"राइट बंधु": अवतरणों में अंतर

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इस आविष्कार के लिए आवश्यक यांत्रिक कौशल इन्हें कई वर्षों तक [[प्रिंटिंग प्रेस]], [[बाइसिकल]], [[मोटर]] और अन्य कई मशीनों के साथ काम करते करते मिला। बाइसिकल के साथ काम करते करते इन्हें विश्वास हो गया कि वायुयान जैसे असंतुलित वाहन को भी अभ्यास के साथ संतुलित और नियंत्रित किया जा सकता है।<ref>क्राउश २००३, पृ. १६९</ref> [[१९००]] से [[१९०३]] तक इन्होंने [[ग्लाइडर|ग्लाइडरों]] पर बहुत प्रयोग किये जिससे इनका [[पायलट]] कौशल विकसित हुआ। इनके बाइसिकल की दुकान के कर्मचारी चार्ली टेलर ने भी इनके साथ बहुत काम किया और इनके पहले यान का इंजन बनाया। जहाँ अन्य आविष्कारक इंजन की शक्ति बढ़ाने पर लगे रहे, वहीं राइट बंधुओं ने आरंभ से ही नियंत्रण का सूत्र खोजने पर अपना ध्यान लगाया। इन्होंने वायु-सुरंग में बहुत से प्रयोग किए और सावधानी से जानकारी एकत्रित की, जिसका प्रयोग कर इन्होंने पहले से कहीं अधिक प्रभावशाली पंख और [[प्रोपेलर]] खोजे।<ref>जैकब १९९७, पृ. १५६</ref><ref>क्राउश २००३, पृ.२२८</ref> इनके [[पेटेंट]] (अमरीकन पेटेंट सं. ८२१, ३९३) में दावा किया गया है कि इन्होंने वायुगतिकीय नियंत्रण की नई प्रणाली विकसित की है जो विमान की सतहों में बदलाव करती है।<ref name="Flying Machine patent">[http://www.google.com/patents?vid=USPAT821393&id=h5NWAAAAEBAJ&dq=821,393 उड़न यंत्र का पेटेंट]</ref>
 
{{double image|left|Young Orville Wright.jpg|148|Wilbur Wright child.jpg|150|ऑरविल (बायें) एवं विलबर (दायें), १८७६ में||Orville|Wilbur}}
अनेक अन्य आविष्कारकों ने भी हवाई जहाज के आविष्कार का दावा किया है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि राइट बंधुओं की सबसे बड़ी उपलब्धि थी तीन-ध्रुवीय नियंत्रण का आविष्कार, जिसकी सहायता से ही पायलट विमान को संतुलित रख सकता है और दिशा-परिवर्तन कर सकता है।<ref>Padfield, Gareth D., Professor of Aerospace Engineering, and Lawrence, Ben, researcher. [http://pcwww.liv.ac.uk/eweb/fst/publications/2854.pdf "The Birth of Flight Control: An Engineering Analysis of the Wright Brothers’ 1902 Glider." (PDF format)] ''The Aeronautical Journal,'' Department of Engineering, The University of Liverpool, UK, December 2003, p. 697. Retrieved: 23 January 2008.</ref> नियंत्रण का यह तरीका सभी विमानों के लिये मानक बन गया और आज भी सब तरह के दृढ़-पक्षी विमानों के लिए यही तरीका उपयुक्त होता है।<ref>Howard 1988, p. 89.</ref><ref>Jakab 1997, p. 183.</ref>