"मनशेरजी खरेघाट": अवतरणों में अंतर

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पारसी समुदाय के पथप्रदर्शक मनशेरजी पेस्तनजी खरेघाट का जन्म दिसंबर, 1864 में हुआ था। आप बचपन से ही बड़े मेधावी थे। मुख्य रूप से गणित की समस्याओं को हल करके आपने अपनी कुशलता का परिचय दिया। मैट्रीकुलेशन की परीक्षा में आप 13 वर्ष की उम्र में ही उत्तीर्ण हो गए और तत्पश्चात् कालेज की पढ़ाई छोड़कर इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा के लिये अपने को तैयार किया। इनाम और छात्रवृत्ति प्राप्त करते हुए आपने गौरवपूर्ण ढंग से 1882 में उस परीक्षा में सफलता प्राप्त की और वकालत की पढ़ाई को जारी रखा। न्यायालयों में जाते समय आपने देखा कि एक स्त्री ने अपने पति की हत्या का प्रयास किया जिसके लिये उसे प्राणदंड की सजा दी गई। इसे देखकर आपने अपने पिता को लिखा कि मेरे विचार से "यह प्राणदंड की आज्ञा निर्दयतापूर्ण न्याय" है।

भारत लौटने पर आप सहायक कलेक्टर, मैजिस्टे्रट, सहायक न्यायाधीश और सेशन न्यायाधीश के रूप में क्रमश: थाना, बस्ती बरौंच और शिकारपुर में रहे। जब आप रत्नगिरि में में सेशन न्यायाधीश थे, आप बंबई के उच्च न्यायालय की बेंच पर आसीन किए गए। परंतु आप शीघ्र ही छुट्टी पर चले गए जिसका प्रमुख कारण प्राणदंड की सजा के प्रति अपनी अनिच्छा प्रकट करना था। आप पुन: रत्नगिरि के सेशन जज बना दिए गए जहाँ आप संन्यासी की भाँति धार्मिकतापूर्ण जीवन व्यतीत करने के कारण सबके द्वारा पूजित तथा प्रशंसित हुए। गरीब जनता के लिये आपके हृदय में जो स्नेह था उसके कारण उनकी सेवा करने के लिये आपने अवकाशप्राप्ति की उम्र तक पहुँचने के पूर्व ही सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। पारसी पंचायत के "बोर्ड ऑव ट्रस्टी" के सभापति के रूप में आप जीवन के अंतिम दिनों तक कार्य करते रहे।