"भारतीय विधि आयोग": अवतरणों में अंतर

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=== द्वितीय आयोग ===
द्वितीय आयोग की नियुक्ति १८५३1853 ई. के चार्टर के अंतर्गत हुई। इसे प्रथम आयोग द्वारा प्रस्तुत प्रारूपों, एवं न्यायालय तथा न्यायप्रक्रिया के सुधार हेतु आयोग द्वारा दिए गए सुझावों का परीक्षण कर रिपोर्ट देने का कार्य सौंपा गया। इस आयोग के आठ सदस्य थे।
 
अपनी प्रथम रिपोर्ट में आयोग ने फोर्ट विलियम स्थित सर्वोच्च न्यायालय एवं सदर दीवानी और निजामत अदालतों के एकीकरण का सुझाव दिया, प्रक्रियात्मक विधि की संहिताएँ तथा योजनाएँ प्रस्तुत कीं। इसी प्रकार पश्चिमोत्तर प्रांतों और मद्रास तथा बंबई प्रांतों के लिए भी तृतीय और चतुर्थ रिपोर्ट में योजनाएँ बनाइर्ं। फलस्वरूप १८५९1859 ई. में दीवानी व्यवहारसंहिता एवं लिमिटेशन ऐक्ट, १८६०1860 में भारतीय दंडसंहिता एवं १८६१1861 में आपराधिक व्यवहारसंहिता बनीं। १८६१1861 ई. में ही भारतीय उच्च न्यायालय विधि पारित हुई जिसमें आयोग के सुझाव साकार हुए। १८६१1861 में [[दीवानी संहिता]] उच्च न्यायालयों पर लागू कर दी गई। अपनी द्वितीय रिपोर्ट में आयोग ने संहिताकरण पर बल दिया, किंतु साथ ही यह सुझाव भी दिया कि हिंदुओें और मुसलमानों के वैयक्तिक कानून को स्पर्श करना बुद्धिमत्तापूर्ण न होगा। यह कार्य फिर एक शताब्दी के बाद ही संपन्न हुआ। इस आयोग की आय केवल तीन वर्ष रही।
 
=== तृतीय आयोग ===