"यजुर्वेद": अवतरणों में अंतर

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{{सन्दूक यजुर्वेद}}
'''यजुर्वेद''' [[हिन्दू धर्म]] का एक महत्त्वपूर्ण [[श्रुति]] [[धर्मग्रन्थ]] है । ये चार [[वेद|वेदों]] में से एक है। इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं | '''यजुर्वेद''' यजुस + वेद ये [[हिन्दू धर्म]] के चार पवित्रतम प्रमुख ग्रन्थों में से एक है। यजुर्वेद गद्यात्मक ग्रन्थ है। यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है। यजुस के नाम पर ही वेद का नाम '''यजुस'''+'''वेद'''(=यजुर्वेद) शब्दों की संधि से बना है। यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र [[ॠग्वेद]] या [[अथर्ववेद]] से लिये गये है। इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं। इस वेद में अधिकांशतः यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं, अतःयह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है। जहां ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी वहीं यजुर्वेद की रचना [[कुरुक्षेत्र]] के प्रदेश में हुई। कुछ लोगों के मतानुसार इसका रचनाकाल १४०० से १००० ई.पू. का माना जाता है। इस ग्रन्थ से [[आर्य|आर्यों]] के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है। उनके समय की वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है। यजुर्वेद संहिता में वैदिक काल के धर्म के कर्मकाण्ड आयोजन हेतु यज्ञ करने के लिये मंत्रों का संग्रह है। यजुर्वेद में दो शाखा हैं :
'''यजुर्वेद''' [[हिन्दू धर्म]] का एक महत्त्वपूर्ण [[श्रुति]] [[धर्मग्रन्थ]] है । ये चार [[वेद|वेदों]] में से एक है । इसमें यज्ञ की असल प्रक्रिया के लिये गद्य और पद्य मन्त्र हैं | यजुर्वेद में दो शाखा हैं :
*[[दक्षिण भारत]] में प्रचलित [[कृष्ण यजुर्वेद]] (दक्षिणऔर [[उत्तर भारत)]] में प्रचलित [[शुक्ल यजुर्वेद ]] शाखा।
 
* [[शुक्ल यजुर्वेद ]] (उत्तर भारत)
इसमेइनमे कर्मकाण्ड के कई यज्ञों का विवरण हैः
* [[अग्निहोत्र]]
* [[अश्वमेध]]
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* [[राजसूय]]
* [[अग्निचयन]]
[[ऋग्वेद]] के लगभग ६६३ मंत्र यथावत् यजुर्वेद में मिलते हैं। यजुर्वेद वेद का एक ऐसा प्रभाग है, जो आज भी जन-जीवन में अपना स्थान किसी न किसी रूप में बनाये हुऐ है।<ref name="विद्या">[http://www.veda-vidya.com/veda.php वेद]।वेद विद्या.कॉम</ref> संस्कारों एवं यज्ञीय कर्मकाण्डों के अधिकांश मन्त्र यजुर्वेद के ही हैं।<ref यजुर्वेदाध्यायी परम्परा में दो सम्प्रदायname="सत्य">[http://search-satya. ब्रह्म सम्प्रदाय अथवा कृष्ण यजुर्वेद, २blogspot. आदित्य सम्प्रदाय अथवा शुक्ल यजुर्वेद ही प्रमुख हैं। वर्तमान में कृष्ण यजुर्वेद की शाखा में ४ संहिताएँ com/2010/04/blog-post_21.html तैत्तिरीय,ब्रह्म २.क्या मैत्रायणी,है? ३.कठजीव औरक्या ४.कपिष्ठलहै? कठआत्मा हीक्या उपलब्धहै? हैं। शुक्ल यजुर्वेदब्रह्मांण्ड की शाखाओंउत्पत्ति मेंकैसे दोहुई प्रधान संहिताएँ- १. मध्यदिन संहिता और २. काण्व संहिता ही वर्तमान में उपलब्ध हैं। आजकल प्रायः उपलब्ध होने वाला यजुर्वेद मध्यदिन संहिता ही है। इसमें ४० अध्याय, १९७५ कण्डिकाएँ (एक कण्डिका कई भागों में यागादि अनुष्ठान कर्मों में प्रयुक्त होनें से कई मन्त्रों वाली होती है।) तथा ३९८८ मन्त्र हैं। विश्वविख्यात गायत्री मंत्र (३६.३) तथा महामृत्युञ्जय मन्त्र (३.६०) इसमें भी है।है?]।सत्य की खोज</ref>
 
==संप्रदाय, शाखाएं और संहिताएं==
;संप्रदाय
यजुर्वेदाध्यायी परम्परा में दो सम्प्रदाय- ब्रह्म सम्प्रदाय अथवा कृष्ण यजुर्वेद और आदित्य सम्प्रदाय अथवा शुक्ल यजुर्वेद ही प्रमुख हैं।
;संहिताएं
वर्तमान में कृष्ण यजुर्वेद की शाखा में ४ संहिताएँ -तैत्तिरीय, मैत्रायणी, कठ और कपिष्ठल कठ ही उपलब्ध हैं। शुक्ल यजुर्वेद की शाखाओं में दो प्रधान संहिताएँ- १. मध्यदिन संहिता और २. काण्व संहिता ही वर्तमान में उपलब्ध हैं। आजकल प्रायः उपलब्ध होने वाला यजुर्वेद मध्यदिन संहिता ही है। इसमें ४० अध्याय, १९७५ कण्डिकाएँ (एक कण्डिका कई भागों में यागादि अनुष्ठान कर्मों में प्रयुक्त होनें से कई मन्त्रों वाली होती है।) तथा ३९८८ मन्त्र हैं। विश्वविख्यात [[गायत्री मंत्र]] (३६.३) तथा [[महामृत्युञ्जय मन्त्र]] (३.६०) इसमें भी है।
 
;शाखाएं
यजुर्वेद [[कर्मकाण्ड]] से जुडा हुआ है। इसमें विभिन्न यज्ञों (जैसे [[अश्वमेध]]) का वर्णन है। यजुर्वेद पाठ अध्वुर्य द्वारा किया जाता है| यजुर्वेद ५ शाखाओ मे विभक्त् है-
# काठक
(१) काठक (२) कपिष्ठल (३)मैत्रियाणी (४)तैतीरीय (५) वाजसनेयी
# कपिष्ठल
# मैत्रियाणी
# तैतीरीय
# वाजसनेयी
 
;यजुर्वेद के बारे में कुछ मुख्य बाते निम्नलिखित है-
:*
:*यजुर्वेद गद्यात्मक है।
 
:*यज्ञ में कहे जाने वाले गद्यात्मक मन्त्रों को ‘यजुस’ कहा जाता है।
:*यजुर्वेद के पद्यात्मक मन्त्र [[ॠग्वेद]] या [[अथर्ववेद]] से लिये गये है।
:*इनमें स्वतन्त्र पद्यात्मक मन्त्र बहुत कम हैं।
:*यजुर्वेद में यज्ञों और हवनों के नियम और विधान हैं।
:*यह ग्रन्थ कर्मकाण्ड प्रधान है।
:*यदि ॠग्वेद की रचना सप्त-सिन्धु क्षेत्र में हुई थी तो यजुर्वेद की रचना [[कुरुक्षेत्र]] के प्रदेश में।
:*इस ग्रन्थ से [[आर्य|आर्यों]] के सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है।
:*वर्ण-व्यवस्था तथा वर्णाश्रम की झाँकी भी इसमें है।
 
==इन्हें भी देखें==