"अवेस्ता": अवतरणों में अंतर

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जिस भाषा के माध्यम का आश्रय लेकर [[जरथुस्त्र धर्म]] (पारस (इरान) का मूल धर्म) का विशाल साहित्य निर्मित हुआ है उसे '''अवेस्ता''' कहते हैं। अवेस्ता या "ज़ेंद अवेस्ता" नाम से भी धार्मिक भाषा और धर्म ग्रंथों का बोध होता है। उपलब्ध साहित्य में इसका प्रमाण नहीं मिलता कि पैंगंबर अथवा उनके समकालीन अनुयायियों के लेखन अथवा बोलचाल की भाषा का नाम क्या था। परंतु परंपरा से यह सिद्ध है कि उस भाषा और साहित्य का भी नाम "अविस्तक" था। अनुमान है कि इस शब्द के मूल में "विद्" (जानना) धातु है जिसका अभिप्राय ज्ञान अथवा बुद्धि है।
 
== इतिहास ==
बहुत प्राचीन काल में आर्य जाति अपने प्राचीन आवास "आर्य वजेह" (आर्यों की आदिभूमि) में रहा करती थी जो सुदूर उत्तरी प्रदेश में अवस्थित था "जहाँ का वर्ष एक दिन के बराबर" होता था। उस स्थान को निश्चयात्मक रूप से बतला पाना कठिन है। बाल गंगाधर तिलक ने अपने ग्रंथ "दि आर्कटिक होम" में इस भूमि को उत्तरी ध्रुव प्रदेश में बतलाया है जहाँ से आर्यों ने पामीर की श्रृखंला में प्रवास किया। बहुत समय पर्यंत एक सुगठित जन के रूप में वे एक स्थान में रहे, एक ही भाषा बोलते, विश्वासों, रीतियों और परंपराओं का समान रूप से पालन करते रहे। जनसंख्या में वृद्धि तथा उत्तरी प्रदेश के शीत तथा अन्य कारणों ने उनकी श्रृंखला छिन्न-भिन्न कर दी। आर्यजन के विविध कुलों में दो कुलों के लोग, जो आगे चलकर भारतीय (इंडियन) और ईरानी शाखाओं के नाम से विख्यात हुए, पूर्वी ईरान में दीर्घ काल तक और निकटतम संपर्क में रहे। आगे चलकर एक जत्थे ने हिंदूकुश की पर्वमाला पार कर पंजाब के लगभग 2000 ई.पू. प्रवेश किया। शेष जन आर्यों की आदिभूमि की परंपरा का निर्वाह करते हुए ईरान में ही रह गए। अवेस्तास, विशेषत:अवेस्ता के गाथासाहित्य और वैदिक संस्कृत में निकटतम समानता वर्तमान है। भेद केवल ध्वन्यात्मक (फ़ोनेटिक) और निरुक्तगत (लेक्सिकोग्राफ़िकल) हैं। दो बहन भाषाओं के व्याकरण और रचनाक्रम (सिंटैक्स) में भी निकट साम्य है।
 
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== अवेस्ता साहित्य ==
अवेस्ता युग की रचनाओं में प्रारंभ से लेकर 200 ई. तक तिथिक्रम से आनेवाली सर्वप्रथम रचनाएँ "गाथाएँ" हैं जिनकी संख्या पाँच है। अवेस्ता साहित्य के वे ही मूल ग्रंथ हैं जो पैगंबर के भक्तिसूत्र हैं और जिनमें उनका मानव का तथा ऐतिहासिक रूप प्रतिबिंबित है, न कि काल्पनिक व्यक्ति का, जैसा कि बाद में कुछ लेखकों ने अपने अज्ञान के कारण उन्हें अभिव्यक्त करने की चेष्टा की है। उनकी भाषा बाद के साहित्य की अपेक्षा अधिक आर्ष है और वाक्यविन्यास (सिंटैक्स), शैली एवं छंद में भी भिन्न है क्योंकि उनकी रचना का काल विद्वानों ने प्राचीनतम वैदिक मंत्रों की रचना का समय निर्धारित किया है। नपे तुले स्वरों में रचे होने के कारण वे सस्वर पाठ के लिए ही हैं। उनमें न केवल गूढ़ आध्यात्मिक रहस्यानुभूतियाँ वर्तमान हैं, वे विषयप्रधान ही न होकर व्यक्तिप्रधान भी हैं जिनमें पैगंबर के व्यक्तित्व की विशेष रूप से चर्चा की गई है, उनके ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित करने और उस विशेष अवस्था के परिज्ञान के लिए वांछनीय आशा, निराशा, हर्ष, विषाद, भय, उत्साह तथा अपने मतानुयायियों के प्रति स्नेह और शत्रुओं से संघर्ष आदि भावों का भी समावेश पाया जाता है। यद्यपि पृथ्वी पर क मनुष्य का जीवन वासना से घिरा हुआ है, पैगंबर ने इस प्रकार शिक्षा दी है कि यदि मनुष्य वासना का निरोध कर सात्विक जीवन व्यतीत करे तो उसका कल्याण अवश्यभावी है।
 
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आधुनिक पारसी वर्णमाला के आविष्कार से पहलवी का प्रचार लुप्त हो गा। ज़रथुस्त्र मत के ग्रंथ भी अब प्राय: आधुनिक फारसी में लिखे जाने लग गए।
 
== वाह्य सूत्र ==
* [http://avesta.org/ avesta.org: Translations of the Avesta texts]
* [http://www.newadvent.org/cathen/02151b.htm The Avesta] (Catholic Encyclopedia)
[http://www.zarathushtra.com/z/gatha/dji/The%20Gathas%20-%20DJI.pdf The Gathas]
* [http://www.livius.org/au-az/avesta/avesta.html The Avesta at LIVIUS]
 
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