"लसीका तंत्र": अवतरणों में अंतर

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लसीका तंतुओं के असंख्य सूक्ष्म तथा अनियमित लसीका-अंतरालों में प्रकट होती हैं। वे अंतराल परस्पर अनेक ऐसी सूक्ष्म लसीकावाहिनियों द्वारा संबद्ध होते हैं, जो पतली शिराओं के समान अत्यंत कोमल दीवार तथा अत्यधिक कपाटों से युक्त होती हैं। ये [[केशिका|केशिकाओं]] (capilaries) के सदृश कोषाणुओं के केवल एक स्तर से ही बनी होती हैं और उन्हीं के सदृश इनमें मायलिन पिघान रहित तंत्रिकातंतुओं (non-medullated nerve fibres) का वितरण होता है। छोटी-छोटी ये लसीकावाहिनियाँ परस्पर मिलकर बड़ी बड़ी लसीकावाहिनियों का रूप धारण कर लेती हैं, जिनमें आगे चलकर दो शाखाएँ निकलती हैं : (1) दक्षिण तथा (2) वाम। दक्षिण शाखा में शरीर के थोड़े भाग से लसीकावाहिनियाँ मिलती हैं, यथा सिर और ग्रीवा का दक्षिण भाग, दक्षिण शाखा (हाथ, पैर) एवं वक्ष का दक्षिण पार्श्व। वाम शाखा में शरीर के शेष भाग से, जिनमें पाचननलिका भी सम्मिलित है, लसीकावाहिनियाँ आकर मिलती हैं। इन दोनों शाखाओं में कपाटों का बाहुल्य होता है। लसीका पीछे की ओर नहीं लौट सकती। प्रत्येक शाखा के खुलने के स्थान पर भी एक कपाट होता है, जो लसीका के शिराओं में ही प्रविष्ट होने में सहायक होता है, शिरारक्त को विपरीत दिशा में नहीं जाने देता।
 
== लसीकाग्रंथियाँ ==
सभी लसीकावाहिनियाँ अपने मार्ग के किसी न किसी भाग में लसीकाग्रंथियों से होकर गुजरती हैं। इन्हीं ग्रंथियों में लसीकाकणिकाओं (lymph corpuscles) का निर्माण होता है। ये ग्रंथियाँ आकार में गोल या अंडाकार होती हैं तथा इनकी आकृति वृक्क जैसी होती है। इसके सबसे बाहर संयोजक ऊतक का एक कोष होता हैं, जिसमें कुछ अनैच्छिक पेशीसूत्र (involuntary muscle fibres) भी रहते हैं। कोष से प्रवर्धन ग्रंथि के भीतर वृंत की ओर जाते हुए बहुत से ट्रैवेक्यूला (trabecula) होते हैं। लसीकाग्रंथि का बाह्य भाग अनेक कोष्ठों में विभक्त रहता है, जिन्हें लसीका कोष्ठिकाएँ (Alveoli) कहते हैं। इन कोष्ठिकाओं में जाल के समान लसीकातंतु भरा रहता है, जिसके बीच बीच में लसीकाकणिकाएँ भरी रहती हैं।
 
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कुछ प्राणियों में तथा शरीर के कुछ भागों में इन ग्रंथियों का रंग लाल होता है। इन्हें रुधिर (haemal) लसीकाग्रंथि कहते हैं। इनकी लसीकावाहिनियों में रुधिर भरा रहता है।
 
== लसीका का प्रवाह ==
24 घंटों में लसीकापथों से निकलकर रुधिर में प्रविष्ट होनेवाली लसीका का परिमाण बहुत अधिक होता है। यह देखा गया है कि आहार पूरा मिलने पर रुधिर के बराबर परिमाण में ही लसीका 24 घंटों में दक्षिण और वाम शाखाओं से गुजरती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि लसीका संस्थान में लसीका का प्रवाह अति शीघ्रता से होना चाहिए।
 
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(5) लसीकावाहिनी में स्थित कपाट।
 
== लसीका का निर्माण ==
[[चित्र:Illu lymph capillary.png|right|300px|thumb|अन्तस्थ द्रव (interstitial fluid) से लसीका का निर्माण]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://www.emc.maricopa.edu/faculty/farabee/BIOBK/BioBookIMMUN.html Lymphatic System]
* [http://www.innerbody.com/image/lympov.html Lymphatic System Overview] (innerbody.com)
 
[[श्रेणी:शरीर रचना विज्ञान]]
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[[tl:Sistemang limpatiko]]
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