गूलर, २ प्रकार का होता है- नदी उदुम्बर और कठूमर। कठूमर के पत्ते गूलर के पत्तों से बडे होते हैं। इसके पत्तों को छूने से हाथों में खुजली होने लगती है और पत्तों में से दूध निकलता है।
[[ {{गूलर गांव}}]]
गूलर के [[गेहलपीर]] जी क्यों प्रसिद्ध हैं?
[[राजस्थान]] राज्य के [[नागौर]] जिले की [[परबतसर]] तहसील के गांव गूलर में गेहल पीर जी की धाम प्रसिद्ध है। गूलर के ठाकुर बिशन सिंह जी ने 1857 की क्रांति के समय क्रान्तिकारियों को साथ दिया था, अतः जोधपुर दरबार नाराज़ हो गये थे। वि.संवत् 1910 में जोधपुर नरेश ने कुशलराज सिंघवी के नेतृत्व में एक सेना गूलर भेजी। गेहल पीर जी को नमन करके ठाकुर बिशन सिंह जी ने इस सेना का वीरतापूर्वक सामना किया। बड़े दरबार की अथाह सेना को देखते हुए गूलर दुर्ग का त्याग कर छापामार युद्ध जारी रखा। ऐसी किंवदंती प्रचलित है कि गेहल पीर जी ने गूलर ठाकुर बिशन सिंह जी की रक्षा की थी।
नाथ रहस्य में ऐसा बताया गया है कि गढ़ रणथंभौर के महाराजा हमीर देव चौहान विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों युद्ध के काम आ गये थे। यह समाचार जब उनकी रानी को मिला उस समय वह नौ माह की गर्भवती थी, परन्तु संतान उत्पत्ति में कुछ समय बाकी था। रानी जी ने तत्काल अपने पेट को चीरकर बालक को जन्म देकर एक दासी को सौंप दिया और स्वयं अपने पति के साथ स्वर्ग सिधार गई।
दासी के लिए बालक की परवरिश करना और आक्रमणकारियों से बचाए रखना बड़ा दुरुह कार्य था।
उन्हीं दिनों सिद्ध महात्मा पोंगल नाथ (पागल नाथ जी) घूमते हुए उधर से निकले तो दासी ने बालक उन्हें दे दिया जिसे लेकर वे अपने धूणे पर हरनावां आ गये।
यह बालक महाराज का सौवां शिष्य था। जब बालक पांच वर्ष से कुछ अधिक हुआ। उस समय गुरू पागल नाथ जी अपने सभी शिष्यों के साथ कुंभ स्नान के लिए गये। सभी शिष्य सेवा में लगे हुए थे।
कुछ शिष्यों को महाराज ने लकड़ी लाने के लिए भेज दिया जिनमें यह बालक भी सम्मिलित था। बालक ने कुछ लकड़ियां जुटाई पर वह उन्हें बांधकर सिर पर नहीं रख सका और रोने लगा। तब उसे एक दिव्य देवी के दर्शन हुए जो उसे कहने लगी " अरे ओ गेल्या " । क्या कर रहा है " स्वयं उस देवी ने गट्ठर बांधकर सिर पर रखा। उस दिन से उस बालक का नाम गैल रावल नाथ हुआ। देवी के दर्शन से अब वह भी सिद्ध बन गया था। बाबा पोंगल नाथ अपने शिष्यों सहित विराजमान थे। उन्होंने गैल रावल को लकड़ी का गट्ठर लाते हुए देखा तो अचंभित हो गए। लकड़ी का गट्ठर उनके सिर से तनिक ऊपर हवा में झूलता आ रहा था।
जब बाबा पोंगलनाथ कुंभ स्नान कर पुनः हरनावा अपने धूणे पर पहुंचे तब उन्होंने गैल रावल से कहा तुम अपना स्थान कहीं अन्य जगह पर बनाओ । तब गैल रावल ने अपना स्थान अन्य जगह बनाया जहां इनके नाम से ग्राम #गैलपुर हुआ जो इस समय [[किशनगढ़]] के पास अरांई रोड़ पर स्थित है जहां इस समय भी गैल रावल पीर का धूणा अवस्थित है। कहते हैं कि जिस समय गैल रावल पहाड़ी पर स्थित अपने धूणे पर तपस्या कर रहे थे उसी समय [[बादशाह]] मोहम्मद गौरी दिल्ली से अजमेर ख्वाजा साहब के दर्शन करने जाते हुए इधर से निकले। वे अपने पूरे काफिले के साथ उस निर्जन स्थान से गुजर रहे थे। प्यास के मारे सभी का बुरा हाल था। कही भी पानी दिखाई नहीं दे रहा था। सहसा उन्हें पहाड़ी पर धुआं उठता दिखाई दिया। बादशाह के दो व्यक्ति तुरंत उस स्थान पर गये जहां उन्होंने महात्मा को धूणि तापते देखा। उन्होंने महात्मा से बादशाह के लिए तनिक जल मांगा तो महात्मा ने अपने कमंडल से उनका पात्र पानी से भर दिया पर कमण्डल पूर्ववत ही था। तब उन व्यक्तियों ने महात्मा से कहा " महात्मन। हम भी प्यासे ही हैं, हमें भी थोड़ा जल दीजिए।
महात्मा ने उन्हें भी जल पिला दिया फिर भी कमण्डल का जल स्तर घटा नहीं। तब बादशाह को जल पिला देने के बाद उन लोगों ने महात्मा की सिद्धि की बात कही और बताया कि महात्मा हाथी घोड़े सहित पूरे काफिले को पानी पिला सकते हैं। बादशाह के दरबारियों ने फिर महात्मा से जाकर कहा। आप अपनी कमण्डल से पानी नीचे गिराइए ताकि हमारा काफिला पानी पी कर प्यास बुझा सके। महाराजा के निर्देशन पर बादशाह की सेना ने पहाड़ी के नीचे एक तलैया(नाडी) का निर्माण किया।
गैल रावल जी ने अपने कमंडल से इतना जल गिराया कि वह तलैया भर गया। सारे काफिले ने पानी पीकर वहां प्यास बुझाई।
बादशाह ने प्रसन्न होकर एक बहुमूल्य #चादर उनको भेट के लिए भेजी। महाराज गैल रावल जी ने उस चादर को जलते अंगारों पर डाल दिया। चादर क्षणभर में जल कर भस्म हो गई। बादशाह को जब यह पता चला तो वह आग बबूला हो गया और अपने हलकारो से कहने लगा । जाओ जाकर उस फकीर से कहो। बादशाह चादर वापस मगा रहें हैं। महाराज ने अपने चिमटे से धूणे में से असंख्य चादरें निकाल कर उनके सामने डाल दी और कहा। इनमें से जो तुम्हारी चादर है ले जाओ।
बादशाह यह देखकर बहुत भयभीत हुआ उसने तुरंत पहाड़ी पर पहुंच कर प्रणाम किया और उन्हें एक सच्चा पीर माना, बादशाह ने गैल पीर की जयघोष की ओर कुछ मांग लेने को कहा। तब गैल रावल पीर ने मना कर दिया पर बादशाह का हठ अटल था उसने कहा जहां तक आपको दिखाई देता है उतनी भूमि ही मांग लीजिए। तब गैल रावल जी ने अपने चिमटे की कड़ी उसके सामने की।
बादशाह ने कड़ी के भीतर से सात समुंदर वाली धरती को देखा। बादशाह नतमस्तक हो गया। तब महाराज ने गोचर भूमि का कर न लेने को कहा। चैत्र शुक्ला पंचमी सम्वत 1188 को बादशाह ने सच्चे पीर होने का, उस समय की लिपि में लिखकर ताम्र पत्र दिया। वह ताम्र पत्र आज भी गैल पीर जी के भाटों के पास उपलब्ध है।
भाटों के ब्यौरे के अनुसार गैल रावल पीर को हिंगलाज माता करांची का इष्ट था। वे अपने यौवन काल में छः बार माता के दर्शन कर आये थे। जब सातवीं बार माता के दर्शन के लिए रवाना हुए तो माता एक वृद्धा का स्वरुप बनाकर उनके सामने आई। वह मैले कुचैले वस्त्रों में ही थी। उसने गैल रावल से पूछा तुम कहां जा रहे हों। तो रावल पीर ने कराची हिंगलाज माता के दर्शन करने जाने के लिए कहा। वृद्धा ने कहा , क्या मुझे भी वहां ले चलोगे? रावल जी ने तुरंत अपने कन्धों पर बैठाया और चलने लगें। थोड़ी दूर चलने के बाद वृद्धा ने उनके कन्धे से नीचे उतरने की इच्छा जताई। तब उन्होंने वृद्धा को नीचे उतारा तो उसने अपना असली रूप दिखाया और कहा तुम्हें कराची जाने की आवश्यकता नहीं तुम्हें जो चाहिए यही मांग लो। गैल रावल ने कहा मात! तुम्है प्रति दिन मेरे धूणे पर एक बार दर्शन देने होंगे। माता ने तथास्तु कहा और अन्तर्ध्यान हो गई।
सम्वत 1199 में उनके गुरु पोंगल नाथ जी ने हरनावा में उत्सव मनाया जिसमें गैल रावल जी पधारे और गूलर ग्राम में ठहरे। गूलर में काफी दिनों तक तपस्या की।
अभी ग्राम गूलर में गैल रावल पीर जी का धूणा व माता हिंगलाज देवी का मंडप है। पुजारी नाथ जी इसकी पूजा करते हैं। लगभग 15 सालों से यहां मेला लग रहा है। ग्राम के सहयोग से स्वर्गीय पाबूदान सिंह राजपुरोहित जो ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया। धूणें पर आज भी गैल रावल की पत्थर की विशाल कुण्डी पड़ी हुई है । पुराने मन्दिर के अवशेष भी सुरक्षित है । यहां हिन्दू व मुस्लिम दोनों संप्रदाय के लोग अपने-अपने तरीके से पूजा अर्चना करते हैं।
अगले अंक में पागल नाथ जी के बारे में 🙏🙏
संकलन <nowiki>[[GULAR VILLAGE ]]</nowiki> is situated in Parbatsar tehsil of Nagaur District.
==औषधीय गुण ==
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