"कूर्म पुराण": अवतरणों में अंतर

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==संक्षिप्त कथा==
रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में आरम्भ होनेवाले इस पुराण में सर्वप्रथम सूतजी ने पुराण-लक्षण एवं अट्ठारह महापुराणों तथा उपपुराणों के नामों का परिगणन् करते हुए भगवान के कूर्मावतार की कथा का सरस विवेचन किया है। कूर्मावतार के ही प्रसंग में लक्ष्मी की उत्पत्ति और महात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्न के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान् श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है।
 
==संदर्भ==