"विटामिन डी": अवतरणों में अंतर

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[[डेनमार्क]] के शोधकर्ताओं के अनुसार विटामिन डी शरीर की टी-कोशिकाओं की क्रियाविधि में वृद्धि करता है, जो किसी भी बाहरी संक्रमण से शरीर की रक्षा करती हैं। इसकी मानव [[प्रतिरक्षा प्रणाली]] को मजबूत करने में मुख्य भूमिका होती है और इसकी पर्याप्त मात्रा के बिना प्रतिरक्षा प्रणालीकी टी-कोशिकाएं बाहरी संक्रमण पर प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहती हैं।<ref>[http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/lifestylenews/50-50-99774.html बार-बार बीमार होने से बचाता है विटामिन डी]</ref> टी-कोशिकाएं सक्रिय होने के लिए विटामिन डी पर निर्भर रहती हैं। <ref>[[द डेली टेलीग्राफ]] ने [[कोपनहेगन विश्वविद्यालय]] के मुख्य शोधकर्ता प्रो कार्स्टन गेस्लर के हवाले से कहा</ref> जब भी किसी टी-कोशिका का किसी बाहरी संक्रमण से सामना होता है, यह विटामिन डी की उपलब्धता के लिए एक संकेत भेजती है। इसलिये टी-कोशिकाओं को सक्रिय होने के लिए भी विटामिन डी आवश्यक होता है। यदि इन कोशिकाओं को रक्त में पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिलता, तो वे चलना भी शुरू नहीं करतीं हैं।
 
'''अधिकता''': विटामिन डी की अधिकता से शरीर के विभिन्न अंगों, जैसे [[गुर्दा|गुर्दों]] में, [[हृदय]] में, रक्त [[रक्त वाहिका|वाहिकाओं]] में और अन्य स्थानों पर, एक प्रकार की पथरी उत्पन्न हो सकती है। ये विटामिन [[कैल्शियम]] का बना होता है, अतः इसके द्वारा पथरी भी बन सकती है। इससे [[रक्तचाप]] बढ सकता है, रक्त में [[कोलेस्टेरॉल]] बढ़ सकता है, और हृदय पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही चक्कर आना, कमजोरी लगना और [[सिरदर्द]], आदि भी हो सकता है। पेट खराब होने से दस्त भी हो सकता है।<ref name="निरोग"/>
==स्रोत==
इसके मुख्य स्रोतों में [[अंडा|अंडे]] का पीला भाग, मछली के तेल, विटामिन डी युक्त [[दूध]] और [[मक्खन]] होते हैं। इनके अलावा मुख्य स्रोत [[धूप]] सेंकना होता है।