"देवीभागवत पुराण": अवतरणों में अंतर

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==आविर्भाव==
महर्षि पराशर और देवी सत्यवती के संयोग से श्रीनारायण के अंशावतार देव व्यासजी का जन्म हुआ। व्यासजी ने अपने समय और समाज की स्थिति पहचानते हुए वेदों को चार भागों में विभक्त किया और अपने चार पटु शिष्यों को उनका बोध कराया। इसके पश्चात् वेदाध्ययन के अधिकार से वंचित नर-नारियों का मंदबुद्धियों के कल्याण के लिए अट्ठारह पुराणों की रचना की, ताकि वे भी धर्म-पालन में समर्थ हो सकें। सूतजी ने कहा-महात्मन्! गुरुजी के आदेशानुसार सत्रह पुराणों के प्रसार एवं प्रचार का दायित्व मुझ पर आया, किंतु भोग और मोक्षदाता भागवत पुराण स्वयं गुरुजी ने जन्मेजय को सुनाया। आप जानते हैं-जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित को तक्षक सर्प ने डस लिया था और राजा ने अपनी हत्या के कल्याण के लिए श्रीमद् भागवत् पुराण का श्रवण किया था। राजा ने नौ दिन निरंतर लोकमाता भगवती दुर्गा की पूजा-आराधना की तथा मुनि वेदव्यास के मुख से लोकमाता की महिमा से पूर्ण भागवत पुराण का श्रवण किया। सूतजी ने कहा-महात्मन्! गुरुजी के आदेशानुसार सत्रह पुराणों के प्रसार एवं प्रचार का दायित्व मुझ पर आया, किंतु भोग और मोक्षदाता भागवत पुराण स्वयं गुरुजी ने जन्मेजय को सुनाया। आप जानते हैं-जन्मेजय के पिता राजा परीक्षित को तक्षक सर्प ने डस लिया था और राजा ने अपनी हत्या के कल्याण के लिए श्रीमद् भागवत् पुराण का श्रवण किया था। राजा ने नौ दिन निरंतर लोकमाता भगवती दुर्गा की पूजा-आराधना की तथा मुनि वेदव्यास के मुख से लोकमाता की महिमा से पूर्ण भागवत पुराण का श्रवण किया।
 
{{पुराण}}{{हिन्दू देवी देवता}}
[[श्रेणी: पुराण]]