"वाकाटक": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Nagardhan Fort.jpg|right|thumb|300px|नन्दिवर्धन दुर्ग के भग्नावशेष]]
'''वाकाटक''' शब्द का प्रयोग [[प्राचीन भारत]] के एक राजवंश के लिए किया जाता है जिसने तीसरी सदी के मध्य से छठी सदी तक शासन किया था। उस वंश को इस नाम से क्यों संबंधित किया गया, इस प्रश्न का सही उत्तर देना कठिन है। शायद वकाट नाम का मध्यभारत में कोई स्थान रहा हो, जहाँ पर शासन करनेवाला वंश वाकाटक कहलाया। अतएव प्रथम राजा को [[अजंता]] लेख में "वाकाटक वंशकेतुः" कहा गया है। इस राजवंश का शासन मध्यप्रदेश के अधिक भूभाग तथा प्राचीन [[बरार]] (आंध्र प्रदेश) पर विस्तृत था, जिसके सर्वप्रथम शासक '''विन्ध्यशक्ति''' का नाम [[वायुपुराण]] तथा [[अजंता]]लेख मे मिलता है। काशीप्रसाद जायसवाल के अनुसार [[पल्लव]] व [[वाकाटक]] दोनों [[कायस्थकुल]] के [[क्षत्रिय]] थे।
 
सम्भवतः [[विन्ध्य पर्वत|विंध्य पर्वतीय]] भाग पर शासन करने के कारण प्रथम राजा 'विंध्यशक्ति' की पदवी से विभूषित किया गया। इस नरेश का प्रामाणिक इतिवृत्त उपस्थित करना कठिन है, क्योंकि विंध्यशक्ति का कोई [[अभिलेख]] या [[सिक्का]] अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका। तीसरी सदी के मध्य में [[सातवाहन|सातवाहन राज्य]] की अवनति हो जाने से विंध्यशक्ति को अवसर मिल गया तो भी उसका यश स्थायी न रह सका। उसके पुत्र '''प्रथम प्रवरसेन''' ने वंश की प्रतिष्ठा को अमर बना दिया। अभिलेखों के अध्ययन से पता चलता है कि प्रथम प्रवरसेन ने दक्षिण में राज्यविस्तार के उपलक्ष में चार [[अश्वमेध]] किए और सम्राट् की पदवी धारण की।