"माइकल मधुसुदन दत्त": अवतरणों में अंतर

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[[Image:MichaelMadhusudanDatta.jpg|right|frame|माइकल मधुसुदन दत्त]]
 
'''माइकल मधुसुदन दत्त''' ([[बांग्ला भाषा|बांग्ला]]: মাইকেল মধুসূদন দত্ত ''माइकेल मॉधुसूदॉन दॉत्तॉ'') ([[1824]]-[[29 जून]],[[1873]]) जन्म से मधुसुदन दत्त, 19वी[[बंगला शताब्दीभाषा]] के मशहूरप्रख्यात कवि और नाटककार थे। उनका जन्म बंगाल के जेस्सोर जीले के सागादरी नाम के गाँव मे हुआ था। अब यह जगह [[बांग्लादेश]] मे है। नाटक रचना के क्षेत्र मे वे प्रमुख अगुआई थे। उनकी प्रमुख रचनाओ मे मेघनाथ बोध काव्य प्रमुख है।
 
==जीवनी==
मधुसुदन दत्त का जन्म बंगाल के जेस्सोर जिले के सागादरी नाम के गाँव मे हुआ था। अब यह जगह [[बांग्लादेश]] मे है। इनके पिता राजनारायण दत्त [[कोलकाता|कलकत्ते]] के प्रसिद्ध वकील थे। 1837 ई0 में [[हिंदू कालेज]] में प्रवेश किया। मधुसूदन दत्त अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। एक ईसाई युवती के प्रेमपाश में बंधकर उन्होंने ईसाई धर्म ग्रहण करने के लिये 1843 ई0 में हिंदू कालेज छोड़ दिया। कालेज जीवन में माइकेल मधुसूदन दत्त ने काव्यरचना आरंभ कर दी थी। हिंदू कालेज छोड़ने के पश्चात् वे बिशप कालेज में प्रविष्ट हुए। इस समय उन्होंने कुछ [[फारसी]] कविताओं का [[अंग्रेजी]] में अनुवाद किया। आर्थिक कठिनाईयों के कारण 1848 में उन्हें बिशप कालेज भी छोड़ना पड़ा। तत्पश्चात् वे [[चेन्नै|मद्रास]] चले गए जहाँ उन्हें गंभीर साहित्यसाधना का अवसर मिला। पिता की मृत्यु के पश्चात् 1855 में वे कलकत्ता लौट आए। उन्होंने अपनी प्रथम पत्नी को तलाक देकर एक फ्रांसीसी महिला से विवाह किया। 1862 ई0 में वे कानून के अध्ययन के लिये [[इंग्लैंड]] गए और 1866 में वे वापस आए। तत्पश्चात् उन्होंने कलकत्ता के न्यायालय मे नौकरी कर ली।
 
19वीं शती का उत्तरार्ध बँगला साहित्य में प्राय: मधुसूदन-बंकिम युग कहा जाता है। माइकेल मधुसूदन दत्त बंगाल में अपनी पीढ़ी के उन युवकों के प्रतिनिधि थे, जो तत्कालीन हिंदू समाज के राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन से क्षुब्ध थे और जो पश्चिम की चकाचौंधपूर्ण जीवन पद्धति में आत्मभिव्यक्ति और आत्मविकास की संभावनाएँ देखते थे। माइकेल अतिशय भावुक थे। यह भावुकता उनकी आरंभ की अंग्रेजी रचनाओं तथा बाद की बँगला रचनाओं में व्याप्त है। बँगला रचनाओं को भाषा, भाव और शैली की दृष्टि से अधिक समृद्धि प्रदान करने के लिये उन्होनें अँगरेजी के साथ-साथ अनेक यूरोपीय भाषाओं का गहन अध्ययन किया। [[संस्कृत]] तथा [[तेलुगु]] पर भी उनका अच्छा अधिकार था।
 
मधुसूदन दत्त ने अपने काव्य में सदैव भारतीय आख्यानों को चुना किंतु निर्वाह में यूरोपीय जामा पहनाया, जैसा "[[मेघनाद वध]]" काव्य (1861) से स्पष्ट है। "वीरांगना काव्य" लैटिन कवि ओविड के हीरोइदीज की शैली में रचित अनूठी काव्यकृति है। "ब्रजांगना काव्य" में उन्होंने वैष्णव कवियों की शैली का अनुसरण किया। उन्होंने अंग्रेजी के मुक्तछंद और इतावली सॉनेट का बंगला में प्रयोग किया। चतुर्दशपदी कवितावली उनके सानेटों का संग्रह है। "हेक्टर वध" बँगला गद्य साहित्य में उनका उल्लेखनीय योगदान है।
 
[[श्रेणी:व्यक्तिगत जीवन]]