"चंद्रदेव": अवतरणों में अंतर

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== चंद्रदेव को श्राप ==
 
चंद्रदेव का [[विवाह]] [[ब्रह्मा]] के पुत्र [[दक्ष प्रजापति|प्रजापति दक्ष]] और उनकी पत्नी [[वीरणी]] की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। चंद्र इनमें से रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। कहते हैं चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से इतना प्रेम करने लगे कि अन्य 26 पत्नियां चंद्रमा के बर्ताव से दुखी हो गईं. जिसके बाद सभी 26 पत्नियों ने अपने पिता [[दक्ष प्रजापति]] से चंद्र की शिकायत की. बेटियों के दुख से क्रोधित [[दक्ष]] ने चंद्रमा को श्राप दे डाला [[दक्ष]] के श्राप के बाद चंद्रमा क्षयरोग के शिकार हो गए। श्राप से ग्रसित होकर चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा। इससे पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ने लगा।
==== दक्ष प्रजापति द्वारा चंद्र को श्राप ====
चंद्रदेव का [[विवाह]] [[ब्रह्मा]] के पुत्र [[दक्ष प्रजापति|प्रजापति दक्ष]] और उनकी पत्नी [[वीरणी]] की सत्ताईस पुत्रियों से हुआ था। चंद्र इनमें से रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। कहते हैं चंद्रमा अपनी पत्नी रोहिणी से इतना प्रेम करने लगे कि अन्य 26 पत्नियां चंद्रमा के बर्ताव से दुखी हो गईं. जिसके बाद सभी 26 पत्नियों ने अपने पिता [[दक्ष प्रजापति]] से चंद्र की शिकायत की. बेटियों के दुख से क्रोधित [[दक्ष]] ने चंद्रमा को श्राप दे डाला [[दक्ष]] के श्राप के बाद चंद्रमा क्षयरोग के शिकार हो गए। श्राप से ग्रसित होकर चंद्रमा का तेज क्षीण पड़ने लगा। इससे पृथ्वी की वनस्पतियों पर भी बुरा असर पड़ने लगा।
 
==== गणेश जी द्वारा चंद्र को श्राप ====
[[गणेश पुराण|गणेशपुराण]] में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार भगवान [[शिव]] और माता [[पार्वती]] ने सभी देवताओं को भोजन पर आमंत्रित किया था।भोजन करने के पश्चात् चंद्रदेव आकाश में स्थित हो गए और [[गणेश]]जी मूषक पर बैठकर टहलने निकल पड़े। [[गणेश]] जी की शारीरिक रचना देखकर चंद्रदेव मन ही मन में हंसने लगे। जब मूषक का संतुलन बिगड़ गया तो उन्होंने [[गणेश]] जी से कहा कि "[[गणेश]] जी आपकी आकृति बड़ी विचित्र है आपके भार से मूषक भी चलने में असमर्थ हो रहे हैं। आपके हाथ पांव तो खम्भ जैसे हैं विशालकाय [[हाथी]] का सिर है और आपका [[पेट]] तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे अन्न का पूरा भण्डार हो।" आपको देखकर तो मेरी हंसी रूक ही नहीं रही।" चंद्र की ऐसी बातें सुनकर [[गणेश]] जी ने उन्हें अपनी चमक खोने का श्राप दिया।
 
== श्राप से मुक्ति ==
चंद्रदेव ने भगवान [[विष्णु]] के कहने पर प्रभास तीर्थ में जाकर १०८ बार [[महामृत्युंजय मन्त्र]] का जप किया तथा भगवान [[शिव]] की कृपा से उस श्राप से मुक्ति पाई। आज ये स्थान भगवान [[शंकर]] का [[सोमनाथ मन्दिर|सोमनाथ ज्योत्रिलिंग]] कहलाता है।
====गणेश जी द्वारा चंद्र को श्राप से मुक्ति====
[[गणेश]] जी से श्राप मिलने के बाद चंद्रदेव एक सरोवर में जा छुपे थे। [[गणेश]] जी को कुछ समय बाद अपनी भूल का अहसास हुआ और वे चंद्रदेव को श्राप मुक्त करने के लिए खोजने लगे। बाद में चंद्रदेव से वे बोले "चंद्रदेव आपको मैंने एक छोटी सी भूल का बड़ा श्राप देकर बहुत बड़ा अपराध किया है। इसलिए मैं आपको श्राप मुक्त करता हूं। लेकिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आपके दर्शन करने वाले व्यक्ति को कलंक लगेगा। इसलिए मेरे जन्मदिवस को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जानेंगे।" इसी कारण चंद्रदेव के दर्शन गणेश चतुर्थी को नहीं करने चाहिए।
 
== सन्दर्भ ==