"ब्रह्म मुद्रा": अवतरणों में अंतर

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ब्रह्म मुद्रा में कमर सीधी रखते हुए [[पद्मासन]] में बैठना होता है।<ref name="दरबारु">[http://darbaru.blogspot.com/2009/08/yoga.html गर्दन को स्वस्थ रखे ब्रह्म मुद्रा]।दरबारु ब्लॉग।{{हिन्दी चिह्न}}।[[२० अगस्त]], [[२००९]]।</ref> वैसे वज्रासन या सिद्धासन में भी बैठा जा सकता है।<ref name="वेब दुनिया">[http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/yoga/yogasan/0804/16/1080416094_1.htm ब्रह्म मुद्रा ]।वेब दुनिया।{{हिन्दी चिह्न}}</ref> फिर अपने हाथों को घुटनों पर और कंधों को ढीला छोड़कर गर्दन को धीरे-धीरे दस बार ऊपर-नीचे करना होता है। सिर को पीछे की झुकने देते हैं। गर्दन को चलाते समय श्वास क्रिया को सामान्य रूप से चलने देते हैं और आंखें खुली रखते हैं। इस के साथ ही गर्दन को झटका दिए बिना दाएं-बाएं भी बारी-बारी से चलाना होता है।
[[चित्र:Ravi_Varma-Dattatreya.jpg|thumb|left|ब्रह्म मुद्रा के अंतर्गत ब्रह्ममुद्रा के तीन मुख और भगवान [[दत्तात्रेय]] के स्वरूप को स्मरण करते हुए कोई साधक तीन दिशाओं में अपना सिर घुमाता है। इसी कारण इसे ब्रह्ममुद्रा कहा जाता है।]]
ठोड़ी कंधे की सीध में रखते हैं। दाएं-बाएं दस बार गर्दन घुमाने के बाद पूरी गोलाई में यथासंभव गोलाकार घुमाकर इस क्रम में कानों को कंधों से छुआते हैं। इसी का अभ्यास लगातार करने को ब्रह्ममुद्रा योग कहा जाता है। इसके चार से पांच चक्र तक किये जा सकते हैं।<ref name="वेब दुनिया"/> यह मुद्रा करते हुए ध्यान रखना चाहिये कि [[मेरुदंड]] पूर्ण रूप से सीधा रहना चाहिये। इसके अलावा जिस गति से गर्दन ऊपर जाये, उसी गति से गर्दन नीचे भी लानी चाहिये।<ref name="वेब दुनिया"/> [[सर्वाइकल स्पॉन्डिलोसिस]] या [[अवटु ग्रंथि की निम्नसक्रियता]] तथा [[अवटु ग्रंथि की अतिसक्रियता|अतिसक्रियता]] ([[थायरॉयड]]) के रोगियों को ध्यान रखना चाहिये कि वे ठोड़ी को ऊपर की ओर दबायें। गर्दन को नीचे की ओर ले जाते समय कंधे न झुकायें, कमर, गर्दन व कंधे सीधे रखें। गले या गर्दन का कोई गंभीर रोग होने पर चिकित्सक की सलाह के बाद ही अभ्यास करें।<ref name="वेब दुनिया"/>