"ययाति": अवतरणों में अंतर

छो roboto aldono de: ta:யயாதி
No edit summary
पंक्ति 11:
इसके पश्चात् राजा ययाति ने अपने ज्येष्ठ पुत्र से कहा, "वत्स यदु! तुम अपने नाना के द्वारा दी गई मेरी इस वृद्धावस्था को लेकर अपनी युवावस्था मुझे दे दो।" इस पर यदु बोला, "हे पिताजी! असमय में आई वृद्धावस्था को लेकर मैं जीवित नहीं रहना चाहता। इसलिये मैं आपकी वृद्धावस्था को नहीं ले सकता।" ययाति ने अपने शेष पुत्रों से भी इसी प्रकार की माँग की किन्तु सबसे छोटे पुत्र पुरु को छोड़ कर अन्य पुत्रों ने उनकी माँग को ठुकरा दिया। पुरु अपने पिता को अपनी युवावस्था सहर्ष प्रदान कर दिया। पुनः युवा हो जाने पर राजा ययाति ने यदु से कहा, "तूने ज्येष्ठ पुत्र होकर भी अपने पिता के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण नहीं किया। अतः मैं तुझे राज्याधिकार से वंचित करके अपना राज्य पुरु को देता हूँ। मैं तुझे शाप भी देता हूँ कि तेरा वंश सदैव राजवंशियों के द्वारा बहिष्कृत रहेगा।" (राजा ययाति के इसी पुत्र यदु के वंश में श्री कृष्ण का अवतार हुआ तथा [[शिशुपाल]] ने धर्मराज [[युधिष्ठिर]] के राजसूय यज्ञ में ययाति के इसी शाप का उल्लेख किया था।)
 
राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्हों ने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया। ययाति को वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होने कहा-
 
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ताः<br>
तपो न तप्तं वयमेव तप्ताः ।<br>
कालो न यातो वयमेव याताः <br>
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः ॥ <br>
 
हमने भोग नहीं भुगते, बल्कि भोगों ने ही हमें भुगता है; हमने तप नहीं किया, बल्कि हम स्वयं ही तप्त हो गये हैं; काल समाप्त नहीं हुआ हम ही समाप्त हो गये; तृष्णा जीर्ण नहीं हुई, पर हम ही जीर्ण हुए हैं !
 
*'''उपकथा''': वृहस्पति के पुत्र कच गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में रह कर [[सञ्जीवनी]] विद्या सीखने आये थे। देवयानी ने उन पर मोहित होकर उनके सामने अपना प्रणय निवेदन किया था किन्तु गुरुपुत्री होने के कारण कच ने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दिया। इस पर देवयानी ने रुष्ट होकर कच को अपनी पढ़ी हुई विद्या को भूल जाने का शाप दिया। कच ने भी देवयानी को शाप दे दिया कि उसे कोई भी ब्राह्मण पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा।
 
* वृहस्पति के पुत्र कच गुरु शुक्राचार्य के आश्रम में रह कर [[सञ्जीवनी]] विद्या सीखने आये थे। देवयानी ने उन पर मोहित होकर उनके सामने अपना प्रणय निवेदन किया था किन्तु गुरुपुत्री होने के कारण कच ने उसके प्रणय निवेदन को अस्वीकार कर दिया। इस पर देवयानी ने रुष्ट होकर कच को अपनी पढ़ी हुई विद्या को भूल जाने का शाप दिया। कच ने भी देवयानी को शाप दे दिया कि उसे कोई भी ब्राह्मण पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करेगा।
==स्रोत==
[http://sukhsagarse.blogspot.com सुखसागर] के सौजन्य से
 
[[श्रेणी:धर्म]]
[[श्रेणी:हिंदू धर्म]]
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ययाति" से प्राप्त