"बुद्धघोष": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल एप सम्पादन Android app edit
No edit summary
पंक्ति 17:
यद्यपि इसकी रचना [[धर्मकीर्ति]] नामक भिक्षु द्वारा १३वीं शती में की गई है, तथापि वह किसी अविच्छिन्न श्रुतिपरंपरा के आधार पर लिखा गया प्रतीत होता है। इसके अनुसार बुद्धघोष का जन्म [[बिहार]] प्रदेश के अन्तर्गत [[बोधगया|गया]] में [[बोधि वृक्ष|बोधिवृक्ष]] के समीप ही कहीं हुआ था। बालक प्रतिभाशाली था और उसने अल्पावस्था में ही [[वेद|वेदों]] का ज्ञान प्राप्त कर लिया, [[योग]] का भी अभ्यास किया फिर वह अपनी ज्ञानवृद्धि के लिए देश में परिभ्रमण व विद्वानों से वादविवाद करने लगा। एक बार वह रात्रिविश्राम के लिए किसी बौद्धविहार में पहुँच गया। वहाँ रेवत नामक स्थविर से वाद में पराजित होकर उन्होंने [[बौद्ध धर्म]] की दीक्षा ले ली। तत्पश्चात् उन्होंने [[त्रिपिटक]] का अध्ययन किया। उनकी असाधारण प्रतिभा एवं बौद्धधर्म में श्रद्धा से प्रभावित होकर बौद्ध संघ ने उन्हें बुद्धघोष की पदवी प्रदान की। उसी विहार में रहकर उन्होंने "ज्ञानोदय" नामक ग्रंथ भी रचा। यह ग्रंथ अभी तक मिला नहीं है। तत्पश्चात् उन्होंने अभिधम्मपिटक के प्रथम ग्रंथ "धम्मसंगणि" पर अठ्ठसालिनी नामक टीका लिखी। उन्होंने त्रिपिटक की अट्टकथा लिखना भी आरंभ किया। उनके गुरु [[रैवत]] ने उन्हें बतलाया कि भारत में केवल लंका से मूल पालि त्रिपिटक ही आ सकता है, उनकी महास्थविर महेंद्र द्वारा संकलित अट्टकथाएँ सिंहली भाषा में लंका द्वीप में विद्यमान हैं। अतएव तुम्हें वहीं जाकर उनको सुनना चाहिए और फिर उनका मागधी भाषा में अनुवाद करना चाहिए। तदनुसार बुद्धघोष लंका गए। उस समय वहाँ महानाम राजा का राज्य था। वहाँ पहुँचकर उन्होंने [[अनुराधपुर]] के महाविहार में [[संघपाल]] नामक स्थविर से सिंहली अट्टकथाओं और स्थविरवाद की परम्परा का श्रवण किया। बुद्धघोष को निश्चय हो गया कि धर्म के अधिनायक बुद्ध का वही अभिप्राय है। उन्होंने वहाँ के भिक्षुसंघ से अट्टकथाओं का मागधी रूपांतर करने का अपना अभिप्राय प्रकट किया। इसपर संघ ने उनकी योग्यता की परीक्षा करने के लिए संयुत्तनिकाय के बाह्मणवग्ग के अंतर्गत जटिलसुत्त की "अन्तो जटा बहि जटा" नामक दो प्राचीन गाथाएँ देकर उनकी व्याख्या करने को कहा। बुद्धघोष ने उनकी व्याख्यारूप विसुद्धिमग्ग की रचना की, जिसे देख संघ अति प्रसन्न हुआ और उसने उन्हें भावी बुद्ध मैत्रेय का अवतार माना। तत्पश्चात् उन्होंने अनुराधपुर के ही ग्रंथकार विहार में बैठकर सिंहली अट्टकथाओं का मागधी रूपांतर पूरा किया और तत्पश्चात् भारत लौट आए।
 
इस जीवनवृत्त में जो यह उल्लेख पाया जाता है कि बुद्धघोष राजा [[महानाम]] के शासनकाल में लंका पहुँचे थे, उससे उनके काल का निर्णय हो जाता है, क्योंकि महानाम का शासनकाल ईस्वी की चौथी शती का प्रारंभिक काल सुनिश्चित है। अतएव यही समय बुद्धघोष की रचनाओं का माना गया है। विसुद्धिमग्ग के अंत में उल्लेख है कि मोरण्ड खेटक निवासी बुद्धघोष ने बिसुद्धिमग्ग की रचना की। उसी प्रकार मज्झिमनिकाय की अट्टकथा में उसके मयूर सुत्त पट्टण में रहते हुए बुद्धमित्र नामक स्थविर की प्रार्थना से लिखे जाने का उल्लेख मिलता है। [[अंगुत्तरनिकाय]] की अट्टकथाओं में उल्लेख है कि उन्होंने उसे स्थविर ज्योतिपाल की प्रार्थना से [[कांचीपुरम|कांचीपुर]] आदि स्थानों में रहते हुए लिखा। इन उल्लेखों से ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी अट्टकथाएँ लंका में नहीं, बल्कि भारत में, संभवतः दक्षिण प्रदेश में, लिखी गई थीं। [[कम्बोडिया|कंबोडिया]] में एक बुद्धघोष विहार नामक अति प्राचीन संस्थान है तथा वहाँ के लागोंलोगों का विश्वास है कि वहीं पर उनका निर्वाण हुआ था और उसी स्मृति में वह बिहार बना।
 
== रचनाएँ ==