"नैमिषारण्य": अवतरणों में अंतर

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* '''पाण्डव किला'''- एक टीले पर मंदिर में श्रीकृष्ण तथा पाण्डवों की मूर्तियां हैं।
 
*''' चारों धाम मंदिर''' भारत के चारों दिशाओं में आदिशंकराचार्य जी के द्वारा स्थापित चारों धाम मंदिर नैमिषारण्य में महर्षि गोपाल दास जी के द्वारा स्थापित चारों धाम १जगन्नाथ धाम २बद्रीनाथ धाम ३द्वारिकाधीश धाम ४रामेश्वरम धाम एक साथ दर्शन
 
* '''सूतजी का स्थान'''- एक मंदिर में सूतजी की गद्दी है। वहीं राधा-कृष्ण तथा बलरामजी की मूर्तियां हैं।
 
* यहां स्वामी श्रीनारदनंदजी महाराज का आश्रम तथा एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, जहां ब्रह्मचारी प्राचीन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हैं। आश्रम में साधक लोग साधना की दृष्टि से रहते हैं। धारणा है कि [[कलियुग]] में समस्त तीर्थ नैमिष क्षेत्र में ही निवास करते हैं।
त्रि शक्ति मंदिर भी देखने योग्य है। इसमें दक्षिण भारत की कलाकृति देखने लायक है।
 
* पौराणिक काशी विश्वनाथ मन्दिर- चक्रतीर्थ ललिता देवी मार्ग से आधा किलोमीटर की दूरी पर एक प्राचीन शिवधाम है यहाँ के बारे में मान्यता है कि सावन मास में एक माह तक यहां निरन्तर दर्शन करने से सारे कार्य सिद्ध होते हैं , नैमिष स्थित काशी तीर्थ के निकट स्थित भोले बाबा का पवित्र धाम काशीविश्वनाथ मंदिर स्थित है , मान्यता है कि जो भक्त वाराणसी जाकर बाबा काशीविश्वनाथ के दर्शन न कर सके उसे यहाँ दर्शन करने से काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का पूरा फल मिलता है ये बेहद प्राचीन मंदिर सहसा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है , इस मन्दिर के प्रबन्धक पं पुरुषोत्तम शास्त्री बताते है कि जब देवताओं ने महर्षि दधीचि से उनकी अस्थियां दान करने का निवेदन किया तो दधीचि ऋषि ने मनुष्य योनि से मुक्ति के लिए सभी तीर्थों और देवस्थलों के दर्शन करने का देवताओं से आग्रह किया । जिस पर देवराज इंद्र ने नैमिष तीर्थ में सभी देवो व तीर्थो को आमन्त्रित किया । सभी ने नैमिष की चौरासी कोसीय परिक्रमा में अपना स्थान ग्रहण किया। जिनके दर्शन और पूजन से महर्षि दधीचि को मोक्ष मिला और उनकी हड्डियों से परम् शक्तिशाली वज्र शक्ति का निर्माण हुआ एवं दुष्ट वृत्तासुर का वध हुआ । इसी क्रम में चक्रतीर्थ के पूर्व में स्थित काशीकुण्ड के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख भगवान काशी विश्वनाथ जी का आगमन हुआ है उनके स्वरूप की प्रतिकृति में आज भी विद्यमान है मान्यता है कि इस शिवलिंग के दर्शन पूजन से वाराणसी के काशी विश्वनाथ के समकक्ष पुण्य अर्जित होता है ये शिवालय भी चिरकाल से यहाँ आने वाले शिवभक्तो की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है । इसके अलावा इस स्थान पर मां अन्नपूर्णा देवी का भी मंदिर है जो वाराणसी में अन्नपूर्णा दर्शन के समान ही फल प्रदान करता है ।
 
परमसंत आपा नारायण - काशीविश्वनाथ मंदिर के निकट नैमिष के परमसंत आपा नारायण स्वामी की समाधि स्थल है । यह नैमिष के परम् विरक्त सन्त हुए । आपा नारायण स्वामी ने यहां तपस्या रत रहते हुए विश्व कल्याण के लिए जीवित समाधि ली और चिरनिद्रा में लीन हुए । शास्त्री जी का कहना है कि यहां आये है तो यहाँ देवों ऋषियों से ईश्वर की भक्ति और पापकर्मो , पुनर्जन्म से मुक्ति मांगिये क्योंकि इसी से मानव जीवन का कल्याण है वहीं नैमिष में जो मनुष्य आकर धन, संपदा का लोभ करता है पाप करता है उसका सर्वनाश हो जाता है ।
 
== सन्दर्भ ==