"ख़िलाफ़त आन्दोलन": अवतरणों में अंतर

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[[महात्मा गांधी|गांधी]] ने 1920-21 में खिलाफ़त आन्दोलन क्यों चलाया, इसके दो दृष्टिकोण हैं:-
 
* एक वर्ग का कहना था कि गांधी की उपरोक्त रणनीति '''<u>व्यवहारिक अवसरवादी गठबन्धन</u>''' का उदाहरण था। वे समझ चुके थे कि अब भारत में शासन करना अंग्रेजों के लिए आर्थिक रूप से महंगा पड़ रहा है। अब उन्हें हमारे कच्चे माल की उतनी आवश्यकता नहीं है। अब सिन्थेटिक उत्पादन बनाने लगे हैं। अंग्रेजों को भारत से जो लेना था वे ले चुके हैं। अब वे जायेंगे। अत: अगर शान्ति पूर्वक असहयोग आन्दोलन चलाया जाए, सत्याग्रह आन्दोलन चलाया जाए तो वे जल्दी चले जाएँगे। इसके लिए '''हिन्दू-मुस्लिम एकता''' आवश्यक है। दूसरी ओर अंग्रेजों ने इस राजनीतिक गठबन्धन को तोड़ने की चाल चली।
 
* एक दूसरा दृष्टिकोण भी है। वह मानता है कि गांधी ने इस्लाम के पारम्परिक स्वरूप को पहचाना था। पन्थ के ऊपरी आवरण को दरकिनार करके उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता के स्वभाविक आधार को देख लिया था। 12वीं शताब्दी से साथ रहते रहते हिन्दु-मुसलमान सह-अस्तित्व सीख चुके थे। दबंग लोग दोनों समुदायों में थे। लेकिन फिर भी आम हिन्द-मुसलमान पारम्परिक जीवन दर्शन मानते थे, उनके बीच एक साझी विराजत भी थी। उनके बीच आपसी झगड़ा था लेकिन सभ्यतामूलक एकता भी थी। दूसरी ओर आधुनिक पश्चिम से सभ्यतामूलक संघर्ष है। गांधी यह भी जानते थे कि जो इस सभ्यता में समझ-बूझकर भागीदारी नहीं करेगा वह आधुनिक दृष्टि से भले ही पिछड़ जाएगा लेकिन पारम्परिक दृष्टि से स्थितप्रज्ञ कहलायेगा।