"जीववाद": अवतरणों में अंतर

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'''सर्वात्मवाद''' (Animism) वह दार्शनिक, धार्मिक या आध्यात्मिक विचार है कि आत्मा न केवल मनुष्यों में होती है वरन् सभी जन्तुओं, वनस्पतियों, चट्टानों, प्राकृतिक [[परिघटना|परिघटनाओं]] ([[बिजली]], [[वर्षा]] आदि) में भी होती है। इससे भी आगे जाकर कभी-कभी शब्दों, नामों, उपमाओं, रूपकों आदि में भी आत्मा के अस्तित्व की बात कही जाती है। सर्वात्मवाद का दर्शन मुख्यतया आदिवासी समाजों में पाया जाता है परन्तु यह [[शिन्तो]] एवं हिन्दुओं के कुछ सम्प्रदायों में भी पाया जाता है।
 
==परिचय==
[[आत्मा]] (Spirit), जीवात्मा या जीव (soul) के विषय में मनुष्यों में प्राय: तीन प्रकार के विश्वास या विचार प्रचलित रहे हैं। कुछ लोग तो [[चार्वाक]] के अनुयायियों की तरह, शरीरों से स्वतंत्र या पृथक् जीवों या आत्माओं की कोई सत्ता ही नहीं मानते। उनके अनुसार चेतना जड़ मस्तिष्क की क्रियाओं के परिणामस्वरूप उसी प्रकार उत्पन्न हो जाती है जिस प्रकार कि यकृत से पित्त; वह किसी जीव या आत्मा नामक अभौतिक तत्व या पदार्थ का गुण या स्वरूप नहीं। इसके विरुद्ध कुछ लोगों के विचार में चेतना भौतिक तत्वों से उत्पन्न नहीं होती, किंतु भौतिक पदार्थों से विलक्षण आत्मा या जीव का गुण है। उदाहरण के लिए, [[जैन धर्म|जैन]] विचारकों ने जीवों के स्वतंत्र अस्तित्व को स्वीकार करते हुए जीव की परिभाषा "चेतनालक्षणो जीव:" इन शब्दों में की है। परंतु आत्मा या जीव की सत्ता स्वीकार करनेवाले सब व्यक्ति एक मत के नहीं। उन्हें स्थूल रूप से दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। एक तो वे जो केवल मनुष्यों और कुछ उच्च कोटि के पशुपक्षियों में ही आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करते हैं और दूसरे वे जो न केवल मनुष्यों और पशुपक्षियों में ही अपितु कीट पतंगों और पेड़ पौधों आदि में भी, जिन्हें दूसरे लोग जड़ समझते हैं, आत्मा या जीव के अस्तित्व पर विश्वास करते हैं। मानवों के इसी प्रकार के विश्वास या विचार को सर्वात्मवाद नाम दिया जाता है। तार्किक भाषा में सर्वात्मवाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार तथाकथित जड़ पदार्थों में भी आत्मा या जीवात्मा नामवाले एक अभौतिक तत्व या शक्ति का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है और उसे न केवल बुद्धिजीवी प्राणियों के बौद्धिक जीवन का अपितु शारीरिक अथवा भौतिक क्रियाओं का भी मूलाधार माना जाता है।