"गुरु जम्भेश्वर": अवतरणों में अंतर

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| animals = सभी तरह के वन्यजीव जंतु पशु पक्षी
| parents = लोहटजी पंवार और
माता हंसा देवीकंवर
| ethnic_group = हिन्दू जाटराजपूत, [[पंवार|(पंवार)]]
| festivals = जम्भेश्वर महाराज का जन्म, प्रत्येक माह अमावस्या व्रत एवं प्रमुख(होली पाहल) प्रति दिन स्वंम के द्वारा हवन करना
}}{{आधार}}
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* "जम्भसागर", "जम्भ संहिता", "विश्नोई धर्म प्रकाश" सबदवाणी, 120 वाणीयाँ आदि इनके प्रमुख ग्रन्थ हैं।
*जम्भेश्वरजी ने जहाँ विराजमान होकर ज्ञानोपदेश दिये, उस स्थान को "साथरिया" कहते हैं।
 
edit by Rakesh DARA Bishnoi BOOL
[[File:Mukam Tomb.JPG|thumb|250px| गुरु जम्भेश्वर का मन्दिर मुकाम, बीकानेर, [[राजस्थान]] |edit by Rakesh DARA Bishnoi BOOLपाठ=9468509568.9928422680]]
 
== जीवन परिचय==
 
जाम्भोजी का जन्म एक हिन्दू जाटराजपूत परिवार में विक्रमी संवत् 1508 सन् 1451 भादवा वदी अष्टमी जन्माष्टमी को अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में हुआ था। इनके पिताजी का नाम लोहट जी पंवार तथा माता का नाम हंसा देवीकंवर खिलेरी(केसर) था, ये अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। जाम्भोजी अपने जीवन के शुरुआती 7 वर्षों तक कुछ भी नहीं बोले थे तथा न ही इनके चेहरे पर हंसी रहती थीं । 7 वर्ष बाद इन्होंने विक्रमी संवत् 1515 सन 1458 को भादवा वदी अष्टमी के दिन ही अपना मौन तोड़ा और सबसे पहला शब्द (गुरू चिन्हों गुरु चिन्ह पुरोहित गुरुमुख धर्म बखानी) उच्चारण किया। इन्होंने 27 वर्ष तक गौपालन किया। इसी बीच इनके पिता लोहाट जी पंवार और उनकी माता हंसा देवी की मृत्यु हो गई तो इन्होंने अपनी सारी संपत्ति जनहित में लगा दी और आप निश्चित रूप से समराथल धोरे पर विराजमान हो गए गुरु जम्भेश्वर भगवान ने विक्रमी संवत 1542 सन 1485 में 34 वर्ष की अवस्था में बीकानेर राज्य के समराथल धोरे पर कार्तिक वदी अष्टमी को पाहल बनाकर बिश्नोई पंथ की स्थापना की थी। इन्होंने शब्दवाणी के माध्यम से संदेश दिए थे, इन्होंने अगले 51 वर्ष तक में पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया और ज्ञानोपदेश दिया। गुरु जंभेश्वर भगवान ने छुआछूत ,जात पात ,स्त्री पुरुष में भेदभाव, पेड़ पौधों की कटाई ,जीव हत्या व नशे पत्ते जैसी सामाजिक कुरीतियोंं को दूर किया वर्तमान में शब्दवाणी में सिर्फ 120 शब्द ही है। बिश्नोई समाज के लोग 29 धर्मादेश (नियमों) का पालन करते है ये धर्मादेश गुरु जम्भेश्वर भगवान ने ही दिए थे। इन 29 नियमों में से 8 नियम जैव वैविध्य तथा [[प्राणी|जानवरों]] की रक्षा के लिए है , 7 धर्मादेश समाज कि रक्षा के लिए है। इनके अलावा 10 उपदेश खुद की सुरक्षा और अच्छे स्वास्थ्य के लिए है और बाकी के चार धर्मादेश आध्यात्मिक उत्थान के लिए हैं जिसमें [[भगवान]] को याद करना और पूजा-पाठ करना। [[बिश्नोई]] समाज का हर साल [[मुकाम]] या मुक्तिधाम मुकाम में [[मेला]] भरता है जहां लाखों की संख्या में बिश्नोई समुदाय के लोग आते हैं। गुरु जी ने जिस [[बिश्नोई]] संप्रदाय की स्थापना की थी उस 'बिश' का मतलब 20 और नोई का मतलब 9 होता है इनको मिलाने पर 29 होते है बिश+नोई=बिश्नोई/अर्थात बिश्नोई यानी 29 नियमों को मानने वाला। बिश्नोई संप्रदाय के लोग [[खेजड़ी]] (Prosopis cineraria) को अपना पवित्र पेड़ मानते हैं।
 
हर अमावस के दिन जंभेश्वर भगवान के मंदिर में और बिश्नोई समाज के घरों में रोज सुबह गाय के शुद्ध देसी घी, नारियल, हवन सामग्री के द्वारा हवन किया जाता हैं। इससे वातावरण शुद्ध होता है वायुप्रदूषण कम होती है और ।यह वायु में उपस्थित हानिकारक तत्वों को कम करता है।
 
== जीवन ==
[[गुरु जम्भेश्वर]] भगवान [[गुरु जम्भेश्वर|(जाम्भोजी)]] का जन्म [[राजस्थान]] के [[नागौर]] ज़िले के [[गुरु जम्भेश्वर|पीपासर]] गांव में विक्रमी संवत 1508 सन 1451 मैं भादवा वदी अष्टमी जन्माष्टमी (अर्धरात्रि कृतिका नक्षत्र में) के दिन एक हिन्दू जाटराजपूत किसान परिवार में हुआ था। भगवान [[कृष्ण]] का भी जन्म उसी तिथि को हुआ था। इनके बूढ़े पिता ''लोहट जी'' की 50 वर्ष की आयु तक कोई संतान नहीं थीं इस कारण वे दुखी थे। लोहट जी के 51वें वर्ष में [[भगवान विष्णु]] नेे बाल संत के रूप में आकर लोहट की तपस्या से प्रसन्न होकर उनको पुत्र प्राप्ती का वचन दिया। जाम्भोजी ने अपने जन्म के बाद अपनी माँ का दूध नहीं पिया था। साथ ही जन्म के बाद 7 वर्ष तक मौन रहे थे। और 7 वर्ष बाद भादवा वदी अष्टमी के दिन ही अपना मौन तोड़ा। और जाम्भोजी ने अपना पहला शब्द (गुरु चिंहो गुरु चिन्ह पुरोहित) बोला था जम्भदेव सादा जीवन वाले थे लेकिन काफी प्रतिभाशाली थे साथ ही संत प्रवृति के कारण अकेला रहना पसंद करते थे। जाम्भोजी ने विवाह नहीं किया, इन्हें [[गाय|गौपालन]] प्रिय लगता था इन्होंने 27 वर्षों तक गायों की सेवा की थी इसी बीच इनके माता-पिता की मृत्यु हो गई और उन्होंने अपनी संपत्ति जनकल्याण में लगा दी की और खुद समराथल धोरा पर निश्चित रूप से विराजमान हो गए इन्होने 34 वर्ष की आयु में समराथल धोरा नामक जगह पर उपदेश देने शुरू किये थे। ये समाज कल्याण की हमेशा अच्छी सोच रखते थे तथा हर दुःखी की मदद किया करते थे । इन्होंने जात पात, छुआछूत, स्त्री पुरुष में भेदभाव, पेड़ पौधोंं की कटाई, जीव हत्या, नशे पते जैसी सामाजिक कुरीतियों को दूर किया मारवाड़ में 1585 में अकाल पड़ने के कारण यहां के लोगों को अपने पशुओं को लेकर मालवा जाना पड़ा था, इससे जाम्भोजी बहुत दुःखी हुए। फिर जाम्भोजी ने उन दुःखी किसानों को यहीं पर रुकने को कहा बोलें कि मैं आप की यहीं पर सहायता करूँगा। इसी बीच गुरु जम्भदेव ने दैवीय शक्ति से सभी को भोजन तथा आवास स्थापित करने में सहायता की। [[हिन्दू धर्म]] के अनुसार वो काल निराशाजनक काल कहलाया था। उस वक़्त यहां पर आम जनों को बाहरी आक्रमणकारियों का बहुत भय था साथ ही लोग हिन्दू धर्म संस्कृति में विभिन्न देवी देवताओं की पूजा करते थे। इसलिए दुःखी लोगों की सहायता के लिए ईश्वर एक है के सिद्धांत पर गुरु जम्भेश्वर नेें विक्रमी संवत 1542 सन 1485 मेंं बीकानेर जिले के समराथल धोरे पर कार्तिक बदी अष्टमी को पाहल बनाकर [[बिश्नोई]] संप्रदाय की स्थापना की।
 
श्री गुरु जंभेश्वर भगवान विक्रमी संवत् 1593 सन 1536 मिंगसर वदी नवमी ( चिलत नवमी ) को लालासर में निर्वाण को प्राप्त हुए ।श्री गुरु जंभेश्वर भगवान का समाधि स्थल मुकाम है।