"रामचन्द्र शुक्ल": अवतरणों में अंतर

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'''आचार्य रामचन्द्र शुक्ल''' ([[11 अक्टूबर]], [[१८८४|1884ईस्वी]]- [[2 फरवरी]], [[१९४१|1941ईस्वी]]) [[हिन्दी]] आलोचक, कहानीकार, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है [[हिंदी साहित्य का इतिहास (पुस्तक)|हिन्दी साहित्य का इतिहास]], जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिन्दी में पाठ आधारित वैज्ञानिक [[आलोचना]] का सूत्रपात भी उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी [[निबन्ध]] के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार सम्बंधित मनोविश्लेषणात्मक [[निबन्ध]] उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्त्व दिया। उन्होंने प्रासंगिकता के दृष्टिकोण से साहित्यिक प्रत्ययों एवं रस आदि की पुनर्व्याख्या की।
 
== जीवन परिचय ==
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ईस्वी में [[बस्ती जिला|बस्ती जिले]] के [[अगोना]] नामक गांव में हुआ था। इनकी माता जी का नाम विभाषी था और पिता चंद्रबली शुक्ल की नियुक्ति सदर कानूनगो के पद पर [[मिर्ज़ापुर|मिर्जापुर]] में हुई तो समस्त परिवार वहीं आकर रहने लगा। जिस समय शुक्ल जी की अवस्था नौ वर्ष की थी, उनकी माता का देहान्त हो गया। मातृ सुख के अभाव के साथ-साथ विमाता से मिलने वाले दुःख ने उनके व्यक्तित्व को अल्पायु में ही परिपक्व बना दिया।
 
अध्ययन के प्रति लग्नशीलता शुक्ल जी में बाल्यकाल से ही थी। किंतु इसके लिए उन्हें अनुकूल वातावरण न मिल सका। मिर्जापुर के लंदन मिशन स्कूल से सन् 1901 में स्कूल फाइनल परीक्षा (FA) उत्तीर्ण की। उनके पिता की इच्छा थी कि शुक्ल जी कचहरी में जाकर दफ्तर का काम सीखें, किंतु शुक्ल जी उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। पिता जी ने उन्हें वकालत पढ़ने के लिए [[इलाहाबाद]] भेजा पर उनकी रुचि वकालत में न होकर [[हिंदी साहित्य|साहित्य]] में थी। अतः परिणाम यह हुआ कि वे उसमें अनुत्तीर्ण रहे। शुक्ल जी के पिताजी ने उन्हें नायब तहसीलदारी की जगह दिलाने का प्रयास किया, किंतु उनकी स्वाभिमानी प्रकृति के कारण यह संभव न हो सका।<ref>[http://thatshindi.oneindia.in/news/2008/09/04/2008090454626300.html आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर पुस्तक का लोकार्पण]{{Dead link|date=अक्तूबर 2022 |bot=InternetArchiveBot }} दैट्स हिन्दी पर</ref>
 
1903से 1908 तक 'आनन्द कादम्बिनी' के सहायक संपादक का कार्य किया। 1904 से 1908 तक लंदन मिशन स्कूल में ड्राइंग के अध्यापक रहे। इसी समय से उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे-धीरे उनकी विद्वता का यश चारों ओर फैल गया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर 1908 में [[काशी]] [[नागरी प्रचारिणी सभा]] ने उन्हें [[हिन्दी शब्दसागर]] के सहायक संपादक का कार्य-भार सौंपा जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। [[श्यामसुन्दरदास]] के शब्दों में 'शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय पं. [[रामचंद्र शुक्ल]] को प्राप्त है। वे [[नागरी प्रचारिणी पत्रिका]] के भी संपादक रहे। 1919 में [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए जहाँ [[बाबू श्याम सुंदर दास]] की मृत्यु के बाद 1937 से जीवन के अंतिम काल (1941) तक विभागाध्यक्ष का पद सुशोभित किया।
 
[[२ फरवरी|2फरवरी]], सन् [[१९४१|1941]]<nowiki/>को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गया।
 
== कृतियाँ ==