"विकलांग श्रद्धा का दौर": अवतरणों में अंतर

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'''विकलांग श्रद्धा का दौर''' [[हरिशंकर परसाई]] की [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] प्राप्त कृति है। विकलांग श्रद्धा का दौर के व्यंग्य अपनी कथात्मक सहजता और पैनेपन में अविस्मरणीय हैं, ऐसे कि एक बार पढ़कर इनका मौखिक पाठ किया जा सके। आए दिन आसपास घट रही सामान्य-सी घटनाओं से असामान्य समय-संदर्भों और व्यापक मानव-मूल्यों की उद्भावना न सिर्फ रचनाकार को मूल्यवान बनाती है बल्कि व्यंग्य-विधा को भी नई ऊँचाइयाँ सौंपती है। इस दृष्टि से इस कृति का महत्त्व और भी ज्यादा है।
 
[[श्रेणी:साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत]]
[[श्रेणी:पुस्तक]]