"पटौदी रियासत": अवतरणों में अंतर

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दुर्भाग्यवश पटौदी हाउस बनने के चंद सालों के बाद ही पटौदी सीनियर की 1951 में एक पोलो मैच के दौरान दुर्घटना होने के कारण मौत हो गई थी। उसी साल तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मंसूर अली खान की मां साजिदा सुल्तान के नाम पर लुटियंस दिल्ली में त्यागराज मार्ग पर एक बंगला आवंटित कर दिया समाजसेविका के रूप में। उसके मिलने के बाद पटौदी परिवार का पटौदी स्थित अपने घर में आना-जाना काफी कम हो गया।
 
इधर ही पटौदी लेकर आए शर्मिला को अपनी बहू बनाकर। साजिदा सुल्तान की साल 2003 में मृत्यु के बाद पटौदी परिवार को उस बंगले को खाली करना पड़ा। तमाम मीडिया कह रहा है कि मंसूर अली खान पटौदी को उनके पुश्तैनी गांव में दफना दिया गया है।
कुछ इतिहासकार लिखते है पटौदी के नवाबों के पूर्वज खाऩजादे राजपूत थे।
हालांकि वस्तुस्थिति यह है कि उनके पुरखे सलामत खान अफगानिस्तान से भारत आए थे साल 1480 में। यह जानकारी खुद पटौदी ने मुझे दी थी जब वह पत्रकारों की टीमों के बीच एक मैच खेलने राजधानी के मॉडर्न स्कूल में आए थे।
 
यह बात 1992 की हैं। तब वह एक खेल पत्रिका का संपादन भी कर रहे थे। वह मैच तो नहीं खेल थे, पर दोनों टीमों की हौसला अफजाई कर रहे थे। साक्षात्कार के दौरान पटौदी ने बताया कि उनके पुरखे गजब के घुड़सवार थे। उस दौर में अफगानिस्तान से बहुत बड़ी तादाद में लोग भारत बेहतर जिंदगी की तलाश में आते थे। बाद के दौर में सलामत के पोते अल्फ खान ने मुगलों का कई लड़ाइयों में साथ दिया। उसी के चलते अल्फ खान को राजस्थान और दिल्ली में तोहफे के रूप में जमीनें मिलीं। पटौदी रियासत की स्थापना साल 1804 में हुई।