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[[File:Rishyashringa Lured into Anga Desha by Dancing Girls.jpg|thumb|ऋष्यशृंग अंगदेश की रमणियों के साथ]]
 
'''ऋष्यशृंग''' या '''श्रृंगी ऋषि निषाद''' [[वाल्मीकि]] [[रामायण]] में एक पात्र हैं जिन्होंने राजा [[दशरथ]] के पुत्र प्राप्ति के लिए [[अश्वमेध यज्ञ]] तथा [[पुत्रकामेष्टि]] यज्ञ कराये थे। वह विभाण्डक निषाद ऋषि के पुत्र तथा [[कश्यप]] ऋषि के पौत्र बताये जाते हैं।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga9/bala_9_frame.htm | title = ऋष्यशृंग | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120181859/http://valmikiramayan.net/bala/sarga9/bala_9_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref> उनके नाम को लेकर यह उल्लेख है कि उनके माथे पर सींग (संस्कृत में ऋंग) जैसा उभार होने की वजह से उनका यह नाम पड़ा था। उनका विवाह [[अंग महाजनपद|अंगदेश]] के राजा रोमपाद की दत्तक पुत्री शान्ता से सम्पन्न हुआ जो कि वास्तव में दशरथ की पुत्री थीं। '''जिस श्रृंगी ऋषि ने दसरथ की तीनों रानियों को गर्भवती करने के लिए यज्ञ किया, फिर यज्ञ से खीर निकाली और उस खीर से वो सारी रानियां गर्भवती हुई, उसी श्रृंगी ऋषि ने दसरथ की बेटी अर्थात् राम की इकलौती बहन, शांता से विवाह किया। यानी श्रृंगी ऋषि राम के जीजा भी थे और पिता भी!'''
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऋष्यशृंग विभाण्डक तथा [[अप्सरा]] [[उर्वशी]] के पुत्र थे। विभाण्डक ने इतना कठोर तप किया कि [[देवता]]गण भयभीत हो गये और उनके तप को भंग करने के लिए उर्वशि को भेजा। उर्वशी ने उन्हें मोहित कर उनके साथ संसर्ग किया जिसके फलस्वरूप ऋष्यशृंग की उत्पत्ति हुयी। ऋष्यशृंग के माथे पर एक सींग (शृंग) था, अतः उनका यह नाम पड़ा। ऋष्यशृंग के पैदा होने के तुरन्त बाद उर्वशी का धरती का काम समाप्त हो गया तथा वह [[स्वर्ग लोक|स्वर्गलोक]] के लिए प्रस्थान कर गई। इस धोखे से विभाण्डक इतने आहत हुये कि उन्हें नारी जाति से घृणा हो गई तथा उन्होंने अपने पुत्र ऋष्यशृंग पर नारी का साया भी न पड़ने देने की ठान ली। इसी उद्देश्य से वह ऋष्यशृंग का पालन-पोषण एक अरण्य में करने लगे। वह अरण्य अंगदेश की सीमा से लग के था। उनके घोर तप तथा क्रोध के परिणाम अंगदेश को भुगतने पड़े जहाँ भयंकर अकाल छा गया। अंगराज रोमपाद (चित्ररथ) ने ऋषियों तथा मंत्रियों से मंत्रणा की तथा इस निष्कर्ष में पहुँचे कि यदि किसी भी तरह से ऋष्यशृंग को अंगदेश की धरती में ले आया जाता है तो उनकी यह विपदा दूर हो जायेगी। अतः राजा ने ऋष्यशृंग को रिझाने के लिए [[देवदासी|देवदासियों]] का सहारा लिया क्योंकि ऋष्यशृंग ने जन्म लेने के पश्चात् कभी नारी का अवलोकन नहीं किया था। और ऐसा ही हुआ भी। ऋष्यशृंग का अंगदेश में बड़े हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया गया। उनके पिता के क्रोध के भय से रोमपाद ने तुरन्त अपनी पुत्री शान्ता का हाथ ऋष्यशृंग को सौंप दिया।<ref>{{cite web | url = http://www.valmikiramayan.net/bala/sarga10/bala_10_frame.htm | title = ऋष्यशृंग का विवाह | accessdate = 2012-05-07 | archive-url = https://web.archive.org/web/20111120174123/http://valmikiramayan.net/bala/sarga10/bala_10_frame.htm | archive-date = 20 नवंबर 2011 | url-status = live }}</ref><br />