"शाकटायन": अवतरणों में अंतर

398 बाइट्स जोड़े गए ,  13 वर्ष पहले
सम्पादन सारांश नहीं है
No edit summary
No edit summary
'''शाकटायन''' [[वैदिक काल]] के अन्तिम चरण (८वीं ईसापूर्व) के संस्कृत [[व्याकरण]] के रचयिता है हैं। उनकी कृतियाँ उपलब्ध नहीं हैं किन्तु [[यक्ष]], [[पाणिनि]] एवं अन्य [[संस्कृत]] व्याकरणों ने उनके विचारों का सन्दर्भ दिया है।
 
शाकटायन का विचार था कि सभी [[संज्ञा]] शब्द अन्तत: किसी न किसी धातु से व्युत्पन्न हैं। [[संस्कृत व्याकरण]] में यह प्रक्रिया क्रित-[[प्रत्यय]] के रूप में उपस्थित है। पाणिनि ने इस मत को स्वीकार किया किंतु इस विषय में कोई आग्रह नहीं रखा और यह भी कहा कि बहुत से शब्द ऐसे भी हैं जो लोक की बोलचाल में आ गए हैं और उनसे धातु प्रत्यय की पकड़ नहीं की जा सकती। उनके द्वारा रचित शास्त्र लक्क्षण शास्त्र हो सकता है, जिसमें उन्होंने भी चेतन और अचेतन निर्माण में व्याकरण लिंग निर्धारण की प्रक्रिया का वर्णन किया था।
 
[[श्रेणी:वैयाकरण]]
5,01,128

सम्पादन