"वायु पुराण": अवतरणों में अंतर

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==वायु पुराण की संक्षिप्त जानकारी==
ब्रह्माजी कहते है -- ब्रह्मन सुनो! अब मै वायुइस पुराण का लक्षण बतलाता हूँ। जिसके श्रवण करने पर परमात्मा शिव का परमधाम प्राप्त होता है। यह पुराण चौबीस हजार श्लोकों का बताया गया है। जिसमेंमें वायुदेव ने श्वेतकल्प के प्रसंगों में धर्मों का उपदेश किया है। उसेइसलिये इसे वायु पुरण कहते है। यह पूर्व और उत्तर दो भागों से युक्त है। ब्रह्मन! जिसमें सर्ग आदि का लक्षण विस्तारपूर्वक बतलाया गया है,जहां भिन्न भिन्न मन्वन्तरों में राजाओं के वंश का वर्णन है और जहां गयासुर के वध की कथा विस्तार के साथ कही गयी है,जिसमें सब मासों का माहात्मय बताकर माघ मास का अधिक फ़ल कहा गया है जहां दान दर्म तथा राजधर्म अधिक विस्तार से कहे गये है,जिसमें पृथ्वी पाताल दिशा और आकाश में विचरने वाले जीवों के और व्रत आदि के सम्बन्ध में निर्णय किया गया है,वह वायुपुराण का पूर्वभाग कहा गया है। मुनीश्वर ! उसके उत्तरभाग में नर्मदा के तीर्थों का वर्णन है,और विस्तार के साथ शिवसंहिता कही गयी है जो भगवान सम्पूर्ण देवताओं के लिये दुर्जेय और सनातन है,वे जिसके तटपर सदा सर्वतोभावेन निवास करते है,वही यह नर्मदा का जल ब्रह्मा है,यही विष्णु है,और यही सर्वोत्कृष्ट साक्षात शिव है। यह नर्मदा जल ही निराकार ब्रह्म तथा कैवल्य मोक्ष है,निश्चय ही भगवान शिवने समस्त लोकों का हित करने के लिये अपने शरीर से इस नर्मदा नदी के रूप में किसी दिव्य शक्ति को ही धरती प्रर उतारा है। जो नर्मदा के उत्तर तट पर निवास करते है,वे भगवान रुद्र के अनुचर होते है,और जिनका दक्षिण तट पर निवास है,वे भगवान विष्णु के लोकों में जाते है,ऊँकारेश्वर से लेकर पश्चिम समुद्र तट तक नर्मदा नदी में दूसरी नदियों के पैतीस पापनाशक संगम है,उनमे से ग्यारह तो उत्तर तटपर है,और तेईस दक्षिण तट पर। पैंतीसवां तो स्वयं नर्मदा और समुद्र का संगम कहा गया है,नर्मदा के दोनों किनारों पर इन संगमों के साथ चार सौ प्रसिद्ध तीर्थ है। मुनीश्वर ! इनके सिवाय अन्य साधारण तीर्थ तो नर्मदा के पग पग पर विद्यमान है,जिनकी संख्या साठ करोड साठ हजार है। यह परमात्मा शिव की संहिता परम पुण्यमयी है,जिसमें वायुदेवता ने नर्मदा के चरित्र का वर्णन किया है,जो इस पुराण को सुनता है या पढता है,वह शिवलोक का भागी होता है।