"आरती": अवतरणों में अंतर

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सामान्यतया पूजा के अंत में आराध्य भगवान की आरती करते हैं। आरती में कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें सम्मिलित होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें तीन बार पुष्प अर्पित करने चाहियें। इस बीच ढोल, नगाडे, घड़ियाल आदि भी बजाये जाते हैं।<ref name="याहू-धर्म">[http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&category=3&articleid=4639 आरती क्यों और कैसे?]।याहू जागरण- धर्म।मीता जिंदल </ref>
==विधि==
[[File:Incense smoke Aarti, Ganges, Varanasi.jpg|right|thumb|200px| [[गंगा]] मैया की धूप-लोबान से आरती, [[वाराणसी]] का उठता हुआ धुआं]]
[[File:Evening Ganga Aarti, at Dashashwamedh ghat, Varanasi.jpg|left|thumb|200px|वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर गंगा मैया की आरती]]
 
 
आरती करते हुए भक्त के मान में ऐसी भावना होनी चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि भक्त अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारती कहलाती है।
आरती प्रायः दिन में एक से पांच बार की जाती है। इसे हर प्रकार के धामिक समारोह एवं त्यौहारों में पूजा के अंत में करते हैं।एक पात्र में शुद्ध घी लेकर उसमें विषम संख्या (जैसे ३, ५ या ७) में बत्तियां जलाकर आरती की जाती है। इसके अलावा कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे '''पंच प्रदीप''' भी कहते हैं।<ref name="डिस्कवरी"/> आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरी धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग ([[मस्तिष्क]], [[हृदय]], दोनों कंधे, [[हाथ]] व घुटने) से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती मानव शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक मानी जाती है।<ref name="याहू-धर्म"/>
 
आरती की थाली या [[दीपक]] (या सहस्र दीप) को ईष्ट देव की मूर्ति के समक्ष ऊपर से नीचे, गोलाकार घुमाया जाता है। इसे घुमाने की एक निश्चित संख्या भी हो सकती है, व गोले के व्यास भी कई हो सकते हैं। इसके साथ आरती गान भी समूह द्वारा गाय़ा जाता है जिसको संगीत आदि की संगत भी दी जाती है। आरती होने के बाद पंडित या आरती करने वाला, आरती के दीपक को उपस्थित भक्त-समूह में घुमाता है, व लोग अपने दोनों हाथों को नीचे को उलटा कर जोड़ लेते हैं व आरती पर घुमा कर अपने मस्तक को लगाते हैं। इसके दो कारण बताये जाते हैं। एक मान्यता अनुसार ईश्वर की शक्ति उस आरती में समा जाती है, जिसका अंश भक्त मिल कर अपने अपने मस्तक पर ले लेते हैं। दूसरी मानयता अनुसा ईश्वर की नज़र उतारी जाती है, या बलाएं ली जाती हैं, व भक्तजन उसे इस प्रकार अपने ऊपर लेने की भावना करते हैं, जिस प्रका एक मां अपने बच्चों की बलाएं ले लेती है। ये मात्र सांकेतिक होता है, असल में जिसका उद्देश्य ईश्वर के प्रति अपना समर्पण व प्रेम जताना होता है।
 
===थाल===
[[चित्र::Pujathali.jpg|thumb|200px|[[पूजा की थाली]] ]]आरती का थाल धातु का बना होता है, जो प्रायः [[पीतल]], [[तांबा]], [[चांदी]] या [[सोने]] का हो सकता है। इसमें एक गुंधे हुए आटे का, धातु का, गीली मिट्टी आदि का [[दीपक]] रखा होता है। ये दीपक गोल, या पंचमुखी, सप्त मुखी, अधिक विषम संख्या मुखी हो सकता है। इसे तेल या शुद्ध घी द्वाआ रुई की बत्ती से जलाया गया होता है। प्रायः तेल का प्रयोग रक्षा दीपकों में किया जाता है, व आरती दीपकों में घी का ही प्रयोग करते हैं। बत्ती के स्थान पर [[कपूर]] भी प्रयोग की जा सकती है। इस थाली में दीपक के अलावा पूजा के फ़ूल, धूप-अगरबत्ती आदि भी रखे हो सकते हैं। इसके स्थान पर सामान्य [[पूझापूजा की थाली]] भी प्रयोग की जा सकती है। कई स्थानों पर, विशेषकर नदियों की आरती के लिये थाली की जगह आरती दीपक प्रयोग होते हैं। इनमें बत्तियों की संख्या १०१ भी हो सकती है। इन्हें शत दीपक या सहस्रदीप भी कहा जाता है। ये विशेष ध्यानयोग्य बात है, कि आरती कभी सम संख्य़ा दीपकों से नहीं की जाती है।
 
==सामग्री का महत्व ==
आरती के समय कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। पूजा में न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे धार्मिक एवं वैज्ञानिक आधार भी हैं।<ref name="याहू-धर्म"/><ref name="डिस्कवरी">[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80 आरती पूजन ]।बृज डिस्कवरी</ref><ref name="डिस्कवरी"/>
*'''[[कलश]]''': कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। मान्यतानुसा इस खाली स्थान में शिव बसते हैं। यदि आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि भक्त शिव से एकाकार हो रहे हैं। समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।
 
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आरती" से प्राप्त