"चिकित्सा अनुसंधान": अवतरणों में अंतर

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'''चिकित्सा अनुसंधान''' का काम हमारे देश में १९वीं शताब्दी के दूसरे चरण में [[मलेरिया]] और [[हैजा|विसूचिका]] (हैजा) नामक रोगों के फैलने से संबंधित अन्वेषण के रूप में प्रारंभ हुआ। इनपर सन. १८६९ में लुई और कनिंघम ने कुछ कार्य प्रारंभ किया था। [[टीका]] लगाने से लाभ होता है या नहीं, इसका बंगाल में विसूचिका के बारे में और बंबई में प्लेग के संबंध में अन्वेषण करने के लिये हैफकिन नामक विद्वान्‌ को सरकार की ओर से नियुक्त किया गया। इसके परिणामस्वरूप बंबई में सन्‌ १८९९ में प्लेग रिसर्च इंस्टिट्यूट बनाया गया, जिसका नाम आगे चलकर हैफकिन रिसर्च इंस्टिट्यूट रखा गया सन्‌ १९०० में शिमला के पास कसौली में चेचक के टीके के लिये लिंफ़ बनाने और जीवाणु संबंधी अन्वेषण करने के लिये पैस्ट्यर इंस्टिटयूट की स्थापना हुई। इस समय तक देश में रोगों के संबंध में अनुसंधान कार्य का आयोजन करने के लिय केंद्रीय संस्था की आवश्यकता प्रतीत होने लगी थी। फलस्वरूप सन्‌ १९११ में इंडियन रिसर्च फंड ऐसोसिएशन बना।
 
[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] के दिनों में इस संस्था का काम प्राय: रुक गया। दूसरे युद्ध में और अन्वेषणकर्ताओं की और भी कमी हो गई और संस्था का काम लगभग बंद हो गया। सन्‌ १९४० में भोर कमेटी ने चिकित्सा संबंधी अन्वेषण देश भर में कराने पर बहुत जोर दिया। सन्‌ १९४७ के अगस्त में देश के स्वतंत्र होने के पश्चात्‌ [[भारत सरकार]] ने चिकित्सा संबंधी अनुसंधान के महत्व को भली भाँति समझकर उसकी उन्नति को ओर ध्यान देना आरंभ किया और इंडियन रिसर्च एसोसिएशन को [[भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद]] (इंडियन काउंसिल ऑव मेडिकल रिसर्च) के रूप में सन्‌ १९४८ में पुनर्जीवित किया गया तथा देश में चिकित्सा विषयक प्रत्येक प्रकार के अनुसंधान का प्रबंध करने का काम उसके सुपुर्द किया गया। इस काउंसिल ने, जिसको संक्षेपत: आई. सी. एम. आर. कहा जाता है, देखा कि देश के मेडिकल कालेजों तथा अन्य संस्थाओं में अनुसंधान करने के ऐसे बहुतेरे साधन तथा कार्यकर्ता पड़े हुए हैं जिनका अभी तक उपयोग नहीं किया गया है। अतएव इस काउंसिल ने इन संस्थाओं को आवश्यक आर्थिक सहायता देकर अनुसंधान कार्य को प्रोत्साहित किया।
 
सन्‌ १९४८ में मेडिकल कालेजों में [[ओषधि-क्रिया-विज्ञान]] के अध्यापन और अनुसंधान को विशेष रूप से प्रोत्साहित करने के लिये एक फार्मेकोलोजी ऐडवाइजरी कमेटी बनाई गई। देश में [[विषाणु]] द्वारा उत्पन्न रोगों के अनुसंधान की आवश्यकता प्रतीत होने पर सन्‌ १९५१-५२ में वाइरस डिजीजेज ऐडवाइजरी कमेटी नियुक्त हुई। आई. सी. एम. आर. ने द्वितीय पंचवर्षीय योजना में [[संक्रामक रोगोंरोग]]<nowiki/>ों तथा उनके प्रतिरोध के उपायों के अन्वेषणों को सर्वप्रथम प्रोत्साहन दिया। अतएव दो उपसमितियाँ बनाई गई। एक रोगों के प्रतिरोध के उपायों के अन्वेषण के लिये और दूसरी परिस्थितिज (environmental) स्वास्थ्य विज्ञान (hygiene) के अध्ययन के लिये। मलेरिया और फाइलेरिमा के अन्वेवय के लिए एक और कमेटी बनाई गई, जिसको मलेरिया ऐंड ऐंथ्रोपाएड डिजीज़ेज सब कमेटी नाम दिया गया। मानसिक स्वास्थ्य के प्रश्नों के अध्ययन के लिये एक मेंटल हेल्थ सब कमेटी बनाई गई। दाँतों के रोगों के अन्वेषण के लिये भी एक डेंटल हेल्थ सब कमेटी बनी।
 
चिकित्सा अनुसंधान का महत्व कितना बड़ा है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में सरकार ने चिकित्सा अनुसंधान संबंधी आयोजनों में १२ लाख खर्च किया था वहाँ दूसरी पंचवर्षीय योजना में ३१२ लाख व्यय किया गया।
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दूसरा महत्व का कार्यक्रम देशो ओषधियों तथा चिकित्सा संबंधी अनुसंधान है। देश भर में ऐसे आठ प्रस्तावित केंद्रों में से सात केंद्र अब तक कार्य करने लगे हैं। प्रत्येक को एक विशेष समूह की ओषधियाँ अन्वेषण के लिये दी गई हैं१ ऐसी ओषधियों का चिकित्सा में उपयोग तथा उनकी प्रामाणिकता स्थापित करने के लिये जो प्रयोग किए जाते हैं उनमें कई वर्षों तक का लंबा समय लग जाता है, तब कहीं संतोषजनक परिणाम निकलते हैं। काउंसिल के संततिनिरोध केंद्र में देशी ओषधियों से मुँह से खानेवाला संतोषजनक, गर्भरोधक योग बनाने का भी प्रयत्न हो रहा है।
 
तीसरी पंचवर्षीय योजना में जो महत्वशाली विषय अनुसंधान के लिये निर्दिष्ट किए गए हैं, वे ये हैं : जनता का दौर्बल्य (morbidity) सर्वेक्षण, मेडिकल कालेजों में अनुसंधान और व्यवसाय संबंधी स्वास्थ्य (occupational health)। अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिये एक चिकित्सा अन्वेषणशाला (मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट) तथा विकृति) (pathology) और चिकित्सा संबंधी [[जीव विज्ञान|जीवविज्ञान]] (biology) के इंस्टस्टिट्यूट बनाए जायँगे। इतने बृहत्‌ आयोजना के लिये तृतीय पंचवर्षीय योजना में ४.५ करोड़ रुपए निर्दिष्ट किए गए हैं, जो अधिक नहीं मालूम होते। आइ. सी. एम. आर. को प्रति वर्ष मिलनेवाली १२५ लाख रुपए की रकम इसके अतिरिक्त है।
 
तीसरी पंचवर्षीय योजना में विशेष उत्साहजनक बात यह है कि उसमें अनुसंधानकर्ताओं की आर्थिक स्थिति को उन्नत करने का भी ध्यान रखा गया है। यद्यपि अन्वेषकगण अपना कार्य उत्साहपूर्वक करते हैं, तथापि आर्थिक कठिनाइयाँ उनके मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती हैं। जब तक अनुसंधानकर्ताओं को आर्थिक चिंताओं से मुक्त नहीं किया जाता, वे स्वच्छंद एकाग्रता से अपना काम नहीं कर सकते। इसी तथ्य को हृदयंगम करके सरकार ने अन्वेषणकर्ताओं के लिये यूनिवर्सिटी शिक्षकों के समान वेतनक्रम का प्रस्ताव किया है।