"यमुनोत्री": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनि का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से 251 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से 131 किलोमीटर पश्चिम -उत्तर में 3185 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से 5
एक पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनि का निवास था। वर्तमान मंदिर जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में बनवाया था। भूकम्प से एक बार इसका विध्वंस हो चुका है, जिसका पुर्ननिर्माण कराया गया। यमुनोत्तरी तीर्थ, उत्तरकाशी जिले की राजगढी(बड़कोट) तहसील में ॠषिकेश से 251 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में तथा उत्तरकाशी से 131 किलोमीटर पश्चिम -उत्तर में 3185मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।यह तीर्थ यमुनोत्तरी हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर है।यहाँ पर प्रकृति का अद्भुत आश्चर्य तप्त जल धाराओं का चट्टान से भभकते हुए "ओम् सदृश "ध्वनि के साथ नि:स्तरण है।तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है,वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है।वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।(यमुनोत्तरी का मार्ग) हनुमान चट्टी (2400मीटर) यमुनोत्तरी तीर्थ जाने का अंतिम मोटर अड्डा है।इसके बाद नारद चट्टी,फूल चट्टी व जानकी चट्टी से होकर यमुनोत्तरी तक पैदल मार्ग है।इन चट्टीयों में महत्वपूर्ण जानकी चट्टी है,क्योंकि अधिकतर यात्री रात्रि विश्राम का अच्छा प्रबंध होने से रात्रि विश्राम यहीं करते हैं।कुछ लोग इसे सीता के नाम से जानकी चट्टी मानते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है।1946में एक धार्मिक महिला जानकी देवी ने बीफ गाँव में यमुना के दायें तट पर विशाल धर्मशाला बनवाई थी,और फिर उनकी याद में बीफ गाँव जानकी चट्टी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहीं गाँव में नारायण भगवान का मन्दिर है।पहले हनुमान चट्टी से यमुनोत्तरी तक का मार्ग पगडंडी के रूप में बहुत डरावना था,जिसके सुधार के लिए खरसाली से यमुनोत्तरी तक की 4मील4 मील लम्बी सड़क बनाने के लिए दिल्ली के सेठ चांदमल ने महाराजा नरेन्द्रशाह के समय50000रुपएसमय दिए।पैदल50000/- रुपए दिए। पैदल यात्रा पथ के समय गंगोत्री से हर्षिल होते हुए एक "छाया पथ "भी यमुनोत्तरी आता था।यमुनोत्तरी से कुछ पहले भैंरोघाटी की स्थिति है।जहाँ भैंरो का मन्दिर है।अनेकहै। अनेक पुराणों में यमुना तट पर हुए यज्ञों का तथा कूर्मपुराण(39/9_13)में यमुनोत्तरी माहात्म्य का वर्णन है।केदारखण्डहै। केदारखण्ड(9/1-/10)में यमुना के अवतरण का विशेष उल्लेख है।इसे सूर्यपुत्री,यम सहोदरा और गंगा- यमुना को वैमातृक बहने कहा गया है।ब्रह्मांड पुराण में यमुनोत्तरी को"यमुना प्रभव"तीर्थ कहा गया है। ॠग्वेद (7/8/19)मे यमुना का उल्लेख है।महाभारतहै। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी,तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे,तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है। हेमचन्द्र ने अपने "काव्यानुशान "मे कालिन्द्रे पर्वत का उल्लेख किया है,जिसे कालिन्दिनी(यमुना) के स्रोत प्रदेश की श्रेणी माना जाता है।डबराल का मत है कि कुलिन्द जन की भूमि संभवतः कालिन्दिनी के स्रोत प्रदेश में थी।अतः आज का यमुना पार्वत्य उपत्यका का क्षेत्र, जो रंवाई,जौनपुर जौनसार नामों से जाना जाता है,प्राचीनकाल में कुणिन्द जनपद था।"महामयूरी"ग्रंथ के अनुसार यमुना के स्रोत प्रदेश में दुर्योधन यक्ष का अधिकार था।उसकाथा। उसका प्रमाण यह है कि पार्वत्य यमुना उपत्यका की पंचगायीं और गीठ पट्टी में अभी भी दुर्योधन की पूजा होती है।यमुना तट पर शक और यवन बस्तियों के बसने का भी उल्लेख है।काव्यमीमांसाकार ने 10वीं शताब्दी में लिखा है कि यमुना के उत्तरी अंचलों में जहाँ शक रहते हैं,वहाँ यम तुषार- कीर भी है।इस प्रकार यमुनोत्तरी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही।(तप्तकुण्ड व अन्य कुण्ड) यमुनोत्तरी पहुँचने पर यहाँ के मुख्य आकर्षण यहाँ के तप्तकुण्ड हैं।इनमें सबसे तप्त जलकुण्ड का स्रोत मन्दिर से लगभग 20फीट20 फीट की दूरी पर है,केदारखण्ड वर्णित ब्रह्मकुण्ड अब इसका नाम सूर्यकुण्ड एवं तापक्रम लगभग195डिग्रीलगभग 195° फारनहाइट है,जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है।इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे "ओम् ध्वनि"कहा जाता है।इस स्रोत में थोड़ा गहरा स्थान है।जिसमें आलू व चावल पोटली में डालने पर पक जाते हैं,हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले की पार्वती घाटी में मणिकर्ण तीर्थ में स्थित ऐसे ही तप्तकुण्ड को "स्टीम कुकिंग"कहा जाता है।सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है।जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है,इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है।इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है,ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है।यमुनोत्तरी से 4मील4 मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है।विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।दुर्गम होने के कारण साधारण व्यक्ति यहाँ नहीं पहुँच सकता।स्थानीयसकता। स्थानीय लोगों का कहना है कि आजसे लगभग 60साल60 साल पहले विष्णुदत्त उनियाल वहाँ गए थे।लौटते समय उन्होंने वहाँ एक शिवलिंग देखा।जैसे ही वह उसे उठाने के लिए हुए वह गायब हो गया।
 
== भूगोल ==