"जगन्नाथ मन्दिर, पुरी": अवतरणों में अंतर
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== मंदिर का उद्गम ==
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[[गंग वंश]] के हाल ही में अन्वेषित ताम्र पत्रों से यह ज्ञात हुआ है, कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को [[कलिंग]] राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने आरम्भ कराया था। <ref>{{cite web
|url=http://www.jagannathpuri.blessingsonthenet.com/
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=== मंदिर से जुड़ी कथाएं ===
इस मंदिर के उद्गम से जुड़ी परंपरागत कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की इंद्रनील या नीलमणि से निर्मित मूल मूर्ति, एक [[अंजीर]] वृक्ष के नीचे मिली थी। यह इतनी चकचौंध करने वाली थी, कि धर्म ने इसे पृथ्वी के नीचे छुपाना चाहा। [[मालवा]] नरेश [[इंद्रद्युम्न]] को स्वप्न में यही मूति दिखाई दी थी। तब उसने कड़ी तपस्या की, और तब भगवान [[विष्णु]] ने उसे बताया कि वह [[पुरी]] के समुद्र तट पर जाये, और उसे एक दारु (लकड़ी) का लठ्ठा मिलेगा। उसी लकड़ी से वह मूर्ति का निर्माण कराये। राजा ने ऐसा ही किया, और उसे लकड़ी का लठ्ठा मिल भी गया। उसके बाद राजा को विष्णु और [[विश्वकर्मा]] बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में उसके सामने उपस्थित हुए। किंतु उन्होंने यह शर्त रखी, कि वे एक माह में मूर्ति तैयार कर देंगे, परन्तु तब तक वह एक कमरे में बंद रहेंगे, और राजा या कोई भी उस कमरे के अंदर नहीं आये। माह के अंतिम दिन जब कई दिनों तक कोई भी आवाज नहीं आयी, तो उत्सुकता वश राजा ने कमरे में झांका, और वह वृद्ध कारीगर द्वार खोलकर बाहर आ गया, और राजा से कहा, कि मूर्तियां अभी अपूर्ण हैं, उनके हाथ अभी नहीं बने थे। राजा के अफसोस करने पर, मूर्तिकार ने बताया, कि यह सब दैववश हुआ है, और यह मूर्तियां ऐसे ही स्थापित होकर पूजी जायेंगीं। तब वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां मंदिर में स्थापित की गयीं।
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=== बौद्ध मूल ===
कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इस मंदिर के स्थान पर पूर्व में एक बौद्ध स्तूप होता था। उस स्तूप में [[गौतम बुद्ध]] का एक दांत रखा था। बाद में इसे इसकी वर्तमान स्थिति, [[कैंडी]], [[श्रीलंका]] पहुंचा दिया गया। <ref>{{cite web
|url=http://orissagov.nic.in/e-magazine/Orissareview/july2003/englishchpter/OldJagannathTemplePuriBuddhistSomavamsiConnections.pdf
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[[महाराजा रणजीत सिंह]], महान सिख सम्राट ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा [[स्वर्ण मंदिर, अमृतसर]] को दिये गये स्वर्ण से कहीं अधिक था। उन्होंने अपने अंतिम दिनों में यह वसीयत भी की थी, कि विश्व प्रसिद्ध [[कोहिनूर]] हीरा, जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा [[हीरा]] है, इस मंदिर को दान कर दिया जाये। लेकिन यह सम्भव ना हो सका, क्योकि उस समय तक, [[ब्रिटिश]] ने [[पंजाब]] पर अपना अधिकार करके, उनकी सभी शाही सम्पत्ति जब्त कर ली थी। वर्ना कोहिनूर हीरा, भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता।<ref>[[कोहिनूर हीरा#सम्राटों के रत्न]] - आंतरिक कड़ी</ref>
== मंदिर का ढांचा ==
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मंदिर का वृहत क्षेत्र {{convert|400000|ft2|m2}} में फैला है, और चहारदीवारी से घिरा है। उड़िया शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है। <ref>{{cite web
|url=http://www.odissi.com/orissa/jagannath.htm
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== उत्सव ==
यहां विस्तृत दैनिक पूजा-अर्चनाएं होती हैं। यहां कई वार्षिक त्यौहार भी आयोजित होते हैं, जिनमें सहस्रों लोग भाग लेते हैं। इनमें सर्वाधिक महत्व का त्यौहार है, [[रथ यात्रा]], जो [[आषाढ]] [[शुक्ल पक्ष]] की [[द्वितीया]] को, तदनुसार लगभग [[जून]] या [[जुलाई]] माह में आयोजित होता है। इस उत्सव में तीनों मूर्तियों को अति भव्य और विशाल रथों में सुसज्जित होकर, यात्रा पर निकालते हैं। <ref>{{cite web
|url=http://www.templenet.com/Orissa/puri.html
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== वर्तमान मंदिर ==
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आधुनिक काल में, यह मंदिर काफी व्यस्त और सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों और प्रकार्यों में व्यस्त है। जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए ५०० रसोईए तथा उनके ३०० सहयोगी काम करते हैं।<ref>{{cite web
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{{reflist|2}}
== इन्हें भी देखें ==
* [[जगन्नाथ]]
* [[रथ यात्रा]]
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* [http://puri.nic.in/jaga.htm भगवान श्री जगन्नाथ मंदिर- जगन्नाथ धर्म]
* [http://www.lordjagannath.com/oriya_temple.htm भगवान जगन्नाथ मंदिर पुरी, उड़ीसा] भगवान जगन्नाथ पर उड़िया भाषा में विश्व का प्रथम और एकमात्र आध्यात्मिक पोर्टल.
* [http://www.shrijagannath.com श्री जगन्नाथ स्वामी रथयात्रा वीडियो]
* {{wikitravel}}
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[[श्रेणी:भारतीय स्थापत्यकला]]
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[[de:Jagannath-Tempel]]
[[en:Jagannath Temple,
[[ml:പുരി ജഗന്നാഥക്ഷേത്രം]]
[[pl:Świątynia Dźagannatha w Puri]]
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