"विटामिन सी": अवतरणों में अंतर

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{{Double image stack|right|Ascorbic acid structure.png|Dehydroascorbic acid.png|150|[[एस्कॉर्बिक अम्ल]]<br />([[:en:reducing agent|रिड्यूस्ड रूप]])|[[:en:dehydroascorbic acid|डाईहाईड्रोएस्कॉर्बिक अम्ल]]<br />([[:en:oxidizing agent|ऑक्सीकृत रूप]])}}
 
== प्रस्तावना ==
'''विटामिन सी''' या '''एल-[[एस्कॉर्बिक अम्ल]]''' मानव एवं विभिन्न अन्य पशु प्रजातियों के लिये अत्यंत आवश्यक पोषक तत्त्व है। ये [[विटामिन]] रूप में कार्य करता है। कई प्रकार की उपापचयी अभिक्रियाओं हेतु एस्कॉर्बेट ([[एस्कॉर्बिक अम्ल]] का एक आयन) सभी पादपों व पशुओं में आवश्यक होता है। ये लगभग सभी जीवों द्वारा आंतरिक प्रणाली द्वारा निर्मित किया जाता है (सिवाय कुछ विशेष प्रजातियों के) जिनमें [[स्तनपायी]] समूह जैसे [[चमगादड़]], एक या दो प्रधान प्राइमेट सबऑर्डर, ऐन्थ्रोपोएडिया (वानर, वनमानुष एवं मानव) आते हैं। इसका निर्माण गिनी शूकर एवं पक्षियों एवं मछलियों की कुछ प्रजातियों में नहीं होता है। जो भी प्रजातियां इसका निर्माण आंतरिक रूप से नहीं कर पातीं, उन्हें ये आहार रूप में वांछित होता है। इस विटामिन की कमी से मानवों में [[स्कर्वी]] नामक रोग हो जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-104348.html विटामिन सी]।हिन्दुस्ताण लाइव।२८ मार्च, २०१०</ref><ref name=UKFSA>{{cite web |url=http://www.eatwell.gov.uk/healthydiet/nutritionessentials/vitaminsandminerals/vitaminc/ |title=Vitamin C |accessdate=2007-02-19 |publisher=Food Standards Agency (UK) }}</ref><ref name=UMM>{{cite web |url=http://www.umm.edu/ency/article//002404.htm |title=Vitamin C |accessdate=2008-03-31 |month=January | year=2007 |author= |publisher=University of Maryland Medical Center }}</ref><ref name=OSU>{{cite web |url=http://lpi.oregonstate.edu/infocenter/vitamins/vitaminC/|title=Vitamin C |accessdate=2007-03-07 |date=2006-01-31 |first=Jane, Ph.D. |last= Higdon |publisher=Oregon State University, Micronutrient Information Center}}</ref> इसे व्यापक रूप से खाद्य पूर्क रूप में प्रयोग किया जाता है।<ref name=McCluskey1985>{{cite journal |last=McCluskey |first=Elwood S. |year=1985 |title=Which Vertebrates Make Vitamin C? |journal=Origins |volume=12 |issue=2 |pages=96–100 |url=http://www.grisda.org/origins/12096.pdf |format=PDF}}</ref>
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==गुण==
विटामिन-सी शरीर की मूलभूत रासायनिक क्रियाओं में यौगिकों का निर्माण और उन्हें सहयोग करता है। शरीर में विटामिन सी कई तरह की रासायनिक क्रियाओं में सहायक होता है जैसे कि तंत्रिकाओं तक संदेश पहुंचाना या कोशिकाओं तक ऊर्जा प्रवाहित करना आदि। इसके अलावा, हड्डियों को जोड़ने वाला कोलाजेन नामक पदार्थ, [[रक्त वाहिका|रक्त वाहिकाएं]], लाइगामेंट्स, कार्टिलेज आदि अंगों को भी अपने निर्माण के लिए विटामिन सी चाहिए होता है। यह विटामिन [[कोलेस्ट्रॉल]] को भी नियंत्रित करता है। इसके अलावा [[लौह]] तत्वों को भी विटामिन सी से ही आधार मिलता है। यह कार्य एंटीऑक्सीडेंट के रूप में भी कार्य करता है। ये शरीर की [[कोशिका]]ओं को बांध के रखता है। इससे शरीर के विभिन्न अंग को आकार बनाने में मदद मिलती है। यह शरीर की रक्त वाहिकाओं को मजबूत बनाने में सहायक होता है। इसके एंटीहिस्टामीन गुणवत्ता के कारण, यह सामान्य सर्दी-[[जुकाम]] में दवा का काम कर सकता है। इसके अभाव में मसूड़ों से खून बहता है, [[दांत]] दर्द हो सकता है, दांद मसूढ़ों में ढीले हो सकते हैं या निकल सकते हैं। चर्म में चोट लगने पर अधिक खून बह सकता है, रुखरा हो सकता है। इसकी कमी के कारण भूख भी कम लगती है, व बहुत अधिक विटामिन के अभाव से स्कर्वी हो सकता है।
 
==आवश्यकता==
मनुष्यों को विटामिन सी अलग से खाद्य पदार्थो के साथ ग्रहण करना होता है, क्योंकि शरीर इसका स्वयं निर्माण नहीं करता। ये फलों और सब्जियों से प्राप्त होता है, जैसे लाल मिर्च, संतरे, अनानास, टमाटर, स्ट्रॉबेरी और आलू आदि। यह घुलनशील तत्व होता है इसलिए कच्चे फल और सब्जियां इसके सबसे बड़े स्रोत हैं। प्रतिदिन एक औसत व्यक्ति को ८० मिलिग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है। सेब के रस से भी यह प्राप्त होता है, लेकिन इसे अलग तत्वों की मदद से भी ग्रहण किया जाता है। अत्यधिक विटामिन सी भी हानिकारक हो सकता है। किसी भी स्थिति में एक दिन में विटामिन सी १००० मिलिग्राम से अधिक नहीं ग्रहण करना चाहिए। इससे अधिक वह शरीर को हानि भी पहुंचा सकता है। इससे से [[स्कर्वी]] जैसे कुपोषण जनित रोग होने की संभावना होती है। इसके अलावा इससे शरीर के विभिन्न अंगों में, जैसे कि गुर्दे, हृदय और अन्य जगह में, एक प्रकार की पथरी हो सकती है| यह ऑक्ज़ेलेट क्रिस्टल का बना होता है। इस पथरी के कारण मूत्र विसर्जन में जलन या दर्द हो सकता है, या फिर पेट खराब होने से दस्त हो सकता है। [[रक्ताल्पता]] या एनिमीया हो सकता है।