"भाप का इंजन": अवतरणों में अंतर

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भाप इंजन बनाने के यत्न का सबसे प्राचीन उल्लेख अलेक्जैंड्रिया के हीरो के लेखों में मिलता है। हीरो उस विख्यात अलैक्जैंड्रीय संप्रदाय (300 ई.पू.-400 ई। सन्) schwör bei koranका सदस्य था जिसमें टोलेमी, यूक्लिड, इरेटोस्थनीज जैसे तत्कालीन विज्ञान के महारथी सम्मिलित थे। हीरो ने अपने लेख में एक ऐसी युक्ति का वर्णन किया है जिसमें एक बंद बाक्स में वायु गर्म की जाती थी और एक नली के मार्ग से नीचे पानी भरे बर्तन की ओर फैलती थी। इसमें बर्तन का पानी दूसरी नली में चढ़ता था और एक नकली फुहारा बन जाता था। फिर इसके बाद इस संबंध में कहीं कोई विवरण नहीं मिलता है।
 
1606 ई. में, हीरो से लगभग 2,000 वर्ष बाद, नेपोलियन अकादमी के संस्थापक और तत्कालीन [[यूरोप]] में विज्ञान के अग्रणी नेता मार्क्सेव देला पोर्ता ने हीरो के फुहारेवाले प्रयोग में हवा की जगह भाप का उपयोग किया। उन्होंने यह भी सुझाया कि किसी बर्तन को पानी से भरने के लिए यदि उसे एक नली द्वारा पानी से किसी तालाब से संबंधित कर दिया जाय और तब उस बर्तन में भाप भरकर फिर उसे ऊपर से पानी के द्वारा ठंडा किया जाय तो भीतर की भाप संघनित होकर निर्वात उत्पन्न करेगी और उसकी जगह तालाब से पानी बर्तन में भर जाएगा।
 
1698 ई. में मार्क्सेव देला पोर्ता के इस सुझाव का उपयोग टामस सेवरी ने पानी चढ़ाने की एक मशीन में किया। इस प्रकार '''सेवरी पहला व्यक्ति था जिसने व्यावसायिक उपयोग का एक भाप इंजन बनाया''', जिसका उपयोग खदानों में से पानी उलीचने और कुओं में से पानी निकालने में हुआ।
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सेवरी के इंजन के आविष्कार के बाद भाप इंजन का अगला चरण '''न्यूकोमेन इंजन''' का आविष्कार था। इसका आविष्कार टामस न्यूकोमेन (1663-1729 ई.) ने किया। इस इंजन का खदानों और कुओं से पानी निकालने में 50 वर्षों तक उपयोग होता रहा। इसका ऐतिहासिक महत्व भी है, क्योंकि इसी से जेम्स वाट के आविष्कारों का मार्ग खुला। इस इंजन में पहली बार सिलिंडर और पिस्टन का उपयोग किया गया जो अब तक भाप इंजनों में प्रयुक्त किए जाते हैं।
 
न्यूकामेन इंजन में भाप केवल निर्वात उत्पन्न करने के काम आती है। पिस्टन उठाने का काम, जिससे पानी चढ़ता है, [[वायुमंडलीय दाब]] करता है। लेकिन भाप को केवल संघनित करने में बहुत ईंधन व्यर्थ खर्च होता है।
 
जेम्स वाट का महत्वपूर्ण कार्य भाप इंजन को सर्वश्रेष्ठ रूप देना है जिससे मनुष्य की शक्ति दस गुनी बढ़ गई और व्यावसायिक क्षेत्र में बृहद् परिवर्तन हो गया।
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== भाप इंजन का कार्यसिद्धांत (working principle) ==
[[चित्र:Steam locomotive work.gif|center|500px|thumb|भाप की शक्ति से चलने वाली गाड़ी का कार्यसिद्धान्त]]
[[ऊष्मा इंजन]] की अधिकतम दक्षता '''(T1-T2)/T1''' होती है जिसमें '''T1''' और '''T2''' ऊष्मा इंजन चक्र (heat engine cycle) में अधिकतम एवं न्यूनतम ताप हैं। इससे पता चलता है कि इंजन की [[दक्षता]] इन दोनों तापों पर निर्भर करती है। भांप इंजन की दक्षता उतनी ही बढ़ती जाएगी जितनी (T1) का मूल्य बढ़ेगा एवं (T2) का मूल्य घटेगा। (T1) के मूल्य को बढ़ाने के लिए बायलर से निकल कर इंजन में आनेवाली भाप की दाब को बढ़ाना होगा, क्योंकि भाप की दाब जितनी ही अधिक होगी (T1) का मूल्य उतना ही बढ़ेगा। (T1) को बढ़ाने का एक और उपाय है। वह है भाप को अतितापित (superheat) करना। अतितापक का बॉयलर में व्यवहार करके भाप का अधिताप बढ़ाया जाता है। (T2) के मान को कम करने के लिए [[संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण)|संघनित्र]] (condenser) का व्यवहार करना आवश्यक हो जाता है। संघनित्र में ठंढे जल द्वारा भाप जल में परिवर्तित की जाती है। अत: अच्छे संघनित्र में (T2) का मान ठंढे जल के ताप के बराबर हो सकता है। इससे पता चलता है कि भाप इंजन में अधिक दाब एवं अतितप्त भाप द्वारा कार्य कराने से एवं कार्य कराने के बाद भाप को संघनित्र में प्राप्य ठंढे जल के ताप के बराबर ताप पर जल में परिवर्तित करने से इंजन अधिक दक्ष होगा।
[[चित्र:Steam engine in action.gif|right|thumb|300px|भाप के इंजन का चालित-चित्र]]
बॉयलर से भाप उच्च दाब पर भापपेटी (steam chest) में प्रवेश करती है। पिस्टन जैसे ही स्ट्रोक (stroke) के अंत में पहुँचता है, उसी समय वाल्व चलता है, जिसमें भापद्वार (steam port) खुल जाता है एवं भाप सिलिंडर में प्रवेश करती है। भाप की दाब द्वारा धक्का दिए जाने से पिस्टन आगे बढ़ता हे। इसे अग्र स्ट्रोक (forward stroke) कहते हैं। पिस्टन की चाल द्वारा क्रैंक, क्रैंक शाफ्ट एवं उत्केंद्रक (eccentric) चलते हैं। उत्केंद्रक के चलने से द्वार कुछ और अधिक खुल जाता है। सिलिंडर में भाप तब तक प्रवेश करती रहती है जब तक द्वार एकदम बंद नहीं हो जाता। इस समय विच्छेद (cut off) होता है एवं इसके बाद सिलिंडर में भाप का संभरण (supply) नही हो पाता। सिलिंडर में आई हुई भाप अब प्रसारित होती है एवं इस प्रसार में भाप का आयतन बढ़ जाता है एवं दाब कम हो जाती है। इसी प्रकार के समय भाप कार्य करती है। अग्र स्ट्रोक के अंत में वाल्व भापद्वार को निकास की ओर खोल देता है, जिससे भाप निर्मुक्त होती है। निकली हुई भाप की दाब पश्च दाब (back pressure) के बराबर हो जाती है। निर्मोचन होने के कुछ क्षण के बाद पिस्टन पीछे की ओर लौटता है एवं इसे प्रत्यावर्तन स्ट्रोक (return stroke) कहते हैं। इस स्ट्रोक में लौटते समय पिस्टन सिलिंडर में बची हुई भाप का निकास करता जाता है। जब पिस्टन इस स्ट्रोक के अंत पर पहुँचता है, वाल्व निकास द्वार को बंद कर देता है, जिससे भाप का प्रवाह बंद हो जाता है। सिलिंडर शीर्ष और पिस्टन के बीच कुछ भाप बच जाती है, जो निर्मुक्त नहीं हो पाती है। फिर चक्र की पुनरावृत्ति होती है।