"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर

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'''रामदेव जी''' (बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर)<ref>{{Cite web |url=http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |title=रामदेव जी के पर्चे |access-date=3 जून 2017 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170615171217/http://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-mahapurush/ramapeer-114102900012_1.html |archive-date=15 जून 2017 |url-status=dead }}</ref> [[राजस्थान]] के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल [[रामदेवरा]] ([[जैसलमेर जिला|जैसलमेर]]) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया सेे दसमी तक भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।
 
वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं।नाथ पंथ के सिरोमनी बाबा रामदेवहैं।
 
रामदेवजी जन्म उंडुकासमेर (बाड़मेर) में हुआ।
 
रामदेव जी तवंर वंशीय राजपूत थे।
 
इनकी ध्वजा, नेजा कहताली हैं, नेजा सफेद या पांच रंगों का होता हैं
 
बाबा राम देव जी एकमात्र लोक देवता थे, जो कवि भी थे।
 
राम देव जी की रचना चैबीस वाणियाँ कहलाती है। इन्होने कामड़ पंथ की स्थपना की।
 
रामदेव जी का प्रतीक चिन्ह पगल्ये कहलाते है। और इनके पगल्यों की पूजा की जाती है।
 
इनके लोकगाथा गीत ब्यावले कहलाते हैं।
 
इनके मेघवाल भक्त रिखिया कहलाते हैं
 
बालीनाथ जी इनके गुरू थे। जिनसे योग की शिक्षा ग्रहण की थी
 
नाथ पंथ में शिक्षा ली
 
गुरु की महिमा के लिए रामदेव जी द्वारा रचित भजन
 
अलख धणी की जय 🚩
 
निष्कलंक नाथ की सदा जय
 
अलख धणी निष्कलंक नाथ की सदा जय 🚩
 
गुरू प्रमाण
 
🌹🙏🏻🌹
 
सुणलौ गुरु गम ग्यान निहारी,
 
गुरु किरपा गोविंद गत जाणौ,
 
आवै भरोसौ भारी ||टेक||
 
ग्यानी गुरु भव दुःख सगळा मेटै,
 
अग्यानी आप उळझावै |
 
मंगता आगै मंगता मांगै,
 
भूल्या औरां नैं भूलावै ||१||
 
गुरु बिना ग्यान ध्यान नईं पावै,
 
संसय कौण मिटावै |
 
सरणै आयां री संका सह मेटै,
 
निरभै मुगति पावै ||२||
 
केई गुरु इसा आरंभ कर,
 
भला ढूंग पाखंड चलावै |
 
पेरै भेख भरम रा भांडा,
 
यूं कांई मुगति पावै ||३||
 
भेदी जकौ भरमै नईं,
 
कदै नीं पाखंड बणावै |
 
वेद सास्त्र परचै करिया,
 
भळै न पाछौ आवै ||४||
 
आपो नईं खोजै औरां नै परमोदै,
 
भूल्या नै भरमावे |
 
जळ डूबै जळ गह धारा,
 
दूणौ पींदै जावै ||५||
 
अग्यानी गुरु नईं कीजै,
 
नहचै नाव डुबोवे |
 
ज्युं सांग बहरूपिया बाजी,
 
यूं भूल्या भेख बणावै ||६||
 
सिमरथ गुरु सांसौ सब मेटै,
 
निजमन होय ध्यावै |
 
लट भंवरा ज्यूं गत होई जाई,
 
होय भंवर उड़ जावै ||७||
 
घर-घर में चेला कर लेवै,
 
स्वारथ लोभ लगावै |
 
अासा लागी आसरौ बांधै,
 
चादर धोती मंगावै ||८||
 
गुरु गोविंद एक कर जाणौ,
 
चवदह लोक गुरु सम नाईं |
 
गुरु महिमा बरंणी न जावै,
 
वेद सास्त्र सगळा गावे ||९||
 
"बालीनाथ" गुरु सेन बताई,
 
निज धरम रै मांही |
 
अजमल सुत "रामदेव" भाखै,
 
अपणै में आप समाही ||१०||
 
भावार्थ :~ गुरु की महीमा समजाते हुए "श्री गुरु प्रमांण" में
 
रामदेवजी महाराज कहते हैं की -
 
है लोगो! ज्ञान-दृष्टि के लिए गुरु का रहस्य सुनिए |
 
गुरु के प्रती दृढ़ विश्वास, अटूट आस्था धारण करके गुरु की कृपा दृष्टि प्राप्त करो, जिससे तुम ईश्वर का स्वरूप पहचान सको |
 
समर्थ (ज्ञानी) व असमर्थ (अज्ञानी) गुरु का अंतर स्पष्ट करते हुए बाबा रामदेवजी आगे कहते हैं की- ज्ञानी गुरु संसार के समस्त दुःखों (त्रयताप) का नाश कर देता है,
 
जबकि अज्ञानी गुरु माया-जाल में उलझा देता है |
 
अज्ञानी गुरु धारण करने पर शिष्य की स्थिति ठीक उसी प्रकार होती है, जैसे कि एक भिक्षुक, दूसरे भिक्षक से द्रव्य या अन्न की मांग कर रहा हो, जो निरर्थक है |
 
निज स्वरुप (आत्म ज्ञान) को भूला हुआ अज्ञानी गुरु जो स्वयं भ्रमित है, दूसरों (शिष्यों) को भी (आत्म-ज्ञान देने में असमर्थ होने से) भ्रमित करता है ||१||
 
गुरु (सदगुरु या समर्थ गुरु) के बिना ज्ञान प्राप्त नही हो सकता |
 
सदगुरु के बिना संशय को दूसरा कौन मिटा सकता है ?,
 
जो श्रद्धापूर्वक सदगुरु की शरण में चला जाता है,
 
सदगुरु उसके समस्त संशय नष्ट कर देता है |
 
संशय के नष्ट होने पर वह निर्भय होकर मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करता है ||२||
 
कई तथाकथित गुरु ऐसे भी होते हैं जो गुरू पद के पात्र नहीं होने पर भी गुरु का अभिनय करते हुए कईं प्रकार के ढोंग-पाखंड करते है |
 
वे लोग आत्म ज्ञान के अभाव में भ्रांति या संशय के भाण्ड (बर्तन) मात्र हैं,
 
जिन्होंने दिखावे के लिए साधु वेष (भगवा वस्त्रादि) पहन रखा है,
 
इस प्रकार के बाह्य-आडंबर से कोई भी व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता ||३||
 
जो भेदज्ञ (परम तत्व के रहस्य का ज्ञाता) है वह कभी भी भ्रमित (मिथ्या ज्ञान द्वारा संशय- युक्त) नहीं होता है |
 
ऐसा (परम तत्ववेता) व्यक्ति कभी भी पाखंड नही करता है | वेद शास्त्रीय ज्ञान को आत्म-सात कर लेने वाला ऐसा व्यक्ति पुनर्जन्म को प्राप्त नही होता है, अर्थात वह आवागमन से छुटकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है ||४||
 
जो अपने निज स्वरुप (आत्मस्वरूप) को नही खोजता है तथा (आत्मज्ञान के अभाव में भी) अन्य लोगों को ज्ञानोपदेश देता है,
 
वह अपने भूले भटके श्रोतागणों (शिष्यों) को और अधिक भ्रमित करता है |
 
इस प्रकार के असमर्थ गुरू के शिष्यो की वही दशा होती है,
 
जैसे कि समुद्र में डूबता हुआ कोई व्यक्ति बचने के लिए जल धारा को ही पकडे तो वह बचने की अपेक्ष और भी तीव्र गति से जल-गर्त में जाएगा |
 
अर्थात् भव-सागर से पार होने के लिए यदि किसी अज्ञानी (असमर्थ) गुरू का आश्रय ग्रहण किया जाएगा तो और अधिक तेज गति से रसातल को जायेगा, भव सागर में डूब जाएगा ||५||
 
अज्ञानी व्यक्ति को गुरु नहीं बनाना चाहिए,
 
वह निश्चय ही इस जीवन रुपी नौका को भव-सागर में डुबो देगा |
 
ज्ञान मार्ग से भटके हुए पाखंडी गुरु ऐसी वेशभूषा धारण करके आडंबर करते हैं जैसे कि बहुरुपिया या बाजीगर स्वांग या तमाशा करता हों ||६||
 
समर्थ गुरु समस्त सांसारिक कष्ट तथा संशय मिटा देता है.
 
गुरु कृपा से संशय रहित होकर जो शिष्य शुद्ध चित से परम तत्व परब्रह्म का ध्यान करता है,
 
उसकी गति (दशा, स्थिति) लट्ट और भ्रमर जैसी हो जाती है |
 
जिस प्रकार भ्रमर की संतान भ्रमर होते हुए भी पंख के अभाव में 'लट्ट' की संज्ञा से अभीहित होती है,
 
परन्तु पंख आ जाने पर वह भी भ्रमर की संज्ञा व तद्धर्म धारण करके अर्थात भ्रमर बनकर उड़ जाती है |
 
ठीक उसी प्रकार समर्थ गुरु का सच्चा शिष्य आत्म-ज्ञान रुपी पंख धारण करके गुरुवत् हो जाता है, वह सदगुरु के स्वरुप व तेज को प्राप्त कर लेता है अर्थात् स्वयं समर्थ हो जाता है और माया-पाश को काटकर अनंत आकाश (ब्रह्माकाश) में उड़ जाता है |
 
इस प्रकार समर्थ गुरु अपने शिष्य को अपने जैसा समर्थ बना देता है,
 
तब शिष्य गुरुवत एवं गुरुमय हो जाता है |
 
अंश, अंशी में मिल जाता है |
 
जीवात्मा ब्रह्म (परमात्मा) में विलीन हो जाता है ||७||
 
पाखंडी व अज्ञानी गुरु स्वार्थ सिद्धि के लिए घर-घर में चेले बनाते फिरते हैं,
 
ऐसे लोभी गुरु सदैव पराई आशा में स्वार्थ पूर्ति का अनुमान करत रहतेे हैं तथा शिष्यों से चादर धोती आदी मांगकर लेते अथवा मंगवाते है ||८||
 
समर्थ सदगुरु (ब्रह्मज्ञानी गुरु) और भगवान में कोई भेद नही है, ऐसे गुरु और गोविंद को एक ही समझो |
 
चौदह लोक में सदगुरु के समान महिमामय और कोई भी नही है |
 
सभी वेद शास्त्र गुरु महिमा गाते हैं, फिर भी उसका पुरा वर्णन नही हो सकता, क्योंकी वह "वर्णनातीत" है तथा गुरू का उपदेश "अक्षरातीत" है ||९||
 
मैं अजमल सुत "रामदेव" यह कहता हुं कि मुझे तो मेरे सदगुरु "बालीनाथजी" ने निजधर्म अर्थात आत्म-स्वरुप (आत्म तत्व व ब्रह्मज्ञान) प्राप्त करने का संकेत दिया
 
(दिशा-निर्देश दिया, पथ प्रदर्शित किया), जिससे मैं अपने शुद्ध आत्म-स्वरुप को प्राप्त होकर अपने आप में समाविष्ट हो गया अर्थात ब्रह्ममय हो गया ||१०||
 
🚩मिंयाला महाराज योगीराज  बाबा रामदेव जी की युगों युग जय जयकार
 
 
==पृष्ठभूमि==