"ऊष्मा": अवतरणों में अंतर

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→‎ऊष्मागतिकी: परम शून्य ताप
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'''ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम''' यह कहता है कि ऐसा संभव नहीं और एक ही ताप की वस्तु से यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसा करने के लिये एक निम्न तापीय पिंड ([[संघनित्र (उष्मा स्थानान्तरण)|संघनित्र]]) की भी आवश्यकता होती है। किसी भी इंजन के लिये उच्च तापीय भट्ठी से प्राप ऊष्मा के एक अंश को निम्न तापीय पिंड को देना आवश्यक है। शेष अंश ही यांत्रिक कार्य में काम आ सकता है। समुद्र के पानी स ऊष्मा लेकर उससे जहाज चलाना इसलिये संभव नहीं कि वहाँ पर सर्वत्र समान ताप है और कोई भी निम्न तापीय वस्तु मौजूद नहीं। इस नियम का बहुत महत्व है। इसके द्वारा ताप के परम पैमाने की संकल्पना की गई है। दूसरा नियम परमाणुओं की गति की अव्यवस्था (disorder) से संबंध रखता है। इस अव्यवस्थितता को मात्रात्मक रूप देने के लिये एंट्रॉपि (entropy) नामक एक नवीन भौतिक राशि की संकल्पना की गई है। उष्मागतिकी के दूसरे नियम का एक पहलू यह भी है। कि प्राकृतिक भौतिक क्रियाओं में एंट्रॉपी की सदा वृद्धि होती है। उसमें ह्रास कभी नहीं होता।
 
'''ऊष्मागतिकी के तीसरे नियम''' के अनुसार शून्य ताप पर किसी ऊष्मागतिक निकाय की [[एंट्रॉपी]] शून्य होती है। इसका अन्य रूप यह है कि किसी भी प्रयोग द्वारा [[शून्य परम ताप|परम शून्य ताप]] की प्राप्ति सम्भव नहीं। हाँ हम उसके अति निकट पहुँच सकते हैं, पर उस तक नहीं।
 
ऊष्मागतिकी के प्रयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। विकिरण के ऊष्मागतिक अध्ययन द्वारा एक नवीन और क्रांतिकारी विचारधारा [[क्वान्टम सिद्धान्त]] प्रस्फुटित हुआ।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/ऊष्मा" से प्राप्त