदेव सादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ ही संत प्रवृति के कारण अकेला रहना पसंद करते थे। जाम्भोजी ने विवाह नहीं किया, इन्हें [[गाय|गौपालन]] प्रिय लगता था इन्होंने 27 वर्षों तक गायों की सेवा की थी इसी बीच इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई और उन्होंने अपनी संपत्ति जनकल्याण में लगा दी की और खुद समराथल धोरा पर निश्चित रूप से विराजमान हो गए इन्होने 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे । इन्होंने जात पात, छुआछूत, स्त्री पुरुष में भेदभाव, पेड़ पौधोंं की कटाई, जीव हत्या, नशे पते जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर किया मारवाड़ में 1585 में अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों को अपने पशुओं को लेकर मालवा जाना पड़ा था, इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को यहीं पर रुकने को कहा बोलें कि मैं आप की यहीं पर सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को भोजन तथा आवास स्थापित करने में सहायता की। [[हिन्दू धर्म]] के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत भय था साथ ही लोग हिन्दू धर्म संस्कृति में विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। इसलिए दुःखी लोगों की सहायता के लिए ईश्वर एक है के सिद्धांत पर गुरु जम्भेश्वर नेें विक्रमी संवत 1542 सन 1485 मेंं बीकानेर जिले के समराथल धोरे पर कार्तिक बदी अष्टमी को पाहल बनाकर [[बिश्नोई]] संप्रदाय की स्थापना की।
 
श्री गुरु जंभेश्वर भगवान विक्रमी संवत् 1593 सन 1536 मिंगसर वदी नवमी ( चिलत नवमी ) को लालासर में निर्वाण को प्राप्त हुए ।श्री गुरु जंभेश्वर भगवान का समाधि स्थल मुकाम है।