"भारत की न्यायपालिका": अवतरणों में अंतर

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प्रशन केवल भारतीय अदालतों को भाषायी गुलामी से मुक्त कराने का ही नहीं है, बल्कि समूची न्याय व्यवस्था के भारतीयकरण करने का भी है। हमारे यहां की छोटी-बड़ी सभी अदालतों में करीब साढ़े तीन करोड़ मुकदमे लटके हुए हैं। एक-एक मुकदमे को निपटाने में दस-दस, पंद्रह-पंद्रह साल लग जाते हैं। इसका मुख्य कारण है वही अंगरेजी का एकाधिकार। हमारे सारे कानून अंगरेजी में और अंगरेजी राज की जरूरतों के मुताबिक बने हुए हैं। अपने नागरिकों को वास्तविक अर्थों में न्याय दिलाने के लिए इस समूची न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाना बहुत जरूरी है। ऐसा करने से न्याय व्यवस्था न सिर्फ सस्ती होगी, बल्कि मुकदमे भी जल्दी निपटेंगे और लोगों की न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था भी मजबूत होगी।
 
यदि हमारी न्यायपालिका से अंगरेजी की बिदाई हो जाती है तो फिर राजकाज और संसद से भी उसकी रुखसती में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
 
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