"चंदेरी दुर्ग": अवतरणों में अंतर
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'''चंदेरी किला''' [[मध्य प्रदेश]] के [[गुना]] जिले के नजदीक स्थित है. आज चंदेरी यहाँ की कशीदाकारी के काम व् सारीयों के लिए जाना जाता है. प्रसिद्ध संगीतकार [[बैजू बावरा]] की कब्र, कटा पहाड़ और राजपूत स्त्रियों के द्वारा किया गया सामूहिक आत्मदाह (जौहर) यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं. [[मुहम्मद गौरी]] के द्वारा किये गए आक्रमण से यह किला लगभग तबाह हो गया था. कहा जाता है यह किला मुहम्मद गौरी के लिए काफी महत्व का था इसलिए उसने चंदेरी के तत्कालीन राजपूत राजा से यह किला माँगा. बदले में उसने अपने जीते हुए कई किलों में से कोई भी किला राजा को देने की पेशकश भी की. परन्तु राजा चंदेरी का किला देने के लिए राजी ना हुआ. तब गौरी ने किला युद्ध से जीतने की चेतावनी दी. चंदेरी का किला आसपास की पहाड़ियों से घिरा हुआ था इसलिए राजा आश्वस्त व् निश्चिन्त था. गौरी की सेना में हाथी तोपें और भारी हथियार थे जिन्हें ले कर उन पहाड़ियों के पार जाना दुष्कर था और पहाड़ियों से नीचे उतरते ही चंदेरी के राजा की फौज का सामना हो जाता. कहा जाता है की गौरी निश्चय पर दृढ था और उसने एक ही रात में अपनी सेना से पहाडी को काट डालने का अविश्वसनीय कार्य कर डाला. उसकी सेना ने एक ही रात में एक पहाडी को ऊपर से नीचे तक काट कर एक ऐसी दरार बना डाली जिससे हो कर उसकी पूरी सेना और साजो-सामान ठीक किले के सामने पहुँच गयी. सुबह राजा अपने किले के सामने पूरी सेना को देख भौचक्का रह गया. परन्तु राजपूत राजा ने बिना घबराए अपने कुछ सौ सिपाहियों के साथ गौरी की विशाल सेना का सामना करने का निर्णय लिया और अपनी राजपुतनियों को अंतिम विदा कर आत्मघाती युद्ध के लिए प्रस्थान किया. युद्ध में स्वाभाविक तौर पे समस्त राजपूत सेना का खात्मा हो गया. तब किले में सुरक्षित राज्पूत्नियों ने स्वयं को आक्रमणकारी सेना से अपमानित होने की बजाये स्वयं को ख़त्म करने का निर्णय लिया, एक विशाल चिता का निर्माण किया और सभी स्त्रियों ने सुहागनों का श्रृंगार धारण कर के स्वयं को उस चिता के हवाले कर दिया. जब गौरी और उसकी सेना किले के अन्दर पहुँची तो उसके हाथ कुछ ना आया. राजपूतों का शौर्य और राज्पूत्नियों के जौहर के इस अविश्वसनीय कृत्य वह इतना बोखलाया की उसने खुद के लिए इतने महत्त्वपूर्ण किले का संपूर्ण विध्वंस करवा दिया तथा कभी उस का उपयोग नहीं किया. आज भी वह रास्ता टूटे किले की बुर्जों से दिखता है जिसे गौरी ने एक ही रात में पहाडी को कटवा कर बनाया था तथा उसे "कटा पहाड़" के नाम से जाना जाता है. बाद के एक राजा ने उस जगह पर एक पत्थर का दरवाजा लगवाया. दरवाजे के ऊपर आज भी गौरी की सेना द्वारा चलायी गई छेनियों के निशान देखे जा सकते हैं.
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