"भारत की न्यायपालिका": अवतरणों में अंतर

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==न्यायपालिका का भारतीयकरण==
बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध तक गुलाम रहे देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो अपनी आजादी के लगभग साढ़े छह दशक बीत जाने के बाद भी भाषायी लिहाज से किसी भी मौजूदा गुलाम देश से ज्यादा गुलाम बना हुआ है। देश में राजकाज की व्यवस्था ही नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था भी भाषायी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी हुई है। सितम्बर २०२१ में भारत के मुख्य न्यायधीश ने स्वयं कहा कि भारतीय न्यायव्यवस्था के भारतीयकरण की महती आवश्यकता है।<ref>[https://www.newsnationtv.com/india/news/indianiation-of-legal-ytem-i-the-need-of-the-hour-cji-ramana-211639.html हमारी कानूनी प्रणाली का भारतीयकरण किया जाना समय की जरूरत : मुख्य न्यायधीश वेंकटरमण]</ref>
 
प्रशन केवल भारतीय अदालतों को भाषायी गुलामी से मुक्त कराने का ही नहीं है, बल्कि समूची न्याय व्यवस्था के भारतीयकरण करने का भी है। हमारे यहां की छोटी-बड़ी सभी अदालतों में करीब साढ़े तीन करोड़ मुकदमे लटके हुए हैं। एक-एक मुकदमे को निपटाने में दस-दस, पंद्रह-पंद्रह साल लग जाते हैं। इसका मुख्य कारण है वही अंगरेजी का एकाधिकार। हमारे सारे कानून अंगरेजी में और अंगरेजी राज की जरूरतों के मुताबिक बने हुए हैं। अपने नागरिकों को वास्तविक अर्थों में न्याय दिलाने के लिए इस समूची न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाना बहुत जरूरी है। ऐसा करने से न्याय व्यवस्था न सिर्फ सस्ती होगी, बल्कि मुकदमे भी जल्दी निपटेंगे और लोगों की न्याय व्यवस्था के प्रति आस्था भी मजबूत होगी।