"रामानन्द": अवतरणों में अंतर

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'''स्वामी रामानन्द''' मध्यकालीन [[भक्ति आन्दोलन]] के महान [[सन्त]] थे। उन्होंने [[राम]][[भक्ति]] की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - '''द्रविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद।''' यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] को जाता है। स्वामी जी ने [[रामानंदी संप्रदाय|रामानन्दी सम्प्रदाय]] की स्थापना की है।
शास्त्रों के अनुसार श्री रामानंद स्वयं भगवान श्रीराम के अवतार कहे गए हैं-
सोऽअवातरज्जगन्मध्ये जन्तूनां भवसंकटात्। पारंकर्तुम्ह धर्मात्मा रामानन्दः स्वयं स्वभूः ॥१॥
माघे कृष्णसप्तम्यां चित्रानक्षत्र संयुते कुंभलग्ने सिद्धियोगे सप्तदण्डोद्ने रवी ॥२॥
रामानन्दः स्वयं रामः प्रादुर्भूतो महीतले । कलौ लोके मुनिर्जातः सर्वजीव दयाकरः ॥ ३
रामानन्दः स्वयं रामः प्रादुर्भूतो महीतले । कली लोके मुनिर्जातः सर्वजीवदयापरः ॥ ४
तप्तकाञ्चनसंकाशी रामानन्दः स्वयं हरिः।। ५ प्रियानुरागदिव्यत्वकृते रामः कृपानिधिः।। ६
हेमवर्णस्तदर्थतैर्विख्यातनश्चमहीतले रामानन्दः स्वयं रामः प्रादुर्भूतो हरि स्वयं षट्कोण पूर्व मालिख्यतदग्रेवृतमा लिखेत् बहिरर्कदलं पद्ममग्रे पार्थिवमण्डलम् । ७
एवंमण्डलमालिख्यशोभ नव्यक्तमुज्ज्वलम् अस्मिन् यन्त्रेमहापूजां कारयेद्विधि पूर्वकम् ॥ ८
तन्मध्ये पूजयेद्देवं रामानन्दं स्वयं हरिम् ।
(वैश्वनर संहिता)
 
[[File:Stamp of India - 2002 - Colnect 158243 - Swami Ramanand.jpeg|thumb|भारतीय डाक टिकट पर रामानन्दाचार्य का चित्र।]]