"हाईपोथर्मिया": अवतरणों में अंतर

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'''हाइपोथर्मिया''' शरीर की वह स्थिति होती है जिसमें [[तापमान]], सामान्य से कम हो जाता है। इसमें शरीर का तापमान ३५° [[सेल्सियस]] (९५ डिग्री [[फैरेनहाइट]]) से कम हो जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/fitnesshealth/67-72-90719.html कड़ी ठंड से होने वाले रोग हाइपोथर्मिया से न डरें]।हिन्दुस्तान लाइव</ref><ref name="महामेधा">[http://www.mahamedha.com/news_dtls.aspx?newsid=5295&catid=5 बढती ठंड ने बढाईं बीमारियां]।दैनिक महामेधा।२८ दिसंबर, २००९</ref> शरीर के सुचारू रूप से चलने हेतु कई रासायनिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। आवश्यक तापमान बनाए रखने के लिए मानव मस्तिष्क कई तरीके से कार्य करता है। जब ये कार्यशैली बिगड़ जाती है तब ऊष्मा के उत्पादन के स्थान पर [[ऊष्मा]] का ह्रास तेजी से होने लगता है। कई बार रोग के कारण शरीर का तापमान प्रभावित होता है। ऐसे में शरीर का कोर तापमान किसी भी वातावरण में बिगड़ सकता है। इसे '''सेंकेडरी हाइपोथर्मिया''' कहा जाता है। इसके प्रमुख कारणों में ठंड लगना है।<ref name="रांची">[http://ranchiexpress.com/%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A4-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95.php कोहरे ने सेहत पर भी मचाया कोहराम]।रांची एक्स्प्रेस</ref>
 
पहली स्थिति में शरीर का तापमान सामान्य तापमान से १-२° कम हो जाता है। इस स्थिति में रोगी के हाथ सही तरीके से काम नहीं करते। सबसे ज्यादा समस्या रोगी के पेट में होती है और वह थकान महसूस करता है। शरीर का तापमान, सामान्य से २-४° कम हो जाता है। इस स्थिति में कंपकंपाहट तेज हो जाती है। रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं। रोगी पीला पड़ जाता है और उंगलियां, होंठ और कान नीले पड़ जाते हैं। जब शरीर का तापमान ३२° सेल्सियस से भी कम हो जाता है तो कंपकपाहट खत्म हो जाती है। इस दौरान बोलने में परेशानी, सोचने में परेशानी और एमनीशिया की स्थिति होती है। साथ ही [[कोशिका|कोशिकीय]] [[उपापचय]] दर कम हो जाता है। ३०° से कम तापमान होने पर त्वचा नीली पड़ जाती है। इसके साथ ही चलना असंभव हो जाता है। शरीर के कई अंग अकार्यशील हो जाते हैं।
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हाईपोथर्मिया के सबसे अधिक शिकार बच्चे या वृद्ध होते हैं।<ref name="नौनिहाल">[http://www.bhaskar.com/2010/01/10/100110031052_the_cold_did_naunihalon_behal.html सर्दी ने किया नौनिहालों को बेहाल]।दैनिक भास्कर।१० जनवरी, २०१०</ref> ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर शिशुओं की मृत्यु जन्म लेते ही हो जाती है। ये बच्चों हाइपोथर्मिया के ही शिकार हो जाते हैं।<ref>[[http://www.livehindustan.com/news/desh/deshlocalnews/39-0-82163.html&locatiopnvalue=1 हर साल हजारों बच्चों हो रहे हैं हाइपोथर्मिया के शिकार]।हिन्दुस्तान लाइव।२१ नवंबर, २००९ </ref> असल में जब तक बच्चा मां के गर्भ में रहता है तब उसका तापमान कुछ ओर रहता है लेकिन पैदा होने के साथ ही वह बाहर के तापमान में आ जाता है, जिसके कारण बच्चा बाहर के तापमान को एकदम नहीं सह पाता। इस समय ही बच्चों को ठंड लगती है और या तो वह [[निमोनिया]] का शिकार हो जाता है, या थोड़ी ही देर में दम तोड़ देता है। अधिकतर बडे चिकित्सालयों में प्रसव-कक्ष का तापमान बच्चों के अनुरूप रखा जाता है या फिर बच्चा पैदा होने के साथ उसे गर्म कपड़े में लपेट लिया जाता है।
 
अध्ययनों एंव आंकड़ों के अनुसार हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब ५० प्रतिशत मृत्यु ६४ वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती हैं।<ref name="महामेधा"/> वृद्धों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मियासे पीड़ित होने की आशंका सबसे अधिक होती है<ref name="रांची"/> क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की प्रणाली उम्र बढने के साथ कमजोर होती जाती है। इसके अलावा उम्र बढने के साथ सबक्युटेनियस वसा में कमी आ जाती है और ठंड को महसूस करने की क्षमता भी घट जाती है। इसके अलावा शरीर की ताप नियंत्रण प्रणाली भी कमजोर पड़ जाती है। ठंड के संपर्क में लंबे समय तक रहने पर कम ठंड रहने पर भी हाइपोथर्मिया उत्पन्न हो सकती है। हाइपोथर्मिया के कारण मरने वालों में अधिकतर लोग मानसिक रोगी, दुर्घटना में घायल लोग, मधुमेह, हाइपोथायराइड, ब्रोंकोनिमोनिया और [[हृदय रोग| हृदय रोगी]] तथा मदिरा का अधिक सेवन करने वाले होते हैं।
 
इसको रोग को चार विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है।