"सवैया": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 20:
(*)मन भूल गया निज काज सभी,
जब चांद समान दिखी काया।
चितवा बिछुरा दुनिया बिसरी,
बिन हेतु हिया गति से धाया॥
यह जोग लगा जब से मितवा,
नहि दूसर जोग समा पाया।
अब आन मिलो बहु रैन कटी,
बिन चंद चकोर नही छाया॥
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