"गोरिल्ला युद्ध": अवतरणों में अंतर

नया पृष्ठ: गोरिल्ला या गेरिला (guerrilla) शब्द, जो छापामार के अर्थ में प्रयुक्त हो...
 
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छापामारों को पहचानना कठिन है। इनकी कोई विशेष वेशभूषा नहीं होती। दिन के समय ये साधारण नागरिकों की भाँति रहते और रात को छिपकर आतंक फैलाते हैं। छापामार नियमित सेना को धोखा देकर विध्वंस कार्य करते हैं।
 
==परिचय व इतिहास==
साधारण युद्धों के साथ ही छापामार युद्धों का भी प्रचलन हुआ। सबसे पहला छापामार युद्ध 360 वर्ष ईसवी पूर्व चीन में सम्राट् हुआंग से अपने शत्रु सी याओ (Tse yao) के विरुद्ध लड़ा था। इसमें सी याओ (Tse yao) हार गया। इंग्लैड के इतिहास में छापामार युद्ध का वर्णन मिलता है। केरेक्टकर (Caractacur) ने दक्षिणी वेल्स के गढ़ से छापामार युद्ध में रोमन सेना को परेशान किया था। भारत में छापामार युद्ध का अधिक प्रयोग 17वीं शताब्दी के अंत में और 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ। मरहठों के इन छापामार युद्धों ने शक्तिशाली मुगल सेना का आत्मवि·ाास नष्ट कर दिया। शांताजी घोरपड़े और धानाजी जाधव नाम के सरदारों ने अपने भ्रमणशाली दस्तों से सारे देश को पदाक्रांत कर डाला। जब मुगल सेना आक्रमण की आशा नहीं करती थी, उस समय आक्रमण करके उन्होंने प्रमुख मुगल सरदारों को विस्मित और पराजित किया। मरहठों की सफल छापामार युद्धनीति ने मुगल सेना के साधनों को ध्वस्त कर दिया और उनके अनुशासन और उत्साह को ऐसा नष्ट कर दिया कि सन् 1706 ई. में औरंगजेब को अपनी उत्तम सेना को अहमदनगर वापस बुलाना पड़ा और अगले वर्ष औरंगजेब की मृत्यु हो गई। छापामार मराठे अपने दृढ़ टट्टुओं पर सवार होकर चारों ओर फैल जाते, प्रदाय रोक लेते, अंगरक्षकों के कार्य में बाधा डालते और ऐसे स्थान पर पहुँचकर, जहाँ उनके पहुँचने की सबसे कम आशा होती, लूटमार करते और सारे प्रदेश को आक्रांत कर देते। इस युद्धनीति ने मुगलों की कमर तोड़ दी, उनके साधनों को नष्ट कर दिया इनकी फुर्ती के कारण मुगल सेना इनको पकड़ न सकी। इसी लिए स्पेन के छापामारों ने प्रायद्वीपीय युद्ध में, और रूस के अनियमित सैनिकों ने मास्को के युद्ध में नैपोलियन की नाक में, दम कर दिया। अमरीकी क्रांति में कर्नल जान एस. मोसली इत्यादि प्रमुख छापामार थे। इन्हें अपने शत्रुओं को बड़े प्रभावशाली ढंग से धमकाया और परेशान किया इस क्रांति में छापामार युद्धों ने एक नई दिशा ली। अब तक युद्ध राज्यों द्वारा लड़े जाते थे। किंतु अब यह राष्ट्रीय विषय बन गया और नागरिक भी व्यक्तिगत रूप से इसमें सम्मिलित हो गए।
 
==युद्धनीति ==
युद्धनीति - छापामार सैनिकों का सिद्धांत है - 'मारो और भाग जाओ' । ये सहसा आक्रमण करते हैं, अदृश्य हो जाते हैं और थोड़ी दूर पर ही प्रकट हो जाते हैं। वे अपने पास बहुत कम सामान रखते हैं। इनके लिए कोई नियंत्रणकर्ता भी नहीं रहता, अत: इनकी क्रियाशीलता में बाधा नहीं पड़ती। छापामार सेना साधारणत: अपने से बलवान् सेना सहसा आक्रमण करके अपनी रक्षा कर लेती है। उन्हें अपनी बुद्धि विशेष वि·ाास रहता है। अपनी सुरक्षा के लिये ये सूचना देनेवाले की व्यवस्था रखते हैं।
 
छापामार युद्ध का उद्देश्य है शत्रु की नियमित सेना का प्रभाव घटाना। इस उद्देश्य की अच्छे ढ़ंग से पूर्ति करने के लिये ये शत्रु के पीछे कार्य करते हैं। साथ ही बड़े पैमाने पर किए जानेवाले नियमित सेना के कार्यों में भी सहायता पहुँचाते हैं। छापामारों का लक्ष्य सैनिक ही नहीं रहते। वे रेल, यातायात, रसद, पुल और इसी के अन्य साधनों को भी क्षति पहुंचाते हैं, जो शत्रुओं की नियमित सेना कार्यों में बाधा डाल सकें।
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छापामार युद्ध से रक्षा के लिये छापामारों द्वारा प्रयुक्त अनियमित विधियों का ज्ञान आवश्यक है जिससे सहकारी प्रयत्नों द्वारा उनके प्रयत्नों को तुरंत नष्ट कर दिया जाय। एक और विशेष उपयोगी विधि उस क्षेत्र को घेर लेना है जिसमें छापामार विश्राम करते हैं।
 
==प्रथम विश्वयुद्ध==
प्रथम विश्वयुद्ध - प्रथम विश्वयुद्ध में यूरोप में लंबे मोरचे लगते थे। छापामारों के लिये ये क्षेत्र विशेष आकर्षक नहीं किंतु सन् 1916-18 का अरब का विद्रोह तो बिलकुल अनियमित था। कर्नल टी.ई. लारेंस ने अरब की सेना के सहयोग से छापामारी के जो कार्य किए वे उल्लेखनीय हैं। मध्यपूर्व के तुकों की दो दुर्बलताएँ थीं प्रथम तो जनता अथवा अरबों के बीच की अशांति और द्वितीय तुर्क साम्राज्य को नियंत्रित करनेवाली भंजनशील और दुर्बल संचार व्यवस्था। लारेंस और उनके सहायक अरबों ने तुर्क गढ़ों से बचते हुए रेल की लाइनें काट दीं, आक्रमणों से तुर्कों को परेशान किया और उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। अब दूसरी ओर से जार्डन में स्थित नियमित अंग्रेजी सेना ने प्रमुख तुर्क सेना पर आक्रमण कर दिया। इधर लारेंस ने अपनी सेना की सहायता से इस तुर्की सेना का अन्य सेनाओं से संबंध विच्छेद कर दिया। लारेंस की सफलता के कारण थे उसकी सेना की गतिशीलता, बाह्य सहायता, समय और जनमत, जिससे नागरिकों की सहायता प्राप्त हो सकी। इस प्रकार छापामारों को विजय मिली।
 
दूसरे विश्वयुद्ध का प्रारंभ होने के पूर्व छापामार युद्ध का एक उत्कृष्ट उदाहरण देखा गया। जापानियों ने चीनियों पर आक्रमण कर दिया। सन् 1937 ई. में चीनी सेनाओं ने नगरों को खाली कर दिया और स्वयं पीछे हट गए। चीन के लोगों को अमरीका से शस्त्र और गोला बारूद मिला। जिसकी सहायता से इन्होंने शत्रु सेना को एक लंबे काल तक बहुत परेशान किया और छोटे छोटे सैनिक दलों को मुख्य सेना से अलग करके नष्ट कर दिया।
 
==द्वितीय विश्वयुद्ध और उसके पश्चात्==
[[द्वितीय वि·ायुद्ध और उसके पश्चात् - द्वितीय वि·ायुद्धविश्वयुद्ध]] में छापामारी के लिये विस्तृत क्षेत्र मिला। यूरोप में जर्मनों की और दक्षिणी-पूर्वी एशिया में जापानियों की विजय इतनी तीव्रता से और इतने विस्तृत क्षेत्र में हुई कि विजित क्षेत्रों में शासन का अच्छा प्रबंध न हो सका। सैनिकों ने जैसे ही एक स्थान पर विजय पाई, उन्हें सहसा आगे बढ़ जाने की आज्ञा मिली। विजित क्षेत्र छोटे छोटे सैनिक दलों के अधिकार में छोड़ देने पड़े। छापामारी के लिये ये क्षेत्र आदर्श स्थल बन गए और शीघ्र ही शत्रु दलों के बिखरे हुए संचार क्षेत्रों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया गया।
 
उत्तरी अफ्रीका में इटली की सेनाओं ने प्रारंभ में बड़े बड़े क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया और वहाँ के निवासियों को बुरी तरह कुचल दिया। यहाँ का जनमत इटली के विपरीत हो गया। अँगरेजों ने इस भावना का लाभ उठाया और वहाँ के मूलवासियों की सहायता से सफलतापूर्वक छापामार युद्धों का संचार किया। इटली के फौजी दस्तों की संचार व्यवस्था, हवाई अड्डे, पेट्रोल, गोला बारूद के भंडार, मोटर यातायात आदि बेंगाजी से मिस्त्र की सीमा तक फैले हुए थे। उपयुक्त शस्त्रों से सज्जित पैदल सेना या जीपें इन छापामार सैनिकों के लिये विशेष उपयुक्त थीं। छापामार शत्रुदल के लक्ष्यों पर रात्रि में आक्रमण करते थे।
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जून, सन् 1950 ई. में कोरिया में जो संघर्ष व्यापक हो गया उसमें अत्यंत आधुनिक शस्त्रों से सज्जित नियमित सेना के विरुद्ध छापामारी अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हुई। यहाँ साम्यवादी छापामारों को अपने से श्रेष्ठ शक्तियों से अपने को बचाने की शिक्षा दी गई थी। छोटी टुकड़ियों द्वारा शीघ्रतापूर्ण आक्रमण करने तेजी के साथ पीछे हटने, तितर बितर हो जाने और पुन: एकत्र होने पर विशेष बल दिया गया। छापामारी के मुख्य अंग थे सीधा आक्रमण और छिपकर आक्रमण। 10 हजार से 20 हजार तक की जनसंख्यावाले नगरों पर सन् 1956 ई. तक आक्रमण होते रहे। आक्रामक दलों में 50 से 300 तक व्यक्ति रहते थे। आक्रमण क्रमानुसार दो दलों की सहायता से होता था। पहली टुकड़ी आक्रामक क्षेत्र में पहुँचती और अपने कार्य की पूर्ति करके तितर बितर हो जाती। दूसरी टुकड़ी के पलायन के समय पहली टुकड़ी उसकी रक्षा करती। लौटना सदैव किसी अन्य मार्ग से होता, जो पहाड़ों से या किसी बड़ी नदी को पार होकर रहता था। युद्ध और प्रचार के हेतु शत्रु पक्ष को परेशान भी किया जाता था, जिससे शत्रुसेना का नैतिक पतन हो जाय।
 
==निष्कर्ष : छापामार युद्ध से पाठ - ==
यह सिद्ध हो चुका है कि छापामार युद्ध के सिद्धांत आज भी वही हैं जो युद्ध के आरंभिक समय में थे। आज भी छापामार तीव्र गति से चलते हैं, धोखा देकर शत्रुदल पर वहाँ आक्रमण करते हैं जहाँ वह सबसे अधिक दुर्बल होता है। साथ ही वे शत्रु को प्रत्याक्रमण करने का अवसर भी नहीं देते।
 
युद्ध में प्रयुक्त होनेवाले शस्त्रों, साज सामानों, सैनिक स्थापनों आदि व्यवस्थाओं की भेद्यता के साथ साथ ही, जिनकी सहायता से शीघ्रतापूर्वक आक्रमण या अंतध्र्वंस संभव है, छापामारों का क्षेत्र भी बढ़ता जा रहा है। साथ ही आधुनिक युद्धविधियों में भी इस प्रकार के युद्ध का महत्व बढ़ गया है। सुनिर्धारित लक्ष्य और युद्धकौशल की परमावश्यक शृंखलाओं के विनाश द्वारा शत्रु के आक्रमण की सारी योजनाओं को विफल बनाया जा सकता है। भौगोलिक परिस्थितियाँ भी अपना विशेष महत्व रखती हैं और छापामारी के लिये सुविधाजनक कार्यक्षेत्र अत्यंत आवश्यक है।
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छापामारों का प्रमुख कार्य है शत्रुसेना को उनके पृष्ठभाग से मिलने वाली सामग्री का विनाश करना। आणविक शस्त्रों के विकास को देखते हुए सामरिक नीति बदलेगी। सेनाएँ छोटी छोटी टुकड़ियों में विभाजित होंगी। प्रदाय स्त्रोतों, युद्ध आधारों, उद्योगों तथा अन्य सामरिक व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करना आवश्यक होगा। फलस्वरूप, यदि आणविक शक्ति का प्रयोग हुआ, तो छापामारों के लक्ष्य आकार में छोटे और संरक्षण अधिक हो जायँगे। परिणाम यह होगा कि छापामारी का क्षेत्र विशाल और अधिक प्रभावी बन जायगा। नियमित सेना भी छोटी छोटी टुकड़ियों में युद्ध करेगी। इन परिस्थितियों में छापामार युद्ध ही विशेष सफल हो सकेंगे। यह कहना अनुचित न होगा कि युद्ध में आणविक शस्त्रों का प्रयोग होने पर केवल छापामार युद्ध ही प्रमुख महत्व का होगा और अन्य विधियों का साधारण उपयोग ही रह जायगा।
 
==बाहरी कड़ियाँ==
* [http://es.youtube.com/watch?v=Lk9zCmbIFAM&feature=related Spanish Anthem of the traditional Guerrilleros unit]
* [http://es.youtube.com/watch?v=uB_b_kfnc3M&feature=related Tribute to Mexican Women Guerrilleras. ''On the Freedom Country'']
* [http://www.youtube.com/watch?v=Xudmib4Posg abcNEWS: The Secret War] - Pakistani militants conduct raids in Iran
* [http://blogs.abcnews.com/theblotter/2007/04/abc_news_exclus.html abcNEWS Exclusive: The Secret War] - Deadly guerrilla raids in Iran
* [http://insurgencyresearchgroup.wordpress.com/ Insurgency Research Group] - Multi-expert blog dedicated to the study of insurgency and the development of counter-insurgency policy.
* [http://www.spartacus.schoolnet.co.uk/VNguerrilla.htm Guerrilla warfare on Spartacus Schoolnet]
* [http://www.britannica.com/eb/article-9110197/guerrilla-warfare Encyclopaedia Britannica, Guerrilla warfare]
* [http://www.marxists.org/reference/archive/mao/works/1937/guerrilla-warfare/ Mao on Guerrilla warfare]
* [http://www.army.mil/prof_writing/volumes/volume2/march_2004/3_04_1.html Relearning Counterinsurgency Warfare]
* [http://www.insurgentdesire.org.uk/warfare.htm Guerrilla Warfare]
* {{PDFlink|[http://www.freepeoplesmovement.org/guwar.pdf Che Guevara on Guerrilla Warfare]|254&nbsp;[[Kibibyte|KiB]]<!-- application/pdf, 260191 bytes -->}}
* [http://www.sepiamutiny.com/sepia/archives/002207.html Counter Insurgency Jungle Warfare School (CIJWS)India]
 
[[श्रेणी:युद्ध]]
[[श्रेणी:राजनीति]]
 
[[ar:حرب العصابات]]
[[az:Partizan müharibəsi]]
[[be:Партызанская вайна]]
[[bs:Gerilsko ratovanje]]
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[[ca:Guerrilla]]
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