"कांचबिंदु": अवतरणों में अंतर

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'''कांच बिंदु रोग''' ([[अंग्रेज़ी]]:''ग्लौकोमाग्लूकोमा'') या [[काला मोतिया]] [[नेत्र]] का रोग है। यह रोग तंत्र में गंभीर एवं निरंतर बढ़ती हुई क्षति करते हुए धीरे-धीरे दृष्टि को नष्टसमाप्त ही कर देता है। किसी वस्तु कोसे देखनेप्रकाश केकी बादकिरणें आंखों तक पहुंचती हैं, व उसकी छवि दृष्टि पटल पर बनाती हैं। दृष्टि पटल (रेटिना) से ये सूचना विद्युत तरंगों द्वारा मस्तिष्क तक नेत्र तंतुतंतुओं द्वारा पहुंचाई जाती है। आंख में एक तरल पदार्थ भरा होता है। इससे लगातार एक तरल पदार्थ आंख के गोले को चिकना किए रहता है। यदि यह तरल पदार्थ रुक जाए तो अंतःनेत्र दाब (इंट्राऑक्यूलर प्रेशर) बढ़ जाता है। कांच बिंदु में अंत:नेत्र पर दाब, प्रभावित आँखआँखों की सहने की क्षमता से अधिक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नेत्र तंतु कीको क्षति होतीपहुँचती है जिससे दृष्टि चली जाती है।वस्तुहै। किसी वस्तु को देखते समय कांच बिंदु वाले व्यक्ति को केवल वस्‍तु का केन्‍द्र दिखाई देता है। समय बीतने के साथ स्थिति बद से बदतर होती जाती है, व व्यक्ति यह क्षमता भी खो जातादेता है। सामान्यत:, लोग इस पर कदाचित ही ध्यान देते हैं जबतक कि काफी क्षति न हो गई हो। अक्सरप्रायः कांच बिंदु बिना किसी लक्षण के विकसित होता है। विश्व स्तर पर कांच बिंदु लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्‍व का दूसरा सबसे आम कारण है। करीब एक करोड़ भारतीय कांच बिंद से पीड़ित हैं जिनमें से १.५ लाख नेत्रहीन हैं।
 
कांच बिंदु आमतौर परप्रायः दोनों आँखों को एक साथ प्रभावित करता है। हालाँकि आमतौर पर यह 40४० वर्ष से अधिक आयु के वयस्कों के बीच में पाया जाता है, फिर भी कुछ मामलों में यह नवजात शिशुओं को भी प्रभावित कर सकता हैं।
 
== प्रकार ==
[[चित्र:Human eyesight two children and ball normal vision.jpg|thumb|right|दृष्टि का सामान्य क्षेत्र]]
[[चित्र:Human eyesight two children and ball with glaucoma.jpg|thumb|right|यही क्षेत्र ग्लौकोमा के रोगी के लिए]]
कांच बिंदु रोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है: प्राथमिक खुला कोण और बंद कोण कांच बिंदु। इसके अलावा ये सैकेंडरी भी हो सकता है।बच्चों को होने वाला कालामोतिया भी एक प्रकार में अलग से रखा गया है।
 
==जाँच एवं उपचार==
कालेमोतिया का कारण अक्षि-चिकित्सक (ऑप्थैल्मोलॉजिस्ट) ही बेहतर पहचान सकता है। नियमित जांच से इसकी पहचान संभव हो सकती है। इस रोग में रोगी को सिरदर्द, मितली और धुंधला आना शुरू हो जाता है। कई रोगियों को रात में दिखना बंद भी हो जाता है। टय़ूब लाइट या बल्ब की रोशनी चारों ओर से धुंधली दिखने लगती है। आंखों में तेज दर्द भी होने लगता है। ओपन एंगल ग्लूकोमा में चश्मे के नंबर तेजी से बदलना पड़ता है। इसकी जांच में विशेषज्ञ दृष्टि-तंतु (ऑप्टिक नर्व) के मस्तिष्क से जुड़ने वाले स्थान पर होने वाले परिवर्तन की जांच करते हैं।
 
ग्लूकोमा के उपचार की कई विधियां होती हैं जिनमें आंखों में दवा डालना, लेजर उपचार और शल्य-क्रिया शामिल हैं। यदि ग्लूकोमा रोगी उसके प्रति असावधानी व लापरवाही से रहें, तो आंखों की रोशनी भी जा सकती है। अतएव इसके उपचार को शीघ्रातिशीघ्र एवं सावधानी से कराना चाहिए। शल्य-क्रिया उन्हीं रोगियों के लिए आवश्यक होती है जिनका रोग उन्नत स्तर स्टेज में पहुंच चुका होता है। ऐसे रोगियों में तरल दवा अधिक प्रभाव नहीं छोड़ती है। इसका लेजर से भी ऑपरेशन किया जाता है। कई मामलों में यह बीमारी आनुवांशिक प्रभावी भी देखी गई है। एक आंख में यदि काला मोतिया उतरा है तो उसके दूसरी आंख में भी होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए इसकी प्रारंभिक आईओपी जांच के परिणामों पर गंभीरता से निर्णय लेकर उपचार करा लेना चाहिए।
 
विश्व स्तर पर कांच बिंदु लगभग छह करोड़ लोगों को प्रभावित करता है और भारत में यह अंधत्‍व का दूसरा सबसे आम कारण है। लगभग एक करोड़ भारतीय कांच बिंद से पीड़ित हैं जिनमें से १.५ लाख नेत्रहीन हैं।
 
 
 
=== प्राथमिक खुला कोण ===