"सैयद वंश": अवतरणों में अंतर

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;मुहम्मद शाह:
मुबारक शाह की मृत्यु के बाद मुहम्मद शाह ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया। उनका शासनकाल १४३४ से १४४५ तक रहा।<ref>शैलेन्द्र शेगर (भाग २) पृ॰ ८४</ref>
;आलमशाह: १४४४-५१ (Alam Shah ) - जब १४४४ में मुहम्मद शाह मृत्यु हो गई तो उसका पुत्र अलाउद्दीन गद्दी पर बैठा जिसने श्रालम शाह की उपाधि धारण की । यह नया सुल्तान अपने पिता से भी अधिक कमज़ोर निकला. किन्तु इस पर भी उसके सिंहासनारोहण को बहलोल ने स्वीकार कर लिया । १४४७ में आलम शाह बदायूँ¨ गया । उसे यह नगर इतना अच्छा लगा कि उसने दिल्ली की जगह वहाँ ही रहना अच्छा समझा । उसने अपने किसी सम्बन्धी को दिल्ली का प्रांताध्यक्ष बना दिया और १४४८ से स्थायी रूप से वह वहीं रहा । वहाँ उसने अपने को पूर्णतया विलासी जीवन में डाल दिया। दिल्ली से श्रालम शाह के चले जाने के बाद, उन लोगों के बीच संघर्ष छिड़ गया जो उसका शासन चला रहे थे। हिसाम खाँ व हामिद खाँ दिल्ली के भाग्य के निर्णायक बन गए । विभिन्न व्यक्तियों की अभियाचनानों पर विचार किया गया और अन्त में बहलोल लोदी को ही चुना गया । उसे दिल्ली ग्रामं- त्रित किया गया । उसने निमन्त्रण इतनी जल्दी स्वीकार किया कि वह दिल्ली में अपनी शक्ति जमाने के लिए काफी सेना तक साथ नहीं लाया । उसने हामिद खां से नगर की कुंजियाँ लीं । उसने बदायूँ में आलम शाह को एक पत्र भी लिखा और उसका उत्तर यह मिला कि उसे अपनी गद्दी से कोई लाभ या फल की आशा नहीं है । उसके पिता ने बहलोल को अपना पुत्र मान लिया था, इसलिए उसने स्वतन्त्र रूप से व प्रसन्नता के साथ बहलोल अपने बड़े भाई, के पक्ष में अपना सिंहासन त्याग कर दिया । इस प्रकार जब १६ अप्रैल १४५१ को बहलोल का सिंहासनारोहण हुआ, तो उसने सिंहासन किसी सफल गुट की सहायता से ही प्राप्त नहीं किया, अपितु एक ऐसे सुल्तान के उत्तराधिकारी के रूप में भी प्राप्त किया जिसने ऐच्छिक रूप से अपनी “गद्दी का परित्याग कर दिया था । श्रालम शाह १४७८ में अपनी मृत्यु के समय तक बदायूँ ही में रहा ।
 
==टिप्पणी==