"विट्ठल रामजी शिंदे": अवतरणों में अंतर

No edit summary
'बहिष्कृत भारत'अम्बेडकर जी द्वारा लिखी गई है। विट्ठल जी द्वारा नहीँ। इसे मैंने कई अन्य स्रोत से जांच करने के पश्चात डिलीट किया है।
टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 30:
शिंदे से उनके अपने 'डिप्रेस्ड क्लासेस मिशन' के लोग भी नाराज थे। बाध्य हो कर पूना में संस्थाका नेतृत्व शिंदे को ऐसे ही एक नाराज साथी को सौपना पड़ा।
 
रचनात्मक कार्यों के साथ शिंदे लेखन विधा से भी अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे। 'उपासना' और 'सुबोध चन्द्रिका' जैसी मासिक/साप्ताहिक पत्रिकाओं में सामाजिक सुधार के मुद्दों पर उनके लेख प्रकाशित होते रहते थे। सन 1933में उनके द्वारा प्रकाशित 'बहिष्कृत भारत' और 'भातीयभारतीय अस्पृश्यताचे प्रश्न' अस्पृश्यता के प्रश्न पर ही केन्द्रित पत्रिकाओं के अंक थे। हालैण्ड के विश्व धर्म सम्मेलन में उनका पढ़ा गया एक लेख ' हिन्दुस्तानातिल उदार धर्म' (हिन्दुस्तान का उदार धर्म) काफी प्रसिद्ध हुआ था। शिंदे ने'आठवणी आणि अनुभव ' नाम से अपनी [[आत्मकथा]]लिखी थी।
 
[[सती प्रथा]] के उन्मूलन के लिए विट्ठल रामजी शिंदे ने जबरदस्त काम किया था। इसके विरुद्ध जनचेतना जगाने के लिए महाराष्ट्र में एक सर्व धर्मी संस्था बनायी गयी थी , जिसके शिंदे सचिव थे।
पंक्ति 36:
सन 1924के दौर में शिंदे ने [[केरल]] के [[वैकम मन्दिर प्रवेश आन्दोलन]] में भाग लिया था। परन्तु उनका यह कार्य उनके '[[ब्राह्म समाज]]' के लोगों को पसंद नहीं आया। निराश हो कर शिंदे पूना लौट आये। शिंदे का ध्यान अब [[बौद्ध धर्म]] की तरफ गया। उन्होंने '[[धम्मपद]]' आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। इसी अध्ययन के सिलसिले में सन 1927 में उन्होंने [[बर्मा]] की यात्रा की थी।
 
विट्ठल शिंदे का अन्तिम समय निराशापूर्ण था। समाज सुधार के प्रति उनके मन में जो पीड़ा थी और जिसके लिए वे ता-उम्र अपने लोगों से संघर्ष करते रहे थे, को न तो दलित जातियों का समर्थन मिला और न ही उनके अपने लोगों का। इसी संत्रास में वे 2 जनवरी 1944 को उनका निधन हो गया।
 
==सन्दर्भ==